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बहेड़ा फल का अधिकतर प्रयोग आयुर्वेद की दवाओं   ( Ayurvedic medicines.)के लिए होता

बहेड़ा:: भारत और यहां तक कि दुनिया में भी आयुर्वेद और उससे जुड़े उपचार व दवाओं का प्रचलन बढ़ रहा है. इसी कड़ी में त्रिफला चूर्ण का चलन खूब बढ़ा है. यह चूर्ण पेट को फिट रखता है और शरीर को निरोग बनाने के अलावा बल भी प्रदान करता है. इस चूर्ण को बनाने के लिए बहेड़ा नाम के एक फल का भी उपयोग किया जाता है. इस फल (जड़ी-बूटी) के अन्य लाभ भी हैं. भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक  ( Ayurvedic medicines.) ग्रंथों में बहेड़ा के लाभ-हानि का विस्तार से वर्णन किया गया है. कई बीमारियों में भी लाभकारी है बहेड़ा फल.

बहेड़ा के पेड़ को माना जाता है पवित्र
बहेड़ा बहुत छोटा सूखा सा फल है, लेकिन इसमें ‘गुणों का रस’ भरा हुआ है. बहेड़ा:भारत के करीब 5000 हजार वर्ष प्राचीन आयुर्वेद-शास्त्र में इस फल का विशेष वर्णन है. इसे विशेष रसायनों में बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है. भारत में तो बहेड़ा के अलावा, इसके पेड़ तक को पवित्र माना जाता है. इसके पेड़ को इस विश्वास के चलते नहीं काटा जाता कि पेड़ में शनिदेव का निवास है. तिब्बत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति में बहेड़ा को ‘चिकित्सा का राजा’ कहा गया है तो बौद्ध धर्म में भी इसे विशेष माना गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि विश्व की एक बड़ी आबादी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए पौधों, जड़ी-बूटियों पर आधारित पारंपरिक चिकित्सा पर निर्भर है. वैज्ञानिक मानते हैं कि इस स्वास्थ्य देखभाल में बहेड़ा भी महत्वपूर्ण है. भारत में बहेड़ा से जुड़े त्रिफला चूर्ण पर तो इतना अधिक विश्वास है कि आम लोग तो इसका सेवन करते ही हैं, अब तो युवा वर्ग भी अपने को फिट रखने के लिए त्रिफला को अपनाने लगा है. त्रिफला के बारे में कहा भी गया है कि ‘हरड़-बहेड़ा-आंवला घी-शक्कर से खाए, हाथी बांधे कांख (बगल) में सौ मील तक जाए.’

हर प्राचीन-नवीन आयुर्वेदिक ग्रंथ में बहेड़ा का गुणगान
भारत के हर प्राचीन-नवीन आयुर्वेदिक ग्रंथ में बहेड़ा की जानकारी अवश्य दी गई है और इसे बेहद गुणकारी माना गया है. यह फल हजारों वर्ष पहले भारत के अलावा इंडोनेशिया में उगा और बाद में एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी इसने विस्तार पाया. प्राचीन ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में तो त्रिफला बनाने की विधि बताई गई है. इसमें बहेड़ा के बारे में व्यापक जानकारी दी गई है. ग्रंथ में इसे ‘विभीतकम्’ कहा गया है और बताया गया है कि यह फल ब्लड, शरीर व चर्बी में होने वाले दोषों को नष्ट कर देता है. भारतीय जड़ी-बूटियों, फलों व सब्जियों पर व्यापक रिसर्च करने वाले जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ आचार्य बालकिशन के अनुसार, बहेड़ा वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को दूर करता है, लेकिन इसका मुख्य प्रयोग कफ-प्रधान विकारों में होता है. यह आंखों के लिए हितकारी है और बालों के लिए पोषक होता है. आग से जलने के कारण हुए घाव पर भी बहेड़ा का तेल लाभकारी है. इतना ही नहीं, बहेड़ा असमय बाल पकने, गला बैठने, नाक सम्बन्धी रोग, रक्त विकार, हृदय रोगों में फायदेमंद होता है. बहेड़ा कीड़ों को मारने वाली औषधि है. इसकी छाल खून की कमी, पीलिया और सफेद कुष्ठ में लाभदायक है. इसके बीज कड़वे, अत्यधिक प्यास, उल्टी तथा दमा रोग का नाश करने वाले हैं

बहेड़ा अवसाद को करे दूर, यूरिन सिस्टम सुधारे
शरीर के लिए यह फल बेहद लाभकारी है. मुंबई यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन व वैद्यराज दीनानाथ उपाध्याय के अनुसार, बहेड़ा के अर्क में अवसादरोधी गुण हैं. यह यूरिन संबंधी परेशानियों में लाभकारी है, जिसके चलते किडनी के फंक्शन सामान्य रहते हैं. बहेड़ा को पीसकर उसका पेस्ट घाव पर लगाया जाए तो वह उसे जल्द भर देगा. बहेड़ा में शुगररोधी भी गुण हैं और यह मोटापे को बढ़ने नहीं देता है. यह गले की बीमारियों को दूर रखता है. फेफड़ों को स्वस्थ बनाए रखने में भी कारगर है.

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अध्ययन में यह भी पाया गया है कि बहेड़ा रक्त के थक्कों के बनने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है. यह इतना गुणकारी है कि आयुर्वेद के अलावा यूनानी और चीन की पारंपरिक दवाओं में भी इसका उपयोग किया जाता है. बहेड़ा फल है, लेकिन आम फलों जैसे सामान्य रूप से नहीं खाया जाता है. इसका अधिकतर प्रयोग आयुर्वेद की दवाओं के लिए ही होता है, इसलिए इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है.

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