ड्रैगन (ड्रैगन )की समुद्र में नहीं चलेगीदादागिरी
नई दिल्ली. चीन (ड्रैगन ) की समुद्र में दादागिरी पर लगाम लगाने और फ़्रीडम ऑफ़ नेविगेशन के बेजां इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए भारत , अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया एक साथ आए, जिसके बाद क्वाड का गठन हुआ और उसी के बाद से ब्लू वॉटर में चीन को घुटन-सी महसूस होने लगी. लेकिन इस महीने उसकी घुटन और बढ़ने वाली है क्योंकि क्वॉड देशों की नौसेना ऑस्ट्रेलिया में ‘मालाबार’ अभ्यास करने जा रही है.
ये पहली बार है जब ऑस्ट्रेलिया इस मल्टीनेशनल सैन्य अभ्यास की मेज़बानी कर रहा है. ये अभ्यास 11 अगस्त से 22 अगस्त तक सिडनी के पास समुद्र में आयोजित किया जा रहा है. इस अभ्यास में शिरकत करने के लिए भारतीय नौसेना के युद्धाभ्यास में हिस्सा लेने के लिए आईएनएस कोलकाता और आईएनएस शहयाद्री सिडनी के लिए रवाना भी हो चुके हैं. इसके अलावा भारतीय नौसेना की लंबी दूरी तक टोह करने वाले पी8आई, जिन्हें सबमरीन हंटर के नाम से भी जाना जाता है, भी हिस्सा ले रहा है.
इस अभ्यास में सभी चारों नौसेना के बीच तालमेल के साथ रैपिड डिप्लॉयमेंट यानी की जंग के मद्देनज़र किस तरह से कौन से जंगी जहाज़ को किस वक्त कहां तैनात करना है… और क्वॉड देशों की नौसेना के बीच समन्वय को मज़बूत रखना है. इसके अलावा एंटी सबमरीन वॉरफेयर, एंटी सर्फेस वॉरफेयर पर भी सभी नौसेना अपनी रणनीति और महारत को साझा करेंगे. ये अभ्यास दो चरण में आयोजित होगा. पहला- हार्बर फेज जिसमें अभ्यास के लिए रणनीति तैयार की जाएगी और दूसरे फेज में समुद्र में उसे अंजाम दिया जाएगा.
इस मल्टी नेशनल अभ्यास में सभी देशों की नौसेना के बीच तालमेल और समन्वय को आगे बढ़ाना है एडवांस्ड सर्फेस एंड सबमरीन वॉरफेयर अभ्यास और फ़ायरिंग ड्रिल को अंजाम देना है. पहली बार ऑस्ट्रेलिया इस अभ्यास की मेज़बानी कर रहा है, जहां चीन के एनर्जी ट्रेड के वैकल्पिक रूट को चोक करने का भी अभ्यास होगा.
मालाबार अभ्यास की शुरुआत 1992 में भारत और अमेरिका के बीच शुरू हुई थी. उसके बाद 2015 में जापान और फिर 2020 में ऑस्ट्रेलिया इसमें शामिल हुआ. पहली बार ऑस्ट्रेलिया इस मल्टीनेशनल सैन्य अभ्यास को होस्ट कर रहा है. इससे पहले पिछले साल जापान ने इसकी मेज़बानी की थी, जिसमें अमेरिका की तरफ से उसके कैरियर बैटल ग्रुप यूएसएस रोनल्ड रीगन हिस्सा ने लिया था, जो कि एक निमित्ज क्लास न्यूक्लियर पावर्ड सुपर कैरियर है.
पहले ही चीन की हरकतों के आभास को देखते हुए भारत और अमेरिका जापान के साथ मिलकर मालाबार अभ्यास को अंजाम देता आया और पिछले तीन साल से ऑस्ट्रेलिया भी इस मलाबार नौसैन्य अभ्यास का हिस्सा है. ऑस्ट्रेलिया का समुद्री इलाक़ा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर युद्ध या तनाव की स्थिति में मलक्का स्ट्रेट से चीनी एनर्जी ट्रेड को चोक किया तो बीजिंग अपने एनर्जी ट्रेड को ऑस्ट्रेलिया के नीचे से लेकर जाने को बाध्य हो जाएगा.
हालांकि वो चीन के लिए काफ़ी महंगा सौदा होगा, लेकिन अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस वैकल्पिक रूट को भी चुनने को मजबूर हो सकता है और ऐसे में ऑस्ट्रेलिया में होने जाने वाले इस मालाबार अभ्यास से क्वॉड समूह चीन को साफ संदेश देगा कि अगर नेविगेशन के बेजां इस्तेमाल पर उसने रोक नहीं लगाई, तो उसके एनर्जी ट्रेड के वैकल्पिक रास्ते पर रोक लगाई जा सकती है.