वर्षात के मौसम में रहें सावधान
डॉ महेन्द्र राणा
स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक
जगजीतपुर हरिव्दार! ग्रीष्म ऋतु समाप्त होने पर वर्षा ऋतु का आगमन होता है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य का प्रकाश अत्यन्त उष्ण (तेज) होने के कारण सम्पूर्ण वायुमण्डल अत्यंत गर्म हो जाता है, जिससे मनुष्य के शरीर के आवश्यक पोषक तत्व (रस आदि धातु) का शोषण हो जाने से पाचन शक्ति (भोजन पचाने की शक्ति) मंद हो जाती है, जिससे हम ग्रीष्म ऋतु में तथा इसके बाद भी शारीरिक दुर्बलता महसूस करते हैं।
ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रखर किरणों से तपी हुई धरती पर वर्षा ऋतु का जल गिरने से भाप निकलती है एवं लगातार वर्षा होने के कारण जल में तथा धरती में आयुर्वेद मतानुसार अम्लीय गुण की वृद्धि हो जाती है। वहीं दूसरी ओर पाचन शक्ति के मंद हो जाने के कारण आचार्यों के अनुसार वर्षा ऋतु में वात-पित्त-कफ तीनों ही दोष प्रकुपित होने लगती हैं जिसके कारण हमारा शरीर में विभिन्न रोगों के होने की संभावना होती है।
अतः वर्षा ऋतु में प्रकुपित हुए वात आदि दोष के कारण वर्षा ऋतु होने वाले रोगों से बचने के लिए मंद हुई पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए एवं मनुष्य को अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आहार विहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसलिए ऋषि मुनियों ने वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य लाभ हेतु निम्न आहार-विहार का सेन करना उपययुक्त बताया है।
(1) शहद का प्रयोग वर्षा ऋतु में विशेष लाभकारी होता है। जहाँ तक हो सके सभी भोज्य पदार्थों के साथ शहद का सेवन करना चाहिए।
(2) वर्षा ऋतु में गेहूँ, जौ एवं यव तथा मूंग एवं अरहर दाल तथा इससे निर्मित बने पदार्थों का प्रयोग मसालों के साथ करना चाहिए।
(3) सोंठ काली मिर्च पीपल (पिप्पली) दालचीनी, तेज पत्र, ज़ीरा, धनियां, अजवॉईन, राई, हींग आदि मसालों में प्रयुक्त होने वाले आहार दृव्यों का प्रयोग अपने भोजन के साथ करना चाहिए, जिससे वर्षा ऋतु में मंद हुई पाचन शक्ति बढ़ जाती है।
(4) वात दोष के शमन हेतु तेल एवं घृत से निर्मित पदार्थों का सेवन उचित मात्रा में करना चाहिए।
(5) लौकी, कुमड़ा, करेला, तरोई, निम्बू, करौंदा आदि सब्जियों का सेवन तथा इन सब्जियों का सौंठ कालीमिर्च आदि मसालों से युक्त सूप का सेवन करना हितकारी होता है।
(6) फलों में पपीता, जामुन, अमरूद, केले, नाशपाली आदि मधुर एवं अम्ल रस से युक्त आदि फालों का सेवन करना चाहिए।