महिलाओं के लिए सुख की परिभाषा बदलने वाली महिला !

1929 में अमेरिका के विचिटा में जन्मी बेट्टी डॉडसन (पीएच.डी.) ऐसे दौर में बड़ी हुईं जब खुले रूप से यौन विषयों पर चर्चा करना लगभग वर्जित था। एक रूढ़िवादी परिवार में पली-बढ़ी बेट्टी ने जल्द ही समझ लिया कि इच्छा और आत्म-संतोष से जुड़े प्रश्नों का उत्तर या तो चुप्पी से दिया जाता है या फिर डांट-फटकार से। कंसास के विचिटा में स्थित एक छोटे और पारंपरिक शहर में उनका बचपन बीता, जहाँ उन्होंने बचपन से ही चित्रांकन और पेंटिंग के प्रति गहरी रुचि विकसित कर ली। 18 वर्ष की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते वह फैशन इलस्ट्रेटर के रूप में अपने परिवार की आमदनी में योगदान देने लगी थीं।
1950 में न्यूयॉर्क जाने के बाद, डॉडसन ने आर्ट स्टूडेंट्स लीग ऑफ न्यूयॉर्क में प्रसिद्ध चित्रकार फ्रैंक जे. राइली के मार्गदर्शन में अध्ययन किया और फिगर ड्राइंग में अपने कौशल को निखारा। न्यूयॉर्क में उनके शुरुआती वर्ष कला संबंधी प्रयासों से भरे रहे—उन्होंने दीर्घाओं में कामुक कला का प्रदर्शन किया और एक चित्रकार के रूप में अपनी प्रतिभा को संवारा। हालाँकि उनकी कामुक कला को मुख्यधारा में अधिक स्थान नहीं मिला, लेकिन उन्होंने पारंपरिक तकनीकों को साहसिक रूप से महिला यौन अभिव्यक्ति के चित्रण के साथ जोड़ा।
जैसे-जैसे वह शहर के रचनात्मक और वैकल्पिक सांस्कृतिक वातावरण में गहरी उतरती गईं, उन्होंने महिलाओं पर थोपे गए कठोर सामाजिक मानकों पर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए। उनकी प्रदर्शित कलाकृतियाँ मानवीय शरीर का निर्भीक उत्सव थीं, ऐसे समय में जब इस तरह की चित्रकारी को प्रायः सेंसर कर दिया जाता था। आगे चलकर उनकी कलात्मक दृष्टि और यौन शिक्षा का संगम हुआ, जहाँ उन्होंने रचनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से महिला शरीर संरचना और यौनता को समझने और उसे सहज रूप से स्वीकारने का प्रयास किया।
उन्होंने एक विज्ञापन कार्यकारी से विवाह किया, लेकिन यौन असंगति के कारण यह रिश्ता तलाक में समाप्त हुआ। 20वीं सदी के मध्य के अमेरिका में, विशेष रूप से महिलाओं के लिए, तलाक समाज में एक बड़ा कलंक माना जाता था। कामुक विषयों पर केंद्रित एक कलाकार के रूप में डॉडसन का करियर 1960-70 के दशक के पुरुष-प्रधान कला जगत से टकराव में रहा, जहाँ उनकी कला को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे अश्लीलता की श्रेणी में रखा गया। इसके अलावा, उनका प्रतिनिधानात्मक (रियलिस्टिक) चित्रण उस दौर के अमूर्त (एब्सट्रैक्ट) कला प्रवृत्तियों से मेल नहीं खाता था, जिससे उनकी पहचान सीमित हो गई। जब उनका कला करियर अस्थिर होने लगा, तो उन्होंने स्वतंत्र रूप से अंतर्वस्त्र इलस्ट्रेटर के रूप में काम किया। यह काम उन्हें रचनात्मक रूप से संतोषजनक नहीं लगा, लेकिन जीविका चलाने के लिए आवश्यक था। अंतर्वस्त्र विज्ञापनों के अलावा, उन्होंने बच्चों की किताबों के लिए चित्र बनाए और 1960 के दशक में एस्क्वायर और प्लेबॉय जैसी पत्रिकाओं के लिए भी काम किया। हालाँकि, बाद में उन्होंने प्लेबॉय की आलोचना की, यह कहते हुए कि पत्रिका महिलाओं को पुरुषों की नजर से वस्तु के रूप में प्रस्तुत करती थी।
