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central paramilitary बलों में क्यों बहाया जा रहा अपने ही साथियों का खून?

नई दिल्ली। central paramilitary बलों में क्यों बहाया जा रहा अपने ही साथियों का खून? केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ‘सीएपीएफ’ में जवान आपा खो रहे हैं। उन्हें गुस्सा इतना ज्यादा आता है कि वे अपने ही साथियों को मौत के घाट उतार देते हैं। बीएसएफ में 6-7 मार्च को 48 घंटे के दौरान अलग-अलग स्थानों पर सात जवानों की मौत हो गई। इन दोनों ही घटनाओं में अपने ही जवानों ने अपनों का खून कर दिया। दूसरे बलों में भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं। सीएपीएफ के तहत आने वाले विभिन्न केंद्रीय सुरक्षा बलों में 2019 के दौरान इस तरह की घटनाओं में नौ जवान या अधिकारी मारे गए थे।

2020 में आठ जवानों का खून बहा दिया गया।

पिछले साल यानी 2021 में भी आपसी कहासुनी में आठ जवानों की मौत हो गई थी। बीएसएफ के पूर्व एडीजी संजीव कृष्ण सूद कहते हैं, इसके पीछे पांच कारण हैं, जो सीएपीएफ जवानों को अपने ही साथियों या अधिकारियों का खून बहाने जैसी दर्दनाक परिस्थिति की तरफ ले जाते हैं। जवानों को समय पर छुट्टी न मिलना और उनकी सुनवाई ठीक तरह से न हो पाना, उक्त घटनाओं के लिए जिम्मेदार कारणों में से एक है।

central paramilitary बलों में क्यों बहाया जा रहा अपने ही साथियों का खून?

पूर्व एडीजी संजीव कृष्ण सूद के मुताबिक, सीएपीएफ में ऐसी घटनाओं के लिए कई बातें जिम्मेदार हैं। जवानों पर वर्कलोड ज्यादा है। कई स्थानों पर जवानों को 15 घंटे तक ड्यूटी देनी पड़ती है। रात को तीन घंटे बाद ड्यूटी आती है तो जवान ठीक से नींद नहीं ले पाते। अगर वे अपनी समस्या किसी के सामने रखते हैं तो वहां ठीक तरह से सुनवाई नहीं हो पाती। यह सब बातें जवानों को तनाव की ओर ले जाती हैं। कुछ स्थानों पर बैरक एवं दूसरी सुविधाओं की कमी नजर आती है।

जवानों की घरेलू समस्या भी रहती है। हालांकि ये बात हर मामले में ठीक नहीं है।

आजकल सभी जवानों के हाथ में मोबाइल फोन है तो उन्हें घर की हर जानकारी मिलती रहती है। अगर जवान पहले ही ड्यूटी के चलते या किसी दूसरे कारण से परेशान है और तभी उसके पास घर परिवार से फोन आ जाता है। अचानक किसी समस्या का पता चलता है तो वह ‘अंडर प्रेशर’ हो जाता है। ऐसे में साथी जवान के साथ कहासुनी या सीनियर की डांट फटकार, उसका गुस्सा इस कदर बढ़ा देती है कि वह अपने ही साथियों पर फायर कर देता है।

कई दफा जूनियर और सीनियर लेवल पर जवान की सुनी नहीं जाती। कैडर अधिकारी अपनी समस्याओं में उलझे होते हैं, वे ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते। कुछ परिस्थिति ऐसी होती है कि जहां पर जूनियर अधिकारी खुद हताश होते हैं। उन्हें समय पर पदोन्नति नहीं मिलती। ऐसी बातें खुलकर तो सामने नहीं आती, मगर ड्यूटी पर उसका आभास होता रहता है।

दूसरी तरफ सीनियर अफसरों को कुछ मालूम नहीं पड़ता। जब घटना हो जाती है तो हेडक्वार्टर से जांच का आदेश आ जाता है। अगर बड़े अफसर को सब कुछ मालूम हो जाए या वह खुद रुचि ले तो नई पॉलिसी बन सकती है।

कई बार सीनियर अधिकारी अपने मातहत के लिए श्रफश् वर्ड का इस्तेमाल करता है। कार्रवाई के दौरान निष्पक्षता नहीं दिखाई पड़ती। इससे जवान के लिए गलत संदेश चला जाता है। कुछ मामलों में यह भी देखने को मिलता है कि जवान अपनी जगह सही होता है, मगर उसके खिलाफ गलत कार्रवाई हो जाती है।

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समय पर पदोन्नति या रैंक न मिलना भी जवानों को तनाव की ओर ले जाता है। चूंकि फोर्स का मामला है तो ड्यूटी देनी ही होगी। ये सारी बातें जवान को हथियार उठाने पर मजबूर कर देती हैं। जवानों के पास हथियार तो 24 घंटे रहता है, ऐसे में श्गुस्सेश् को दर्दनाक स्थिति में तब्दील होने में देर नहीं लगती।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2019 के आखिर में सीएपीएफ जवानों को एक साल में 100 दिन की छुट्टी देने की घोषणा की थी। अभी तक किसी भी बल में यह योजना लागू नहीं हो सकी है। इसका प्रचार ही अधिक होता रहा। बतौर एसके सूद, जवानों को 60 दिन का वैतन अवकाश तो पहले से ही मिल रहा है। 15 दिन की सीएल होती है। कुल मिलाकर 80 दिन हो जाते हैं।

सौ दिन अवकाश करने में अब 20 दिन ही बाकी बचे हैं। वह संभव नहीं हो पा रहा है। इसके आसार भी नहीं लगते। इसका तरीका ये है कि जवानों को मॉनिटरी कंपनसेशन दे दो। उन्हें अतिरिक्त एक माह का वेतन और आने जाने का खर्च दे दें। जवानों को साल में तीन-चार यात्रा पास मिलते हैं। साल में एक अतिरिक्त पास एफएलपी मिलता है।

ये भी देखने को मिला है कि साठ दिन की छुट्टी भी जवानों को समय पर नहीं मिलती।

अगर वह ठीक तरह से मिलें तो आधी समस्या वहीं पर खत्म हो जाएगी। केंद्रीय गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय के अनुसार, सीएपीएफ में जवानों के मानसिक स्वास्थ्य और उनके कल्याण को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के उपाय किए जा रहे हैं। सरकार ने अन्य बातों के अलावा सीएपीएफ कार्मिकों को अपने परिवार के साथ प्रति वर्ष 100 दिन ठहरने की सुविधा प्रदान करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने का निर्णय लिया है। इस संबंध में तौर तरीके तैयार किए जा रहे हैं।

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