अंतराष्ट्रीय

चीन (चीन)ने तो रूस को भी नहीं बख्शा

चालबाज चीन (चीन) अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा. दूसरे मुल्‍कों की जमीन पर हमेशा उसकी नजर होती है. इसके चलते वह समय-समय पर नक्‍शे जारी करके दूसरे देशों की जमीन पर अपना हक जताता है. ऐसी हरकतों के कारण ही भारत सहित ताईवान, जापान, फिलीपींस, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों के साथ उसके रिश्‍तों में तल्‍खी रही है. G-20 सम्‍मेलन के पहले चीन ने 26 अगस्‍त को नया नक्‍शा जारी किया है जिसमें भारत के अरुणाचल प्रदेश, पूर्वी लद्दाख के एक हिस्‍से और अक्‍साई चिन का अपने क्षेत्र में दिखाया गया है. अरुणाचल पर चीन पहले से ही अपना हक जताता रहा है. चीन ने ताइवान और दक्षिण चीन सागर को भी अपना क्षेत्र बताया है.दक्षिण चीन सागर के ज्‍यादातर हिस्‍से को अपना बताने पर मलेशिया, फिलीपींस और वियतनाम जैसे देशों ने सख्‍त ऐतराज जताया है.

शातिर चीन ने अपने दोस्‍त रूस को इस मामले में नहीं छोड़ा और बोल्शोई उस्सुरीस्की द्वीप को भी अपने क्षेत्र में बता दिया. जाहिर है, बीजिंग के इस रवैये की आलोचना होनी ही थी और हुई. भारत के अलावा इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, नेपाल और ताइवान ने रूस के नए मैप को लेकर विरोध दर्ज कराया है.
रूस ने चीन के दावे को किया खारिज

रूस के विदेश मंत्रालय की भी इस मामले में प्रतिक्रिया सामने आई हैं.चीनी दावों को खारिज करते हुए रूस के विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि यह नक्शा 2005 में विवाद को समाप्त करने के लिए हस्ताक्षरित द्विपक्षीय समझौते के खिलाफ है.रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जख़ारोवा ने साफ कहा कि 15 साल पहले द्विपक्षीय समझौतों के ज़रिए द्वीप पर स्वामित्व के सवाल को सुलझा लिया गया था.

इस प्रतिक्रिया ने दूसरे देश के क्षेत्र को अपना बनाने की चीन की आदत पर मॉस्‍को को नाराजगी को जता दिया है. बतातें चले, चीन और रूस इस समय सामरिक और रणनीतिक मामलों में अहम सहयोगी हैं. विश्‍व महाशक्ति माने जाने वाले अमेरिका के प्रभाव को कम करने के लिए इन दोनों देशों ने हाथ मिलाया. आशंका जताई जा रही है कि नक्‍शा विवाद, बीजिंग और मॉस्‍कों के रिश्‍तों में कुछ कड़वाहट ‘घोल’ सकता है.

दोनों देशों ने 2005 में सुलझा लिया था विवाद
चीन के नए नक्‍शे में बोल्शोई उस्सुरीस्की द्वीप को पूरी तरह से चीनी क्षेत्र होने का दावा किया गया है जबकि दोनों देशों ने इस द्वीप से जुड़े विवाद को 2005 में सुलझाया था. इस विवादित द्वीप का विभाजन 2008 तक पूरा हो गया था. यह द्वीप, रूस के खाबरोवस्क शहर के करीब है. समझौते के तहत चीन को द्वीप के 350 वर्ग किलोमीटर में से 170 के साथ-साथ आसपास के कुछ अन्य द्वीप भी मिले थे जबकि रूस ने विवादित क्षेत्र का बाकी का हिस्सा अपने पास रखा था. चीन ने रूस को मिले इस हिस्से को भी अपने नक्शे में दिखा दिया है जो मॉस्‍को को स्‍वीकार नहीं है. बोल्शोई उस्सुरीस्की द्वीप और आसपास का क्षेत्र उसुरी और अमूर नदियों के संगम पर है जो एक तरह से रूस और चीन की विभाजन रेखा है. रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता दोनों देश इस स्थिति पर कायम हैं कि हमारे बीच यह सीमा विवाद हल हो गया है.

