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महापौर पद के बीजेपी प्रत्याशी करीब 1.33 लाख मतों (1.33 lakh votes)से दर्ज की जीत

इंदौर. देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के नगर निगम चुनावों में महापौर पद के लिए बीजेपी प्रत्याशी पुष्यमित्र भार्गव ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस उम्मीदवार संजय शुक्ला कोको करीब 1.33 लाख मतों (1.33 lakh votes) से हराया. इंदौर में इस पद पर बीजेपी का दो दशक पुराना कब्जा बरकरार रखा. बीजेपी को सबसे बड़ी जीत इंदौर से मिली. अपने जीवन में पहली बार सियासी चुनाव लड़ने वाले
भार्गव को 5,92,519 वोट मिले जबकि मौजूदा कांग्रेस विधायक शुक्ला को 4,59,562 मतों से संतोष करना पड़ा. केवल 12वीं तक पढ़े शुक्ला ने चुनावी हलफनामे में अपनी और उनकी पत्नी की कुल 170 करोड़ रुपये की संपत्ति बताई थी. वह सूबे के 16 नगर निगमों में हुए चुनावों में महापौर पद के उम्मीदवारों में सबसे अमीर थे. 28वें राउंड के परिणाम जारी होते ही कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला ने हार मान ली. उन्होंने कहा कि मेहनत करता रहूंगा. मुझे हराने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत लगा दी.

इंदौर में बीजेपी के बिल्कुल नए उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव को मैदान में उतारा था और उन्होंने 1 लाख से भी ज्यादा मतों से विजय हासिल की. भार्गव की जीत सुनिश्चित होते ही भाजपा समर्थकों ने मतगणना स्‍थल नेहरू स्‍टेडियम के बाहर जश्‍न मनाया. कार्यकर्ताओं ने भार्गव को कंधे पर बैठा लिया. महापौर पद पर भाजपा उम्मीदवार के तौर पर अपने नाम की अधिकृत घोषणा से महज दो घंटे पहले, भार्गव ने अतिरिक्त महाधिवक्ता पद से इस्तीफा दिया था और चुनावी राजनीति में पहला कदम रखा था. भार्गव, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से सक्रिय तौर पर जुड़े रहे हैं.

शुक्ला चुनाव प्रचार में खुद को बताते थे ‘लक्ष्मीपुत्र’
शुक्ला चुनाव प्रचार में खुद को अक्सर ‘लक्ष्मीपुत्र’ बताते थे. मतदाताओं से उन्होंने राज्य के सबसे बड़े शहर इंदौर का महापौर बनने पर ‘अपनी जेब से’ पांच ओवरब्रिज बनवाने और कोविड-19 के मरीजों तक 20,000-20,000 रुपये की आर्थिक सहायता पहुंचाने का बहुचर्चित वादा किया था.
पुष्यमित्र भार्गव ने चुनावी घोषणापत्र में अपनी और उनकी पत्नी की कुल 2.31 करोड़ रुपये की संपत्ति बताई थी. भार्गव के पास एलएलएम और अन्य शैक्षणिक उपाधियां हैं. भार्गव की नामांकन रैली में 18 जून को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्ला पर इशारों ही इशारों में निशाना साधते हुए इंदौर नगर निगम चुनावों को ‘धन के पुजारी’ और ‘ज्ञान के पुजारी’ के बीच की लड़ाई’ करार दिया था.

 

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