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राजनीति का अपराधीकरण और बढता भरष्टाचार, लोकतंत्र की जडों को कर रहा खोखला

स.संपादक शिवाकान्त पाठक 

किसी भी लोकतंत्र को जर्जर बनाने में अपराध और भ्रष्टाचार का बड़ा हाथ होता है। हमारे यहां अपराध और भ्रष्टाचार का स्तर लगातार बढ़ रहा है। इसकी बड़ी वजह गिरती राजनीतिक संस्कृति है। गांधीजी ने कहा था कि राजनीति में राजनीतिक नैतिकता और सिद्धांत बहुत जरूरी होते हैं। अगर राजनीति सिद्धांतों पर चलती तो ठीक था, पर आज की राजनीतिक संस्कृति ऐसी हो गई है कि स्वार्थ और राजनीतिक लाभ के चलते लोग लोकतांत्रिक ढांचे को जर्जर बनाते जा रहे हैं।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार, भारत भ्रष्टाचार के मामले में एक सौ अस्सी देशों की सूची में अस्सीवें पायदान पर है। भ्रष्टाचार न केवल धन-संपत्तियों में है, बल्कि सरकारी नीतियों के साथ अपराधिक कृत्यों को भी बढ़ावा देता है। देखा जाए तो इस वक्त देश का ऐसा कोई ऐसा महकमा नहीं बचा होगा, जहां रिश्वत का चलन न हो।

आज देश में जितनी तेजी से जनसंख्या वृद्धि हुई है, ठीक उसी के समांतर भ्रष्टाचार और अपराध ने भी अपनी जड़ें मजबूत की है। दरअसल, भ्रष्टाचार और अपराध की जड़ें राजनीति में ही हैं, क्योंकि आज राजनीति का अपराधीकरण और अपराध का राजनीतिकरण हो चुका है, जिसके चलते अपराधी, अधिकारी, नेता और व्यापारी, अपनी साठगांठ से लोकतंत्र के ढांचे को खोखला करते जा रहे हैं। जहां अधिकारी, अपराधी को संरक्षण देता है, वहीं नेता, अधिकारी और अपराधी दोनों की रक्षा करते हैं, जिससे चुनाव में इनसे फायदा लिया जा सके।यही वजह है कि इस बार लोकसभा चुनाव में उतरे सत्तर फीसद से अधिक उम्मीदवारों पर अपराधिक मुकदमे चल रहे थे।

पंद्रहवीं लोकसभा में लगभग तीस फीसद सदस्यों पर आपराधिक मामले दर्ज थे और सोलहवीं लोकसभा के सदस्यों का सबसे अधिक आपराधिक गतिविधियों मे लिप्त होने का खुलासा हुआ है।अनुमान लगाया जा सकता है कि जब आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का प्रवेश लोकतंत्र में होगा तो देश में सुशासन कैसे आएगा? वैसे नियम तो यह है कि राष्ट्रद्र्रोह, जंग छेड़ने के षड्यंत्र, हत्या, बलात्कार, डकैती, अपहरण आदि में लिप्त व्यक्ति को चुनाव लड़ने से वंचित रखा जाएगा!मगर आज तक किसी को वंचित होते नहीं देखा गया, बल्कि आपराधिक प्रकृति के लोगों का राजनीति में प्रवेश तेजी से हो रहा है। इससे कानून की विवशता जाहिर होती है। इसलिए जब तक राजनीति स्वच्छ नहीं होगी, तब तक अपराध और भ्रष्टाचार की लड़ाई जारी तो रहेगी, लेकिन यह पूर्णता को कभी प्राप्त नहीं कर पाएगी।

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