विवाद की जड़ रहा है यह द्वीप
बोल्शोई उस्सुरीस्की द्वीप लंबे अरसे तक चीन और रूस के बीच विवाद की एक बड़ी वजह रहा है.चार दशकों की लंबी बातचीत के बाद दोनों देशों ने साल 2004 में इस मामले को लेकर समझौता किया था. 1969 में अमूर और उसुरी नदी के तट पर दुनिया की दो कम्‍युनिस्‍ट शक्तियों-सोवियत संघ और चीन के बीच युद्ध भी हो चुका है.इस युद्ध में USSR ने चीन पर एटामिक हमले की धमकी तक दे डाली थी. इसमें चीन को क़दम पीछे खींचने पड़े थे. 2004 में दोनों देशों के बीच समझौते हुए और सेंट्रल एशिया के कई द्वीपों को रूस ने चीन को सौंप दिया था.

1991 के बाद रूस और चीन के बीच बढ़ी थी करीबी
सोवियत संघ के 1991 में विघटन के बाद धीरे-धीरे दोनों देशों के बीच रिश्‍तों में गरमाहट आई. 2004 में बोल्शोई उस्सुरीस्की द्वीप को लेकर समझौते और 2014 में क्रीमिया का रूस में विलय की घटना इस मामले में टर्निंग प्‍वाइंट साबित हुई . 18 मार्च को जब व्‍लादिमीर पुतिन ने क्रीमिया को रूस में शामिल करने वाली संधि पर हस्ताक्षर किए तो तमाम पश्चिमी देश उनके खिलाफ खड़े हो गए थे लेकिन चीन ने न्‍यूट्रल रुख अख्तिार किया और विरोध नहीं किया. विदेश नीति के जानकारों के अनुसार इसके बाद दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होते गए.

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच नजदीकी और ज्‍यादा बढ़ गई थी. यूक्रेन पर हमले का आदेश देने से पहले पुतिन बीजिंग पहुंचे थे. जिनपिंग से मुलाक़ात के बाद एक साझा बयान जारी किया था.इसमें कहा गया था कि दोनों देशों के बीच दोस्ती की कोई सीमा नहीं है और ऐसा कोई विषय नहीं है, जिसमें हम एक-दूसरे का सहयोग न करते हों.दोनों नेताओं ने साझेदारी के जरिये विकास में मदद का वादा भी दोहराया था.

रूस की नई विदेश नीति में चीन का खास जिक्र

यू्क्रेन के साथ युद्ध के बीच रूस ने इसी वर्ष अपनी नई विदेश नीति तय की है.इस विदेश नीति के साथ ही रूस ने इससे जुड़ा एक स्ट्रैटेजिक डॉक्यूमेंट भी जारी किया थी.रूस ने अपनी नई विदेश नीति में अपने सहयोगी चीन को लेकर काफ़ी कुछ कहा है.चीन के साथ बढ़ते संबंध पर इस दस्तावेज में कहा गया कि मॉस्को का टारगेट बीजिंग के साथ व्यापक साझेदारी, रणनीतिक सहयोग को और मजबूती प्रदान करना है.यूरेशियन रीजन के विकास में भी रूस ने चीन के भूमिका को बढ़ावा देने की बात कही है.

ब्रिक्‍स बैठक में भी दिखी दोनों देशों की ‘जुगलबंदी\
दरअसल, चीन और रूस अपनी दोस्‍ती के जरिये महाशक्ति अमेरिका के प्रभाव को कम करना चाहते हैं. BRICS (ब्राजील, रूस, इंडिया, चाइना और साउथ अफ्रीका)की बैठक में भी रूस और चीन के बीच खास जुगलबंद सामने आई थी. चीन का पूरा जोर ब्रिक्‍स के विस्‍तार पर है और रूस इस मामले में उसके साथ है.ये दोनों देश चाहते हैं कि ब्रिक्‍स में अधिक से अधिक देशों को शामिल किया जाए जबकि भारत इस मुद्दे पर पर्याप्‍ता विचार का पक्षधर है. ब्रिक्‍स का ‘स्‍वरूप’ बढ़ाने के पीछे दोनों मुल्‍कों की मंशा वैश्विक मामलों में अमेरिका के प्रभाव को कम करके खुद को उसके समकक्ष खड़ा करने की है.

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