1960 के दशक के मध्य में तलाक के बाद, उन्होंने “यौन आत्म-खोज” की यात्रा शुरू की—एक ऐसा प्रयास जिससे वह उन सुखों को समझने और पुनः पाने की कोशिश कर रही थीं जिन्हें लंबे समय तक नकारा या दबाया गया था। उनकी यात्रा एक पारंपरिक, यौन-विहीन विवाह से लेकर आत्म-खोज के लिए समर्पित जीवन तक फैली हुई थी—जो उनकी कहानी का कम चर्चित, लेकिन बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है। व्यक्तिगत रूप से यौन दमन और सामाजिक आलोचना का सामना करने के अनुभव ने उनके अंदर यौन स्वतंत्रता के प्रति आजीवन समर्पण की भावना पैदा की, जो आगे चलकर उनके जीवन का केंद्रीय उद्देश्य बन गया।
बेट्टी डॉडसन के व्यक्तिगत संघर्षों ने अंततः उन्हें बॉडीसेक्स नामक कार्यशालाओं की श्रृंखला बनाने के लिए प्रेरित किया—जिसने महिलाओं की यौनता को देखने और अनुभव करने के तरीके को नए सिरे से परिभाषित किया। इन कार्यशालाओं में डॉडसन ने कहानी कहने की तकनीक का उपयोग करके महिलाओं को यौन शर्म से मुक्त होने में मदद की। ये सत्र महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और गैर-आलोचनात्मक स्थान प्रदान करते थे, जहाँ वे अपने शरीर को सहजता से खोज सकती थीं और किसी अपराधबोध के बिना चरमसुख को अपना सकती थीं।
डॉडसन के इस नवाचार में भगशेफ (क्लिटोरल) उत्तेजना, एक हिटाची मैजिक वैंड (वाइब्रेटर), योनि प्रवेश के लिए एक विशिष्ट धातु का रेस्टिंग डिल्डो, सचेत श्वास (कांशस ब्रीदिंग), और श्रोणि (पेल्विक) गति को शामिल किया गया—जो आत्म-संतोष को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए थे। वैज्ञानिक शोधों ने उनकी इस विधि को मान्यता दी है, जिसमें पाया गया कि पहले कभी चरमसुख (ओर्गैज़्म) न प्राप्त कर पाने वाली 93% महिलाओं ने उनकी तकनीक को अपनाकर इस सुख को प्राप्त किया। महिलाओं को अपने शरीर को समझने और प्रेम करने की शिक्षा देकर, डॉडसन ने उन्हें उन सामाजिक ताकतों का विरोध करने के लिए सशक्त किया जो महिला यौनता को नियंत्रित करने की कोशिश करती हैं।
अनेक महिलाओं को ये बचपन से सिखाया जाता था, कि स्वयं को छूना ये छिपाने योग्य या यहाँ तक कि निंदनीय कार्य है। डॉडसन ने महसूस किया कि यह आत्मसात की गई शर्म यौन स्वतंत्रता की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक थी। अपने अतीत का सामना करके और अपनी इच्छाओं को पूर्ण रूप से अपनाकर, उन्होंने अनगिनत महिलाओं के लिए एक उदाहरण स्थापित किया। उनकी कार्यशालाएँ केवल तकनीकों को सीखने तक सीमित नहीं थीं; वे एक पूरी उम्र के आत्म-दमन को तोड़ने और गरिमा एवं स्वायत्तता को पुनः प्राप्त करने की प्रक्रिया थीं।
