अंतराष्ट्रीय

इंसानों के लिए खतरे (Danger)की घंटी?

ज्वालामुखीय : हाल ही में एक रिसर्च के पब्लिश जर्नल ने सबको हैरत में डाल दिया. अर्थ एंड स्पेस साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध में ओशिन करंट, प्लेट टेक्टोनिक्स और जलवायु परिवर्तन (Danger) के बारे में जानकारी साझा की है. हाल में ही, हाई-डेफिनिशन रडार सैटेलाइट की मदद से धरती पर समुद्रों के अंदर 19 हजार से ज्यादा ज्वालामुखी का पता लगाया गया है.

सोनार से हो चुकी है मैपिंग
इससे पहले 2011 में, साउंड वेव्स के जरिये समुद्री चीजों का पता लगाने वाली ‘सोनार’ का इस्तेमाल कर, पृथ्वी पर मौजूद समुद्र के एक चौथाई हिस्सों का मैपिंग कर 24,000 से ज़्यादा सीमाउंट, या समुद्री पहाड़ों का पता लगाया गया था, जो ज्वालामुखीय गतिविधि की वजह से बने थे. हालांकि, 27,000 से ज़्यादा सीमाउंट ऐसे हैं जो सोनार की पकड़ में नहीं आए. हालांकि इस रिसर्च के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने बताया कि समुद्र तल की गहराई में 1,214 फुट की ऊंचाई वाले छोटे समुद्री ज्वालमुखियों का सही से अनुमान लगा सकते हैं.

प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी
इस सर्वे में काम कर रहे स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी समुद्री भूभौतिकीविद् डेविड सैंडविल ने बताया इस रिसर्च को शानदार बताया है. उन्होंने बताया कि भविष्य में इन ज्वालामुखियों में भीषण विस्फोट होता है तो भूकंप, सुनामी जैसी आपदाएं आ सकती हैं, जैसा कि पिछले साल टोंगा ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था. नए रिसर्च से मालूम चला है कि वैज्ञानिकों को समुद्र की अध्ययन के लिए सोनार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. बल्कि ‘राडार उपग्रह’ एक ऐसा प्रणाली समुद्र की गहराई के साथ-साथ उसके अंदर छुपी रहस्यों को पता लगाने में मदद करती है.

प्रशांत महासागर में स्थित टोंगा में कुछ साल पहले समुद्री ज्वालामुखी की वजह से सुनामी आई थी.

रडार सेटेलाइट प्रणाली काफी महत्वपूर्ण
यह प्रणाली समुद्र के नीचे की बनावटों को बेहतर तरीके से पेश करने में सक्षम है जो कि रसेअर्च की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. वैज्ञानिकों ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के क्रायोसैट-2 सहित कई उपग्रहों से डेटा एकत्र किया और पाया कि वे पानी के नीचे 3,609 फीट जितना छोटा टीला खोज सकते हैं. रिपोर्ट के अनुसार वे समुद्री पर्वतों के सबसे निचली सीमा तक पहुंच कर रिसर्च किया है. वैज्ञानिकों ने आगे बताया कि इस प्रणाली से पूर्वोत्तर अंटलांटिक महासागर की मैपिंग में काफी सहायता मिली है और इसके साथ साथ आइसलैंड में मेटल पल्म के बनने का कारण भी मालूम चला है. समुद्री धाराओं के अलावा ‘अपवेलिंग’ को भी बेहतर समझने में मदद मिली है. अपवेलिंग तब होता है जब समुद्र के तल से पानी सतह की ओर ऊपर की ओर बढ़ता है.

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