बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से तबाही पर अखिलेश यादव की चिंता, पीड़ित किसानों को तत्काल राहत की मांग !
लखनऊ -: उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में बीते दिनों हुई बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि, तेज़ आंधी और आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं ने जहां एक ओर जनजीवन को अस्त-व्यस्त किया, वहीं दूसरी ओर किसानों की मेहनत को भी तहस-नहस कर दिया। इस आपदा में दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत और बड़ी संख्या में पशुधन की क्षति के साथ ही गेहूं, आम और मक्का जैसी फसलों को व्यापक नुकसान पहुँचा है।समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस प्राकृतिक आपदा पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि जब किसान खेतों में गेहूं की कटाई और मड़ाई के काम में जुटे थे, तभी अचानक आई ओलावृष्टि और बारिश ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया।
फसलों के नष्ट होने से अब किसानों के सामने रबी सीज़न की पूरी उपज का संकट खड़ा हो गया है।लखनऊ, बाराबंकी, अयोध्या, अंबेडकरनगर, सीतापुर, अमेठी, बहराइच, बलरामपुर और श्रावस्ती जैसे जिलों में गेहूं के साथ-साथ आम और मक्का की फसलें भारी नुकसान की चपेट में आई हैं। वहीं, फिरोजाबाद, मेरठ, गाज़ीपुर, आज़मगढ़, फतेहपुर, कन्नौज, संत कबीर नगर और सिद्धार्थनगर में आकाशीय बिजली गिरने से कई लोगों की जान चली गई।
अखिलेश यादव ने मृतकों के परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए सरकार से उनके लिए सम्मानजनक मुआवज़े की मांग की है।उन्होंने कहा कि प्रदेश में किसानों की हालत पहले से ही दयनीय है। भाजपा सरकार में खेती अब लाभ का नहीं, घाटे का सौदा बन गई है। किसानों को खाद, बीज और सिंचाई जैसी मूलभूत आवश्यकताएं महंगी दरों पर मिल रही हैं, ऊपर से उन्हें अपनी फसलों का उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता।
अब प्राकृतिक आपदा ने उनकी बची-खुची उम्मीदें भी तोड़ दी हैं।अखिलेश यादव ने कहा कि यह समय खानापूर्ति करने का नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर गंभीर राहत देने का है। सरकार को चाहिए कि वह बिना देरी किए विशेष सर्वेक्षण कराए और फसलों के नुकसान की भरपाई के लिए तत्काल आर्थिक सहायता मुहैया कराए। साथ ही आकाशीय बिजली से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को पर्याप्त मुआवज़ा दिया जाए।उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संकट की इस घड़ी में समाजवादी पार्टी पूरी मजबूती के साथ किसानों और पीड़ित परिवारों के साथ खड़ी है। उन्होंने भाजपा सरकार से आग्रह किया कि किसानों की मदद को सिर्फ एक ‘प्रक्रिया’ मानने की बजाय, इसे मानवीय संवेदना और प्राथमिकता से देखा जाए।