आत्म-संतोष से जुड़े भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक लाभों पर उनकी खुली बातचीत उन महिलाओं के साथ गहराई से जुड़ी, जो पारंपरिक यौन शिक्षा से स्वयं को लंबे समय से उपेक्षित और अलग-थलग महसूस कर रही थीं। डॉडसन का मानना था कि हस्तमैथुन कोई एकांत में किया जाने वाला और शर्मनाक कार्य नहीं है, बल्कि यह आत्म-देखभाल (सेल्फ-केयर) का एक स्वाभाविक और सशक्त रूप है। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, उन्होंने महिलाओं को यह समझाने का प्रयास किया कि उनके शरीर केवल बाहरी नियंत्रण का साधन नहीं हैं, बल्कि आनंद और शक्ति के स्रोत हैं।
एक ऐसे समाज में जहाँ महिला यौनता को कठोर नियमों से बाँधा गया था और अपराधबोध से ढका गया था, डॉडसन की हस्तमैथुन, चरमसुख और आत्म-प्रेम पर खुली चर्चाएँ क्रांतिकारी और खतरनाक मानी गईं। चर्च के ईसाई और पितृसत्तात्मक मूल्यों में डूबे अमेरिका कि मुख्यधारा में लंबे समय तक यही माना गया था कि सेक्स केवल विवाह के भीतर और संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से ही होना चाहिए। इस संकीर्ण दायरे से बाहर जाने वाली किसी भी चीज़ को संदेह की दृष्टि से देखा जाता था।
सामाजिक मान्यताओं और पितृसत्तात्मक संस्थानों से संघर्ष के अलावा, डॉडसन की यात्रा एक व्यक्तिगत लड़ाई भी थी—उस शर्म के खिलाफ, जिसे सांस्कृतिक दमन ने महिलाओं के भीतर गहराई तक जड़ें जमाने दी थीं। अपने साक्षात्कारों में, उन्होंने अक्सर उन अपराधबोध और आत्म-संदेह के अनुभवों को साझा किया, जिनका सामना उन्होंने अपने यौन जागरण के शुरुआती वर्षों में किया था।
नारीवादी हलकों में भी डॉडसन की कार्यशालाएँ कभी-कभी विवाद का विषय बनीं। जब उन्होंने 1970 के दशक की शुरुआत में बॉडीसेक्स कार्यशालाएँ आयोजित करनी शुरू कीं, तो नारीवादी संगठनों ने भी उसपर टिप्पणियाँ की। आलोचकों ने प्रश्न उठाए कि क्या सार्वजनिक रूप से हस्तमैथुन प्रदर्शित करना और कामुक आनंद पर खुली चर्चा करना नारीवादी राजनीतिक विचारधारा के अनुरूप हो सकता है। इस पर प्रतिक्रियाएँ मिश्रित रहीं—कुछ ने उन्हें मुक्ति की प्रतीक माना, जबकि अन्य ने उनके कार्य को सतही या सभ्य समाज के लिए बहुत अधिक क्रांतिकारी करार दिया।
हालाँकि डॉडसन नारीवाद के साथ खड़ी थीं, लेकिन यौन आनंद और वाइब्रेटर पर आधारित उनकी कार्यशालाएँ उस नारीवादी धड़े से टकराती रहीं जो पोर्नोग्राफी और खुले यौन चित्रण को शोषणकारी मानता था। 1973 में नेशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर वीमेन (NOW) के एक सम्मेलन में जब उन्होंने योनि (वुल्वा) पर आधारित स्लाइड शो प्रस्तुत किया, तो लोगों ने नकारात्मक प्रतिक्रिया में फुसफुसाहट और तानों से प्रतिक्रिया दी, लेकिन उनके वाइब्रेटर प्रदर्शन को कुछ समर्थन भी मिला। मुख्यधारा के समाज ने उनके कार्य को अनैतिक मानकर खारिज कर दिया। हस्तमैथुन को बढ़ावा देना—जो एक वर्जित विषय था—उन सामाजिक मानकों को चुनौती देता था जो महिला यौनता को केवल विवाह और संतानोत्पत्ति से जोड़कर देखते थे।
