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पितृपक्ष (Pitru Paksha) बीच नहीं करने हैं शुभ और मांगलिक कार्य

पितृपक्ष: गणपति बप्पा की उपासना के बाद आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिनों का पूरा पखवाड़ा पितृपक्ष      (Pitru Paksha) के नाम से जाना जाता है. इस बार यह 11 सितंबर से लेकर 25 सितंबर तक रहेगा. यह पक्ष अपने पितरों को तृप्त करने का है. इस समय कोई भी लौकिक शुभ कार्य का प्रारंभ नहीं किया जाता है. इसके साथ ही किसी नए कार्य या नए अनुबंध को भी नहीं किया जाना चाहिए. यह समय है पितर यानी इमीडिएट बॉस को प्रणाम करने का.

साल के 15 दिन पितरों को समर्पित

यह पक्ष साल के 365 दिनों में से 15 दिन अपने पितरों को समर्पित रहता है, जिस तरह महादेव को एक पूरा माह समर्पित रहता है. मां शक्ति के लिए वर्ष में दो बार 9 दिन शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्र के रूप में रहते हैं, उसी तरह शास्त्रों में पितरों के लिए भी पूरे एक पक्ष का प्रावधान किया गया है. इससे यह तो स्पष्ट ही है कि पितर हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं.

पितर अनेक होते हैं, जानिए कौन हैं पितृ

ईश्वर तो एक होता है, लेकिन पितर अनेक हो सकते हैं. इसका संबंध हमारी परंपरा से होता है. अब यह जानना भी जरूरी है कि आखिर यह पितर हैं कौन. पितर हमारे जीवन में अदृश्य सहायक होते हैं. यह हमारे जीवन के कार्यों और लक्ष्यों में अपना पूरा शुभ व अशुभ प्रभाव रखते हैं. यानी अगर पितर प्रसन्न तो उनका अदृश्य सपोर्ट मिलता रहेगा, जिस तरह साइकिल चलाते समय यदि उसी दिशा में तेज हवा चलती है तो कम कम मेहनत में अधिक दूरी तय हो जाती है. उसी तरह पितर प्रसन्न हैं तो जीवन की गाड़ी आराम से भागती जाती है और पितर नाराज तो जो स्थिति साइकिल चलाने में विपरीत हवा के कारण होती है, वही स्थिति जीवन रूपी गाड़ी की हो जाती है.

पितर वे हैं, जो पिछला शरीर तो त्याग चुके हैं, लेकिन अभी अगला शरीर नहीं प्राप्त कर सके हैं. हिंदू दर्शन की मान्यता है कि जीवात्मा स्थूल शरीर छोड़ देती है, तब मृत्यु होती है. पितृपक्ष में पितरों की श्राद्ध और तर्पण किया जाता है. श्राद्ध का अर्थ है, श्रद्धा व्यक्त करना और तर्पण का अर्थ है, उन्हें तृप्त करना. अब प्रश्न यह है कि कैसे श्रद्धा व्यक्त की जाए और कैसे तर्पण किया जाए. धर्मशास्त्रों में भी यही कहा गया है कि जो मनुष्य श्राद्ध करता है, वह पितरों के आशीर्वाद से आयु, पुत्र, यश, बल, वैभव-सुख और धन्य-धान्य को प्राप्त करता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि आश्विन मास के पूरे कृष्ण पक्ष यानी 15 दिनों तक रोजाना नियमपूर्वक स्नान करके पितरों का तर्पण करें और अंतिम दिन पिंडदान श्राद्ध करें.

सदैव रखें पितरों के प्रति श्रद्धा और भाव

श्राद्ध और तर्पण तो परंपरागत रूप से पितरों को खुश करने की बात है, किंतु इसे थोड़ा विस्तृत रूप में समझने की कोशिश कीजिए. घाट तक जाना, गया जाना, पिंडदान करना सब इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा रूपी हवाई जहाज की हवाई पट्टी है यानी आपका प्रेम पूर्ण भाव ही श्रद्धा है और यह सदैव रहना चाहिए न कि केवल पितृपक्ष तक. पितृपक्ष तो भाव और श्रद्धा को और विशेष रूप से प्राकट्य करने के लिए है.

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