सीएम धामी ने खोले अपनी जिंदगी के कई राज
राजनीति और सरकार में बैठे किसी भी व्यक्ति का जीवन सार्वजनिक होता है। ऐसे में अमर उजाला आपको सीएम धामी के जीवन से जुड़ी बातों और पहलुओं से रूबरू कराने जा रहा है जो शायद प्रदेश के चुनिंदा लोग ही जानते होंगे। अमर उजाला संपादक अनूप वाजपेयी, राज्य ब्यूरो प्रभारी राकेश खंडूड़ी के साथ डिजिटल टीम की अलका त्यागी और रेनू सकलानी ने मुख्यमंत्री धामी को तमाम अनछुए सवालों पर कुरेदा। पेश है उनसे हुई लंबी बातचीत के प्रमुख अंश..
सेना में जाना चाहता था, राजनीति में आ गया
सवाल- अगर आप राजनीति में न होते तो क्या होते?
जवाब- देखिये, मैंने ऐसा कभी सोचा नहीं था। मैं सेना में जाना चाहता था। हमारे यहां पीढ़ी दर पीढ़ी सेना में जाने का इतिहास रहा है। हमारे नातेदार, पिताजी सेना में रहे। मेरा भी मन था कि मैं सेना में जाऊं, लेकिन उस समय माता-पिता चाहते थे कि परिवार में अकेला होने के चलते यहीं रहकर कुछ करूं। मैं एमबीबीएस की कोचिंग करने लखनऊ गया। साथ ही ग्रेजुएशन में दाखिला भी ले लिया। इसी दौरान विद्यार्थी परिषद और संघ से जुड़ाव रहा। मैं हमेशा सोचता था कि जिंदगी में कुछ करना है
सवाल- बचपन में क्या कभी कोई ऐसा ख्याल आया था कि राजनीति को भी कॅरिअर बनाया जा सकता है?
जवाब- मैंने कभी कुछ बनने के बारे में नहीं सोचा। मैं हमेशा सोचता था कि मुझे कुछ करना है। मैंने कभी बैकडोर या शॉर्टकट रास्ते के बारे नहीं सोचा। आज भी मैं वही करता हूं। हमारे प्रदेश में लोगों को कोई परेशानी होती है तो मैं पीछे नहीं रहता। हमेशा सामने आकर बात करता हूं। मैं अधिकारियों को भी यही कहता हूं। मैं भगवान की कृपा मानता हूं। देवभूमि उत्तराखंड की जनता का आशीर्वाद भी मेरे साथ है।
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हम तख्ती पर कलम दवात से लिखते थे
सवाल- आप अपने बच्चों का बचपन, स्कूलिंग देख रहे हैं। आपका बचपन कैसा था?
जवाब- चार साल की उम्र में मैंने स्कूल जाना शुरू किया। मेरा जन्म कनालीछीना से आगे टुंडी ग्रामसभा में हुआ। वहां से स्कूल दो-तीन किमी दूर था। खड़ी चढ़ाई थी। सर्दियों के दिनों में बहुत ज्यादा ठंड होती थी। हाथ, कान, पैर ऐसे ठंडे हो जाते थे, जैसे किसी ने सुई चुभा दी हो। एक साल वहां रहा। इसके बाद मैं खटीमा में प्राइमरी पाठशाला नगला तराई स्कूल में पांचवीं तक पढ़ा। शुरू में तख्ती में ही लिखते थे। तख्ती पर कलम-दवात से लिखते थे। दवात में खड़िया को घोलकर अच्छा बनाते थे। तख्ती को तवे के पीछे के हिस्से से या रेडियो या टॉर्च के सेल के काले हिस्से से काला करते थे। उसे रात को रख देते थे। फिर उस पर घोटा लगाते थे। तब लिखते थे।
मैं विवाह से दूर भागता था, एक दिन पिताजी ने जोर से डांटा
सवाल- आज आपको तो सभी लोग जानते हैं। आपके परिवार के बारे में बताएं। आपके भाई-बहन, जिनकी याद आपको आती हो।
जवाब- मेरी तीन बहनें थीं। उनमें से एक सबसे छोटी बीमारी की वजह से इस दुनिया में नहीं रही। दो बहनें हैं, जो अपने-अपने परिवार में हैं। बड़ी बहन और मैं दोनों साथ-साथ रहते थे। वह मेरी ड्रेस से लेकर पढ़ाई तक का ख्याल रखती थी। हम ग्रामीण परिवेश में रहे। पहले बड़ी बहन फिर बाकी दोनों का विवाह हो गया। सबसे बाद में मेरा विवाह हुआ। मैं राजनीतिक क्षेत्र में आ गया था। मैं विवाह की बात से दूर भागता था। बहुत बार मैंने मना भी किया। संजोग ऐसा बना कि एक दिन दिवाली के समय मैं घर पर था। मेरे पिता जी ने मुझे जोर से डांटा। कहा, अब कुछ नहीं करना है। अब कोई जन्मपत्री नहीं। मैंने मिला दी है। जो होगा देखेंगे। मैं कुछ बोल नहीं पाया।
बच्चों को पढ़ाने से लेकर मेहमाननवाजी का पूरा काम गीताजी देखती हैं
सवाल- कहते हैं कि एक सफल पुरुष के पीछे महिला का हाथ होता है। गीताजी कहां और कैसे मिलीं आपको?
जवाब- हम सब लोग एक जैसी पृष्ठभूमि के हैं। मेरे पिता जी सेना में थे। गीताजी भी एक सैनिक की बेटी हैं। एक जैसे संस्कार रहे हैं। सब लोगों ने आपस में तय करके विवाह किया। मैं परिवार, घर के काम नहीं देख पाता था। गीताजी ने उसे बखूबी आगे बढ़ाया ताकि मुझे कभी घर की कोई चिंता न हो। बच्चों को पढ़ाने से लेकर मेहमाननवाजी का पूरा काम गीताजी देखती हैं। मैं तो सवेरे से ही निकल जाता हूं।