उनकी पहली पुस्तक लिबरेटिंग मास्टर्बेशन (1973) को मुख्यधारा के प्रकाशकों ने अस्वीकार कर दिया, जिससे उन्हें इसे स्वयं प्रकाशित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यहाँ तक कि जब सेक्स फॉर वन (1987) एक बेस्टसेलर बनी, तब भी इसकी सामग्री को सेंसरशिप और “विशेष वर्ग के लिए” या “अशोभनीय” बताकर खारिज कर दिया गया। हस्तमैथुन के ध्यान-संबंधी प्रभावों पर उनके ईईजी (EEG) अध्ययन—जो उन्होंने स्वयं पर किया—को उस चिकित्सा जगत ने दरकिनार कर दिया,
जिसने ऐतिहासिक रूप से महिलाओं के यौन स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ किया था। उस दौर के अश्लीलता कानूनों के चलते उनकी कार्यशालाएँ और स्पष्ट सामग्री कानूनी चुनौतियों के दायरे में भी आईं। उन्हें संस्थागत समर्थन की कमी झेलनी पड़ी, जिससे उनके प्रचार-प्रसार का मुख्य माध्यम जमीनी स्तर की गतिविधियाँ बनीं, जैसे कार्यशालाएँ और प्रत्यक्ष बिक्री।
हालाँकि उनका कार्य विकलांग महिलाओं को भी शामिल करने के उद्देश्य से था, लेकिन हाशिए पर मौजूद समूहों की यौनता की व्यापक समाजिक उपेक्षा के कारण इसकी पहुँच सीमित रही। ये बात सही है कि एक श्वेत महिला होने के नाते उन्हें कुछ सामाजिक विशेषाधिकार मिले, लेकिन उन्होंने पितृसत्तात्मक व्यवस्था से जूझना जारी रखा। फिर भी, डॉडसन अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटीं। उन्होंने अपनी विधियों को लिबरेटिंग मास्टर्बेशन: ए मेडिटेशन ऑन सेल्फ-लव और सेक्स फॉर वन: द जॉय ऑफ सेल्फ-लविंग जैसी पुस्तकों में प्रलेखित किया, जो अंतरराष्ट्रीय बेस्टसेलर बनीं और दर्जनों भाषाओं में अनूदित की गईं।
डॉडसन ने कई आत्मकथाएँ भी लिखीं—जैसे माय रोमांटिक लव वॉर्स और सेक्स बाय डिज़ाइन—जो उनके व्यक्तिगत संघर्षों, उनकी कलात्मक यात्रा और यौन स्वतंत्रता के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं। इन पुस्तकों ने न केवल हस्तमैथुन के विषय को रहस्यमुक्त किया, बल्कि महिलाओं को दशकों की दमनकारी यौन शिक्षा से मुक्त होने का एक ठोस मार्ग भी प्रदान किया। इस प्रक्रिया में, डॉडसन ने प्रभावी रूप से इस धारणा को नया रूप दिया कि पुरुष-प्रधान समाज में यौन रूप से स्वायत्त महिला होने का वास्तव में क्या अर्थ है।
डॉडसन ने अपनी सक्रियता के लिए पुस्तकों की बिक्री और कार्यशालाओं के माध्यम से धन जुटाया, लेकिन इस संघर्ष में उन्हें वित्तीय अस्थिरता का सामना करना पड़ा। उनका संघर्ष केवल सांस्कृतिक विरोध तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्हें संस्थागत ताकतों से भी लड़ना पड़ा, जो उनके कार्य को सेंसर करने या हाशिए पर डालने का प्रयास कर रही थीं। मुख्यधारा की मीडिया की रूढ़िवादिता से लेकर शैक्षणिक संस्थानों की कड़ी नीतियों तक, जब भी उन्होंने महिलाओं को उनके शरीर के बारे में शिक्षित करने का प्रयास किया, उन्हें नौकरशाही अड़चनों और कभी-कभी सीधी शत्रुता का सामना करना पड़ा।
