जनता की अदालत हो या भगवान की, विजयी सच्चे समाज सेवी होते हैं
दीपक नौटियाल (चेयरमैन प्रतिनिधि) हरिव्दार! नवोदय नगर
रोना महामारी का महाभयावह संकट काश किसी ने पहले सोचा हो कि ऐसी डरावनी स्थिति भी आयेगी लोग सहम कर घरों में दुबक जायेंगे अन लॉक 1,2, केे वावजूद लोग दुकाने बंद रखेंगे लेकिन वाह रे भारत के जनसेवक राष्ट्र प्रेमियों का जज्बा ऐसी संकट की स्थिति में भी जब तमाम सभी वे लोग भी घर नहीं निकले जिन्हे जनता ने दिल से चाहा था उस स्थिति में अपनी जान की परवाह ना करते हुए रात दिन गरीब असहाय लोगों की निस्वार्थ सेवा में तत्पर रहने वाला वह व्यक्ति जो कर्ण तो नहीं था वह भी उसी परिवार से था जिसे तीनों लोको के स्वामी श्री कृष्ण (वर्तमान सत्ता ) का समर्थन प्राप्त था उन्ही का ऐक अंग था लेकिन उसे वह सम्मान नहीं मिला जो पांडवो को मिला शायद इसीलिए वह खिन्न होकर कौरवो के साथ हो गया लेकिन उसका अपना वुजूद था अपनी शक्ति थी दूसरे की शक्ति पर तो कायर लोग गरजते हैं लेकिन कर्ण तो खुद महान योद्धा था नीतिगत युध्द में यदि स्वयं भगवान भी आ जाते तो कर्ण को पराजित करना असंभव था यहाँ सवाल उठता है कि भगवान भी क्यों परास्त नहीं कर सकते थे तो सुनिये सत्य निष्ठा विधि का विधान पलटने के लिए काफी होती है जैसे सावित्री ने विधि का विधान पलट कर रख दिया वैसे ही ऐक अकेला समाज सेवी ही अपने कर्तव्य पर अडिग रही सभी जानते हैं की बाकी इस समय चूहों की तरह जनता के सामने उझल कूंद करने वाले लोग उस समय भीगी बिल्ली बन कर दुबक कर बैठे थे शायद नवोदय नगर की जनता यह सब कुछ जान चुकी है और परिणाम भी देखने को अवस्य मिलेगा क्यों कि जंग सच और झूठ की है! नाम की जरूरत नहीं है सभी जानते हैं व सभी की जुबान पर निर्णायक कूटनीतिक जंग चल रही है कर्ण और अर्जुन की तरह!
यह तो सभी जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में सबसे शक्तिशाली योद्धा कोई थे तो वह कर्ण और अश्वत्थामा थे। लेकिन कवज और कुंडल उतर जाने के बाद भी कर्ण इतने शक्तिशाली थे कि वे अर्जुन के रथ को एक ही बाण में हवा में उड़ा देते। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। दरअसल, युद्ध में एक दिन कर्ण और अर्जुन आमने सामने थे। दोनों के बीच घमासान चल रहा था।
ऐसे में जब अर्जुन का तीर लगने पर कर्ण का रथ 25 से 30 हाथ पीछे खिसक जाता और कर्ण का तीर से अर्जुन का रथ सिर्फ 2 से 3 हाथ ही खिसकता था लेकिन फिर भी भगवान कृष्ण कर्ण की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। ऐसे में अर्जुन से रहा नहीं गया और उसे पूछ ही लिया कि ‘हे पार्थ आप मेरी शक्तिशाली प्रहारों की बजाय उसके कमजोर प्रहारों की प्रशांसा कर रहे हैं, ऐसा क्या कौशल है उसमें?’
तब भगवान कृष्ण मुस्कुराकर बोले, अजुर्न! तुम्हारे रथ की रक्षा के लिए ध्वज पर स्वयं हनुमानजी, पहियों पर शेषनाग और सारथी के रूप में मैं स्यवं नारायण विराजमान हूं। इस सब के बावजूद कर्ण के प्रहार से अगर ये रथ एक हाथ भी खिसकता है तो मानना ही पड़ेगा की कर्ण में अद्भुत पराक्रम है। ऐसे में उसकी प्रशंसा तो बनती ही है।
कहते हैं युद्ध समाप्त होने के बाद जैसे ही भगवान कृष्ण रथ से उतरे, रथ स्वतः ही भस्म हो गया। वो तो कर्ण के प्रहार से कबका भस्म हो चूका था, पर नारायण बिराजे थे इसलिए चलता रहा। ये देख अर्जुन का सारा घमंड चूर-चूर हो गया।