उत्तर प्रदेश

जिलाधिकारी धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने पेश की इंसानियत की मिसाल !

शाहजहांपुर-: (फैयाज़ साग़री) -: कभी-कभी कोई छोटा सा दृश्य कोई साधारण सी घटना हमारे भीतर बड़ी हलचल पैदा कर जाती है। वो हमें याद दिलाती है कि प्रशासनिक कुर्सियों के पीछे भी दिल धड़कते हैं और कुछ दिल तो इतने विशाल होते हैं कि उनमें दूसरों की तकलीफों की गूंज साफ साफ सुनाई देती है। शाहजहांपुर के जिलाधिकारी धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने हाल ही में जो किया वह एक फाइल की नोटिंग नहीं एक पीढ़ी के आत्मबल को दिशा देने वाला कार्य है।

एक गरीब छात्र जिसके सपनों की उड़ान किताबों की कीमतों में उलझ गई थी वह साहस जुटाकर डीएम कार्यालय पहुंचा। उसके पास कोई पहचान नहीं थी न ही किसी बड़े आदमी का लिखा हुआ सिफारिशी पर्चा बस एक सीधी-सी बात सर किताबें खरीदनी हैं पैसे नहीं हैं। इस एक वाक्य ने शायद डीएम साहब के भीतर बैठे एक पिता को जगा दिया। उन्होंने न किसी प्रक्रिया का हवाला दिया, न फॉर्म भरवाया बस जेब से पैसे निकाले और कहा, पढ़ाई कभी रुकनी नहीं चाहिए।

यह मदद केवल रुपए की नहीं थी। यह व्यवस्था में मौजूद उस भरोसे की थी, जो अक्सर कागज़ों के बोझ तले दब जाता है। और जब अगली सुबह वही लड़का बची हुई राशि वापस लौटाने पहुंचा, तो उसकी ईमानदारी देखकर जिलाधिकारी का जवाब था इन पैसों से एक पेन और डायरी ले लो… और जब कभी सक्षम हो, किसी और की मदद कर देना।यही है प्रशासन का असली चेहरा जो न सिर्फ समस्याओं को हल करता है बल्कि भविष्य को संवेदना और संस्कार के धागों से बुनता है। जहां एक ओर व्यवस्था पर आरोपों की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है। वहीं धर्मेंद्र प्रताप सिंह जैसे अफसर उन चिरागों की तरह हैं जो अंधेरे में भी राह दिखाते हैं।

उन्होंने यह साबित किया कि अफसर वह नहीं होता जो सिर्फ आदेश दे—बल्कि वह होता है जो उम्मीद देखता है जरूरत समझता है और बिना शोर किए मदद का हाथ बढ़ा देता है। यह घटना हम सबको यह सोचने पर मजबूर करती है क्या हमारे भीतर इतनी जगह बची है कि हम किसी जरूरतमंद की पुकार को सुन सकें? क्या हम किसी के लिए एक पेन और एक डायरी बन सकते हैं। शाहजहांपुर के जिलाधिकारी ने जो दिया वह केवल आर्थिक सहायता नहीं बल्कि जीवन में आगे बढ़ने का आत्मविश्वास था। और यह आत्मविश्वास… किसी भी शासन व्यवस्था का सबसे सुंदर उपहार होता है।

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