1980 के दशक में, जब उन्होंने मेल-ऑर्डर के माध्यम से वाइब्रेटर बेचना शुरू किया, तो उन्हें डाक विभाग की कड़ी निगरानी झेलनी पड़ी। उन्होंने इन प्रतिबंधों से बचने के लिए वाइब्रेटरों को “मसाजर” के रूप में लेबल किया और उनके साथ शैक्षिक पुस्तिकाएँ जोड़ीं, ताकि इन्हें स्वास्थ्य उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। जब अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में उनकी कामुक कला को सीमा शुल्क अधिकारियों ने ज़ब्त कर लिया, तो उन्होंने अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) के साथ मिलकर कलात्मक अभिव्यक्ति के अधिकारों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी।
फिर भी, डॉडसन अपने विचारों पर अडिग रहीं। उनका मानना था कि अपने शरीर को समझना सिर्फ एक व्यक्तिगत कार्य नहीं, बल्कि पितृसत्तात्मक नियंत्रण और दमन के खिलाफ एक राजनीतिक बयान भी है। उनका प्रसिद्ध कथन— “बेहतर चरमसुख, बेहतर दुनिया”—उन सभी के लिए एक नारा बन गया जो यह मानते थे कि यौन स्वतंत्रता, व्यक्तिगत और सामाजिक मुक्ति से अविभाज्य रूप से जुड़ी हुई है। डॉडसन के लिए, आत्म-संतोष का हर कार्य एक विद्रोह था; हर बार जब कोई महिला अपनी इच्छाओं को पूर्ण रूप से स्वीकार करती,
तो वह उन दमनकारी संरचनाओं को कमजोर करती जो सदियों से महिलाओं को चुप और अधीन बनाए रखने के लिए बनाई गई थीं। डॉडसन के व्यक्तित्व का एक आकर्षक, लेकिन कम प्रलेखित पहलू था—उनका हास्य। चाहे कार्यशालाओं में अपने शरीर को “सबसे अच्छा दोस्त” कहकर परिचय देना हो या मुख्यधारा की नारीवादी पुस्तकों की हल्के-फुल्के अंदाज में आलोचना करना, उनकी चुटीली बुद्धि ने गहरी जमी हुई यौन शर्म को तोड़ने में मदद की। उनकी यह विनोदपूर्ण शैली उनकी शिक्षाओं को अधिक सुलभ बनाती थी और महिलाओं को यह एहसास दिलाती थी कि वे यौन दमन से जूझने में अकेली नहीं हैं।
डॉडसन अपनी बेबाक और अक्सर हास्यपूर्ण आलोचनाओं के लिए जानी जाती थीं, चाहे वह पारंपरिक यौन दृष्टिकोण हो या मुख्यधारा की नारीवादी धारणाएँ। उन्होंने ईव एंसलर की द वैजाइना मोनोलॉग्स जैसी कृतियों की खुलकर आलोचना की, यह तर्क देते हुए कि वे कभी-कभी महिला यौनिकता को एक संकीर्ण, पुरुष-विरोधी दृष्टिकोण तक सीमित कर देती हैं। उनका मानना था कि बिना राजनीतिक हस्तक्षेप या नैतिकता के सरल निष्कर्षों के यौन अनुभवों को पूरी तरह से अपनाना चाहिए। पारंपरिक यौन शिक्षा में महिलाओं उपेक्षित पहलुओं कि स्पष्ट चर्चा करके आत्म-सुख के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक लाभों पर जोर दिया गयाs। डॉडसन का यह आग्रह कि हस्तमैथुन आत्म-प्रेम और पितृसत्तात्मक नियंत्रण के विरुद्ध प्रतिरोध का एक रूप है, आज भी यौन चिकित्सा और नारीवादी साहित्य में नई दृष्टिकोणों को प्रेरित करता है।
