जन्माष्टमी पर विशेष – संपादक की कलम से
श्री कृष्ण का जन्म भादो मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी में रोहिणी नक्षत्र में ठीक रात 12 बजे जन्म हुआ था। भगवान कृष्ण निस्संदेह हिंदू भक्ति और आस्था के सबसे महान चरित्रों में से एक हैं। उनका मनमोहक रूप और नटखट अटखेलियां उन्हें जन साधारण के लिए सबसे आकर्षक देवताओं में से एक बनाती हैं।
भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण ने शरारती मक्खन चोर से, महाभारत में अर्जुन के सारथी मार्गदर्शक तक की भूमिका अत्यधिक सरलता से निभाई, जिसमे उन्होंने एक योद्धा को युद्ध में अपना रास्ता खोजने में मदद की। यही नहीं, भगवान कृष्ण ने अपने जीवन में एक बच्चा, एक भाई, एक सारथी, एक सेनानी, एक शिष्य, एक गुरु, एक चरवाहे, एक दूत और लगभग सभी भूमिकाएं निभाईं!
भारतीय संस्कृति में सनातन परम्परा का विशेष महत्व है सनातन धर्म सर्वव्यापी है इसका किसी भी धर्म से कोई विरोध नहीं है। इस पर्व की विशेषता है इसी विशेषता के कारण ही सनातन धर्म आज भी अपने मूल रूप से भटकता नहीं प्रतीत होता है। सनातन धर्म में त्रिदेव परम्परा का विशेष महत्व है। इस दैवीय मान्यता में विष्णु के दश अवतारों का विशेष महत्व है सभी अवतारों में विष्णु के राम और कृष्ण के अवतारों को सनातन परम्परा में सर्वाधिक स्थान दिया गया है.
जिसमें रामावतार त्रेता युग में कृष्णावतार द्वापर में होने की मान्यता है और कुछ लोग यह मानते है कि यह काल्पनिक बातें है किन्तु अब इसको सिद्ध करने में वैज्ञानिकों ने अथक परिश्रम से यह सिद्ध किया कि यह रामायण युग और महाभारत युग की घटनाऐं सच में घटित हुई थी यह कोई कोरी कल्पना मात्र नहीं है।
कृष्णावतार के विषय में सभी सनातनी पर जानते है कि कृष्ण अपने 16 कलाओं के साथ अवतरित हुए हो सम्पूर्ण पुरूष थें उनका जन्म ही जेल में हुआ और उनकी जन्मदायी माता देवकी को उनके जन्म के साथ ही अपने से अलग करना पड़ा उनका पालन पोषण माता यशोदा जो कि नंदगांव के एक मुखिया की पत्नी थी उन्होंने उनको अपने पुत्र से भी ज्यादा स्नेह दिया और पाला और उन्हें अपने राज्य के राजा और अपने मामा का ही वध करना पड़ा और अन्य राक्षस जोकि तत्कालीन प्रजा को हर तरीके से परेशान करते थे उनका अंत करके वहां की जनमानस को उनके आतंक से मुक्त कराया।
श्री कृष्ण की लीलाओं में वाल्यकाल की उनकी लीलाओं के श्रेष्ठ लीला मानी जाती है। इसी के साथ उन्होंने अपने युवावस्था में प्रेम के उसप्रतिमान को गढ़ा जो निर्गुण और सर्वश्रेष्ठ प्रेम का प्रतीक है। समाज में आज भी प्रेम का कोई अगर सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है तो हम कृष्ण को ही मानते है। उन्होंने यह दिखाया कि प्रेम सर्वश्रेष्ठ गुण है जिससे किसी भी जीवजन्तु मुनष्य को अपना बनाने की क्षमता रखता है।
इसके बाद इनके जीवन का सर्वश्रेष्ठ सोपान अपनें बुआ कुन्ती के पुत्रों के साथ धर्म युद्ध महाभारत में इनका साथ देना जिससे धर्म की स्थापना फिर से हो सके अधर्मी दुष्ट और अनाचारी लोगों का नाश करके धर्म की स्थापना की जा सके।
इसी में उन्होंने अपने प्रिम शिष्य अर्जुन जो कि सम्बन्धों के मोहपाश में जकड़ गये और अपने ही सम्बन्धियों को मारने से मना करने लगें तब उन्होंने ‘गीता ज्ञान’ के माध्यम से उनको ज्ञान दिया और यह बताया है कि मानव शरीर और सम्बन्ध तब तक है जब तक हम इस भौतिक संसार में है। इस शरीर के अन्दर आत्मा है वो निश्छल है उसे इस शरीर से कोई मोह नहीं है यह हजारों जन्म लेकर भी उतनी ही पवित्र है दूषित तो केवल यह शरीर है। जब तक के इस शरीर में है तब तक वह प्रदूषित होती है शरीर को छोड़ने के बाद वह फिर पवित्र है और अपने नये वस्त्र अर्थात शरीर को धारण करके फिर से अपना स्वरूप बदल लेगी और अपने कामों से इस संसार में अच्छे या बुरें कीर्तिमान बनायेगी।
यह गीता का ज्ञान अर्जुन को समझ में आ गया और उसने अपने पूरे युद्ध कौशल के साथ युद्ध किया और अन्ततः पांडव विजयी हुए और उन्होंने उस संसार पर अखंड राज्य किया।
श्रीमद भगवद्गीता में भगवन ने कहा हैः
अनाश्रितः कर्मफलम कार्यम कर्म करोति यः।
सः संन्यासी च योगी न निरग्निर्ना चाक्रियाः।।
अर्थात, हे अर्जुन, जो मनुष्य अपने कर्मों के फल की इच्छा किए बिना कर्म करता है और अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए अच्छे कर्म करता है, वह योगी है। जो अच्छे कर्म नहीं करता वह संत कहलाने के योग्य नहीं है।
भगवान श्री कृष्ण को योग योगेश्वर माना जाता है उन पर हमरे संसार की किसी बुराई का कोई असर नहीं पड़ा उन्होंने मनुष्य जीवन के सभी प्रतिमानों और अवस्थाओं को जिया और निद्वन्द भाव से इस समाज और संसार को सीख दी।
मेरी जैसी तुच्छ वुद्धि के मनुष्य में ऐसी वुद्धि नहीं है कि उनपर कुछ भी लिख सकंू उनका जीवन चरित्र असाधारण था जिसने उनको जिस रूप में देखा उनको उस पर में ही मिले और उन्होंने जो जीवन लीलायें कि वे उत्कृष्ट श्रेणी की थी आज उनके जन्म दिवस अर्थात अवतरण दिवस की सभी सनातनी देशवासियों को हार्दिक बधाई।
-Swati Dwivedi