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बढ़ सकती हैं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje’)की मुश्किलें

जयपुर. सीएम गहलोत वर्सेज सचिन पायलट की लड़ाई अब संगठन से निकलकर सीधे सत्ता संग्राम तक पहुंच गई है. पायलट ने इसे स्वीकारा भी कि उनकी लड़ाई संगठन नहीं, बल्कि गहलोत की सत्ता के खिलाफ है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje’)के भ्रष्टाचार के खिलाफ है. इस करप्शन के विरुद्ध एफआईआर न होने के खिलाफ है. उन्होंने इशारों-इशारों में कहा कि उनकी यह लड़ाई उस ‘मिलीभगत’ के भी खिलाफ है, जो सत्ता की अदला-बदली में एक-दूसरे को बचाने के कुचक्र रचते हैं.

पायलट ने पार्टी के न चाहने के बावजूद शहीद स्मारक पर अपनी सरकार के खिलाफ पांच घंटे का अनशन कर अपने इरादे जता दिए हैं. दिल्ली के नेताओं की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष अनुशासनहीनता की धमकियों को भी उन्होंने नजरअंदाज कर दिया.
सिद्धू की तरह पार्टी में रहकर आवाज बुलंद करेंगे
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अब चुनाव में काफी कम समय रह गया है. इसलिए पायलट भी इतने कम समय के लिए सीएम बनने के मूड में अब नहीं है, बल्कि उनकी ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ अगले विधानसभा चुनाव के बाद स्वाभाविक सीएम फेस बनने की है. इसलिए वो सिद्धू की तरह ही कांग्रेस न छोड़ने की रणनीति अपना रहे हैं और पार्टी में रहकर ही अपनी आवाज बुलंद करते रहेंगे. वे संगठन के बजाए सीएम को टारगेट करेंगे. इसी प्लानिंग पर चलते हुए पायलट ने पार्टी के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला. ऐसे में आलाकमान उनके खिलाफ कार्रवाई को लेकर पसोपेश में है

दिल्ली में खरगे-रंधावा से मिल सकते हैं पायलट
यही वजह है कि प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा राजस्थान के तय कार्यक्रम के बावजूद जयपुर नहीं आए. दिल्ली मुख्यालय पर कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भी मीडिया से बातचीत में पायलट के मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी. कुछ भी बोलने से इनकार करने साथ ही खेड़ा ने कहा कि इसके लिए पार्टी लिखित में बयान जारी करेगी. लेकिन देर शाम तक कोई बयान नहीं आया. इस बीच 12 अप्रैल को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के साथ सचिन पायलट की मुलाकात हो सकती है. इसी के बाद सचिन अपने अगले कदम का ऐलान करेंगे, जिसको लेकर राजनीति गलियारों में खूब उत्सुकता है.

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अपनी लड़ाई में सचिन ने राजे की मुश्किलें बढ़ाईं
दरअसल, पायलट का करप्शन का उनका मुद्दा जायज है. खुद सीएम गहलोत 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले राजे के खिलाफ जांच कराने के वादे कर चुके हैं. जनता ने कांग्रेस को सत्ता दी, लेकिन सीएम बनने के बाद भी गहलोत ने राजे के खिलाफ कोई इनीशिएटिव नहीं लिया. पायलट इसी को ‘मिलीभगत’ की संज्ञा देते हैं और आरोप लगाते हैं कि इससे साफ लगता है कि गहलोत-राजे अंदरखाते मिले हुए हैं. वे सिर्फ दिखावे के लिए परस्पर आरोप लगाते हैं. काबिले गौर है कि पायलट की मानेसर बगावत के दौरान भी राजे पर गहलोत सरकार को अपरोक्ष रूप से बचाने के आरोप लगे थे. पहले ही अपनी पार्टी में अलग ग्रुप के कारण निशाने पर आईं वसुंधरा राजे की मुश्किलें पायलट के इस कदम के बाद बढ़ सकती हैं. उनके व्यक्तिगत शक्ति प्रदर्शन से नाराजगी के बीच करप्शन का केस पिटारे का जिन्न बन सकता है.

साढ़े चार साल से चल रहा कांग्रेस में कुर्सी का किस्सा
हालांकि कभी भाजपा सरकार में वसुंधरा के करीबी रहे और अब उनके खेमे में न होने के बावजूद नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ ने राजे का एक तरह से बचाव किया है. राठौड़ ने पायलट को घेरते हुए कहा कि वो साढ़े चार साल तक तो विधानसभा में करप्शन पर एक शब्द भी नहीं बोले. अब दूसरे के कंधे के सहारे अपनी सरकार की जड़ों में मठ्ठा डालने में लगे हैं. राजे के कार्यकाल में भ्रष्टाचार की जांच की मांग को लेकर अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन करने वाले पायलट राज्य में दलितों-महिलाओं पर अत्याचार पर तो चुप्पी साधे रखते हैं. दरअसल जिस दिन से कांग्रेस सरकार बनी है, तभी से इनके यहां पर किस्सा कुर्सी का चल रहा है.

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