शुरुवाती दिनों में महिलाओं के लिए शुरू कार्यशालाओं में समय के साथ उनके शारीरिक और भावनात्मक पहलुओं के अनुसार समलैंगिक महिलाओं और नॉन-बाइनरी महिलाओं पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। तृतीयपंथी या ट्रांसजेंडर लोगों पर उन्होंने काफी बाद में थोड़ा ध्यान दे सकीं और इन ट्रांस अनुभवों को पर्याप्त रूप से शामिल न करने की कमी को स्वीकार किया। युवा कार्यकर्ताओं से अपने कार्य को आगे बढ़ाने का आग्रह किया। 1980 और 1990 के दशक के दौरान, उन्होंने एलजीबीटीक्यू+ कार्यकर्ताओं के साथ सहयोग किया और सुरक्षित यौन संबंधों को बढ़ावा दिया। अपने लेखन में, उन्होंने कंडोम के उपयोग और पारस्परिक आनंद पर विशेष जोर दिया, ताकि यौन स्वतंत्रता के साथ-साथ सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके।
अपने 70वें और 80वें दशक में, डॉडसन ने वृद्धावस्था में यौनिकता पर व्यापक रूप से लिखा, इस धारणा को खारिज करते हुए कि बढ़ती उम्र इच्छाओं को समाप्त कर देती है। उन्होंने वाइब्रेटर को न केवल आनंद का साधन, बल्कि श्रोणि स्वास्थ्य और यौन सक्रियता बनाए रखने के उपकरण के रूप में भी प्रचारित किया। मेनोपॉज, योनि के संकुचन और हार्मोनल परिवर्तनों (जैसे टेस्टोस्टेरोन क्रीम के उपयोग) पर उनकी खुली चर्चा ने वृद्ध महिलाओं के शरीर से जुड़े कई वर्जित विषयों को तोड़ा। डॉडसन ने पूंजीवाद द्वारा महिलाओं की असुरक्षाओं के शोषण की आलोचना की—चाहे वह सौंदर्य उद्योग हो या पोर्न से होने वाला व्यावसायिक लाभ।
उन्होंने वित्तीय स्वतंत्रता को यौन मुक्ति का एक महत्वपूर्ण पहलू बताया। वियतनाम युद्ध के दौरान, उन्होंने विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया और अपने भाषणों में सैन्यवाद को पितृसत्तात्मक हिंसा से जोड़ा। उन्होंने यौन कार्य के अपराधीकरण का विरोध किया और सेक्स वर्करों व पोर्न कलाकारों के साथ सहयोग किया, ताकि आनंद और यौन राजनीति में उनके अनुभवों को मुख्यधारा की चर्चा का हिस्सा बनाया जा सके।
डॉडसन ने 1990 के दशक में यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में बॉडीसेक्स सत्र आयोजित किए, जहां उन्होंने अपनी विधियों को सांस्कृतिक संदर्भों के अनुसार ढाला। स्वीडन में, उन्होंने यौन शिक्षकों के साथ मिलकर अपने कार्य को सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों का हिस्सा बनाने में सहयोग किया। हालांकि जापान में अश्लीलता संबंधी कड़े कानून थे, फिर भी उनकी पुस्तक Sex for One वहाँ की नारीवादियों के बीच गुप्त रूप से लोकप्रिय हुई और आत्म-आनंद पर आधारित भूमिगत समूहों को प्रेरित किया।
डॉडसन ने इंटरनेट को जल्दी अपनाया—1999 में अपनी वेबसाइट लॉन्च की और हस्तमैथुन पर डाउनलोड करने योग्य मार्गदर्शिकाएँ उपलब्ध कराईं। उन्होंने ऑनलाइन समुदायों की प्रशंसा की क्योंकि इससे यौन शिक्षा को लोकतांत्रिक बनाने में मदद मिली, लेकिन साथ ही उन्होंने एल्गोरिदम-आधारित पोर्न व्यसन के खतरों की चेतावनी भी दी।
अपनी उम्र के 80वें दशक में, उन्होंने पर्यावरणीय क्षरण के यौन स्वास्थ्य पर प्रभावों को लेकर चिंता व्यक्त की, जैसे कि विषाक्त पदार्थों का प्रजनन क्षमता पर प्रभाव। उन्होंने सतत विकास और यौन कल्याण को जोड़ने वाली इको-सेक्सुअल पहलों को वित्तीय सहयोग दिया। उन्होंने सेक्स टॉय उद्योग में प्लास्टिक कचरे की आलोचना की और जैव-अवायवीय (biodegradable) उत्पादों व पुन: प्रयोज्य उपकरणों को बढ़ावा देने की वकालत की।
