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Big decision of Modi government: दिल्ली के तीनों नगर निगम होंगे एक, जाने पूरी खबर

नई दिल्ली। Big decision of Modi government: दिल्ली के तीनों नगर निगम होंगे एक, जाने पूरी खबर राजधानी दिल्ली में अब तीनों नगर निगम एक होंगे। काफी समय से इन तीनों निगमों को एक करने को लेकर चर्चाएं चल रही थी। दिल्ली के तीनों नगर निगमों (उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी) को एक करने को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा राज्य चुनाव आयुक्त को भेजे गए पत्र ने इन्हें एक करने संबंधी प्रस्ताव भेजा गया था। इसमें बताया गया था कि किस प्रकार से तीनों नगर निगमों के महापौर ने इन्हें एक करने का प्रस्ताव केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा।

Modi government: आज इस प्रस्ताव पर मुहर लग गई।

उत्तरी निगम के महापौर राजा इकबाल सिंह, दक्षिणी के मुकेश सुर्यान व पूर्वी के श्याम सुंदर अग्रवाल द्वारा भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया था कि निगमों की खराब आर्थिक स्थिति से कर्मचारियों को वेतन मिलने में देरी हो रही है और विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं, ऐसे में इन्हें एक करने की आवश्यकता है। इससे तीनों निगमों के खर्च घटाए जा सकेंगे और राजस्व को समान रूप से दिल्ली के पूरे क्षेत्र में इस्तेमाल किया जा सकेगा, जबकि वर्तमान स्थिति में उत्तरी और पूर्वी निगम के मुकाबले दक्षिणी निगम का राजस्व अधिक है और यहां फंड की अधिक समस्या नहीं है।

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पहले तीन निगमों का एक महापौर होता था और एक आयुक्त और छह अतिरिक्त आयुक्त हुआ करते थे। 22 बड़े विभागों में विभागाध्यक्ष भी 22 थे, जबकि निगमों की संख्या तीन होने के बाद यह संख्या तीन गुणा बढ़ गई। इससे निगम को हर वर्ष करीब 200 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च बढ़ गया। अब जब तीनों निगम एक हो जाएंगे तो कम से कम 200 करोड़ रुपये की बचत होगी। तीनों निगमों को एक किए जाने के बाद अब राज्य चुनाव आयोग को वार्ड का आरक्षण फिर से तैयार करना होगा, क्योंकि अभी रोटेशन की यह प्रक्रिया तीनों निगमों के हिसाब से हुई है।

घटेंगे निगम के खर्च, विकास कार्यों को मिलेगी गति

राज्य चुनाव आयोग ने आरक्षण दक्षिणी और उत्तरी के 104-104 वार्ड और पूर्वी निगम के 64 वार्ड के हिसाब से तैयार किया है। तीनों निगम को एक किया जाता है तो 272 वार्ड के वार्ड नंबर बदल जाएंगे, जिनके कारण आरक्षण की स्थिति भी बदली जाएगी। राज्य चुनाव आयोग ने बीते दिनों आरक्षण का जो आदेश जारी किया है, उससे भाजपा के साथ ही आम आदमी पार्टी व कांग्रेस के वर्तमान पार्षदों की सीट पर आरक्षण की स्थिति बदल गई थी जिसके कारण उनके अपनी सीट से चुनाव लड़ने पर संकट पैदा हो गया था। पुरुष पार्षदों की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो गई थी जबकि सामान्य पार्षदों की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई थी।

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