कोरोना मनुष्यों के कर्मो की सजा या फिर कुछ और
स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक
प्रकृति की अधिष्ठित्री देवी माँ पार्वती ने ऐक बार भगवान शंकर से कहा स्वामी इस संसार में कौन बुध्दिमान है व कौन मंदबुध्दि भगवान शंकर मुस्करा कर बोले —– बोले बिहस महेश कब ग्यानी मूढ़ ना कोय, जस क्षण रघुपति जस रघुपति करै, तस क्षण तस मत होय! अर्थात इस संसार में कोई भी ना तो ग्यानी है या मूर्ख जब ईश्वर जैसा चाहता है उसी पल उसकी वैसी ही मति (बुध्दि) कर देता है तो फिर घमण्ड किस बात पर है मैं बड़ा नेता हूँ, मैं बड़ा अधिकारी हूँ क्यों फोन रिसीव करूँ वह भी आम जनता का क्यों व्हाटसअप चेक करूं क्यों रिप्लाई करूं मैं फलाना मैं ढिमका मैं -मैं- मैं ही दिख रहा है! बेहद खूबसूरत व सोचनीय विषय है जब हम चाँद पर प्लाटिंग कर रहें हैं, हवाई जहाज व युध्दक विमानों से मानव जाति का अस्तित्व ख़तरे में डालकर खुद को महाबली होने का दावा कर रहे हैं, परिवार, समाज,देश के साथ गद्दारी करते हुए अपनी आवस्यकताओं से अधिक धन कमाने हेतु अपने ईमान व इंसानियत को शर्मसार करने में पीछे नहीं रहते मानवता या मदद के नाम पर हम अपने कार्य व्यवहारिकता को तबदील करने में हिचक महशूस नहीं करते, प्रकृति का दोहन करते हम खुश होते हैं अधिक धन कमाने की मंशा से रिस्तों व कर्तव्यों का खून कर देते हैं अन्याय, अनीति से कमाये हुये धन पर घमण्ड करते हैं फिर सोचते हैं मैं इमानदार हूँ मेरा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता बीमारियों से लड़ने के लिए मेरे पास पैसा है तो सोचिये कि जंगलों में रहने वाले तमाम जानवरों जिन्हे उसी ईश्वर ने बनाया है कितने अस्पताल हैं उनके इलाज के लिए व कितने साधन हैं उनके सुखों के लिए ? सोचो ऐक सांस लेकर वही दुबारा छोड़ने पर कितना अभिमान कर बैठा ये जरा सी हवा में फूला गुब्बारा ! आप ने सुना कोई भी मुहल्ले में सब्जी बेंचने वाला, या मजदूर जो फावड़ा चला रहा है जिसे शाम को 300 रू तब मिलते हैं जब वह दिन भर पसीना बहाता है उसे कोरोना हो गया हो तो बतायें ? आप कतई बेबजह परेशान ना हों बहुत छोटा पेट है फिर भी ढेर सारी दौलत को हांसिल करने के लिए लालायित ना रहिये हिसाब तो सारा देना होगा उस परम पिता परमात्मा को इसलिए आगे आने वाले जीवन में यदि खुशिंया चाहिए तो मजबूर असहाय लोगों की मदद करें रिस्तों व आदमियत को पहिंचाने यही मेरा विचार है बाकी आप की मर्जी!