COVID-19 महामारी के दौरान, उन्होंने बॉडीसेक्स सत्रों को ज़ूम पर स्थानांतरित कर दिया, जिससे यह वैश्विक स्तर पर अधिक पहुँच योग्य हुआ और उन्होंने ऑनलाइन सहभागिता के लिए उपयुक्त अभ्यास विकसित किए। अपनी प्रसिद्धि के बावजूद, डॉडसन ने एक सादगीपूर्ण जीवन जिया और न्यूयॉर्क के रेंट-स्टैबिलाइज़्ड अपार्टमेंट में रहीं, जहाँ उन्होंने विलासिता को अस्वीकार कर कम आय वाली महिलाओं के लिए कार्यशालाओं को वित्तीय सहयोग देने को प्राथमिकता दी। उन्होंने अपनी पुस्तकों और आयोजनों से होने वाली कमाई को अपने सहयोगियों के साथ समान रूप से बाँटा, जिससे पूंजीवादी मानदंडों को चुनौती दी और सक्रियतावाद में वित्तीय समानता का उदाहरण पेश किया।
बेट्टी डॉडसन: यौन शिक्षा और नारीवादी आंदोलन में क्रांतिकारी योगदान
बेट्टी डॉडसन के दूरदर्शी योगदान ने यौन शिक्षकों, कार्यकर्ताओं और कलाकारों की आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जो आज भी यौन विषयों पर पारंपरिक सीमाओं को चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने जिन मूलभूत सिद्धांतों को बढ़ावा दिया, वे अब सेक्स-पॉजिटिव नारीवाद की नींव बन चुके हैं—एक ऐसा आंदोलन जो महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए यौन स्वतंत्रता को अनिवार्य मानता है। डॉडसन के प्रभाव को आधुनिक यौन शिक्षा पाठ्यक्रमों में देखा जा सकता है, जहाँ अब आनंद और सहमति पर चर्चाएँ शामिल की जा रही हैं। इसके अलावा, महिलाओं के अनुकूल सेक्स टॉयज़ के बाज़ार और महिला यौन इच्छाओं को केंद्र में रखकर लिखी गई साहित्यिक कृतियों के बढ़ते प्रसार में भी उनकी विरासत स्पष्ट रूप से झलकती है। बेट्टी डॉडसन मेथड की प्रभावशीलता को बार-बार वैज्ञानिक अध्ययनों ने प्रमाणित किया है।
द साइंटिफिक वर्ल्ड जर्नल और PLOS ONE जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित कठोर शोध दर्शाते हैं कि उनकी समग्र दृष्टिकोण वाली पद्धति न केवल महिलाओं में कामोन्माद (orgasm) की दर को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाती है, बल्कि यौन दमन से संबंधित दीर्घकालिक समस्याओं को हल करने के लिए एक सशक्त मॉडल भी प्रस्तुत करती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉडसन की तकनीकों को संस्थानों और शिक्षकों द्वारा संदर्भित किया जाता रहा है, जिससे उनके कार्य की परिवर्तनकारी क्षमता और प्रासंगिकता को और अधिक बल मिलता है। उनका प्रभाव अकादमिक और लोकप्रिय दोनों स्तरों पर यौन स्वास्थ्य संबंधी चर्चाओं में एक प्रेरणादायक शक्ति बना हुआ है।
समाज, संस्थानों और व्यक्तिगत संघर्षों का सामना करने के बावजूद, बेट्टी डॉडसन की अथक प्रयासों ने महिलाओं की यौनिकता पर होने वाली चर्चाओं को मौलिक रूप से बदल दिया। अपने स्वयं के आघात को एक आंदोलन में परिवर्तित करके, उन्होंने पीढ़ियों की महिलाओं को आत्म-प्रेम को अपनाने और प्रणालीगत शर्म से मुक्त होने का साहस दिया। उनका प्रसिद्ध मंत्र—“बेहतर कामोन्माद, बेहतर दुनिया”—इस विश्वास को दर्शाता है कि यौन स्वायत्तता केवल व्यक्तिगत कार्य नहीं, बल्कि सामूहिक मुक्ति का आधार भी है। डॉडसन के कार्यों ने पितृसत्तात्मक वर्जनाओं को चुनौती दी, नारीवादी असहमतियों का सामना किया और दमनकारी मान्यताओं को खंडित किया। जिससे भविष्य में इन विषयों पर वैश्विक स्तर पर बहसों और रिसर्च का रास्ता खुल सका।
उनका कहना था कि, पितृसत्ता महिलाओं को उनके स्वयं के शरीर के बारे में अज्ञानता में रखकर लाभ कमाती है, और आत्म-आनंद को प्रतिरोध के एक रूप के रूप में प्रस्तुत किया। उनकी दृढ़ता ने असंख्य महिलाओं को अपने जीवन पर अधिकार पाने का सामर्थ्य दिया। उन्होंने उन वर्जनाओं को तोड़ा जो महिलाओं की इच्छाओं को नियंत्रित या उनका बाजारीकरण करने का प्रयास करते हैं। डॉडसन ने महिलाओं को उनके शरीर और सुख को समझने के उपकरण प्रदान किए, जिससे उन्होंने उन व्यवस्थाओं पर आघात किया जो महिला अधीनता पर आधारित थीं। उनकी जीवनभर की मेहनत यह दर्शाती है कि यौन मुक्ति न केवल एक व्यक्तिगत यात्रा है, बल्कि एक तरह मुक्तिगामी राजनीतिक संघर्ष भी है।
डॉडसन का प्रभाव केवल पुस्तकों और कार्यशालाओं तक सीमित नहीं था। वह कई वृत्तचित्रों, टेलीविजन शो (जैसे नेटफ्लिक्स की द गूप लैब के एक चर्चित खंड) और साक्षात्कारों में दिखाई दीं, जहाँ उनकी बेबाक शैली और निर्भीक हास्य ने दर्शकों को आकर्षित किया। उनकी मीडिया उपस्थिति ने हस्तमैथुन, कामोन्माद और महिलाओं की यौन संतुष्टि पर होने वाली चर्चाओं को सामान्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी (NYU) के फेल्स लाइब्रेरी एंड स्पेशल कलेक्शंस में उनके लेखन, कार्यशाला नोट्स, कला और पत्र-व्यवहार संग्रहित किए गए हैं, जिससे शोधकर्ताओं के लिए उनकी विरासत संरक्षित रहे। बेट्टी डॉडसन‘स बॉडीसेक्स (2016) और द पैशनेट लाइफ (2022) जैसी फिल्में उनके प्रभाव की गहराई को उजागर करती हैं, जिनमें उनके सहयोगियों और कार्यकर्ताओं के साक्षात्कार शामिल हैं। उनकी यह विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए यौन स्वतंत्रता और आत्म-स्वीकृति के आंदोलन को प्रेरित करती रहेगी।
सेक्स एजुकेटर एनी स्प्रिंकल, कैरल क्वीन और डॉ. रूथ वेस्टहाइमर ने डॉडसन को अपना मार्गदर्शक माना। उन्होंने आवर बॉडीज, अवरसेल्व्स जैसी महत्वपूर्ण नारीवादी स्वास्थ्य पुस्तिका को भी प्रेरित किया। आज भी कार्यकर्ता, शिक्षक और विद्वान उनके कार्यों से प्रेरणा लेते हैं। सेक्स-पॉजिटिव नारीवाद और यौन स्वायत्तता पर चल रही चर्चाओं का एक बड़ा श्रेय उनकी निर्भीक कामों को जाता है। यौन स्वतंत्रता और यौन सामग्री के नियमन पर बहसें आज भी बहसें चल ही रही हैं और ऐसे में डॉडसन द्वारा उठाए गए प्रश्न प्रासंगिक हो जाते हैं।
– कल्पना पांडे