अंतराष्ट्रीय

अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था नाजुक दौर

नई दिल्ली. अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था इन दिनों बेहद ही नाजुक दौर से गुजर रही है. बेरोजगारी और गरीबी बढ़ती ही जा रही है. अर्थशास्त्रियों ने चेताया है कि अगर वक्त रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था रसातल में डूब जाएगी. पिछले साल अगस्त में तालिबान के कब्जे के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट आई है. तालिबान के आने के बाद भारत ने अपने सारे मिशन बंद कर दिए. भारत ने अभी तक तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी है, जिसकी वजह भारत के साथ होने वाला व्यापार पूरी तरह से ठप पड़ गया है.

अफगानिस्तान में हमेशा से भारतीय चीनी की खपत होती रही है, वहीं भारत अफगान मसालों और सूखे मेवों, खासकर खुबानी और अंजीर के सबसे बड़े आयातकों में से एक है. तालिबान का कब्जा ऐसे समय हुआ, जब अफगानिस्तान में सूखे मेवों की बंपर फसल होने की उम्मीद थी. इसका अधिकांश हिस्सा भारत को निर्यात किया जाता, मगर तालिबान के आने के बाद ऐसा नहीं हो पाया. कोई राजनयिक संबंध नहीं होने की वजह से अफगानिस्तान और भारत के द्विपक्षीय व्यापार के भविष्य पर अंधेरा छा गया. साल 2019-2020 में दोनों देशों के बीच 1.5 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था. लेकिन 2021-22 के वित्तीय वर्ष में व्यापार में 40 फीसदी की गिरावट आई.

व्यापार पर गहरा असर
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष में कुल व्यापार 3,719.76 करोड़ रुपये था, जबकि 2020-21 में यह 6,106.20 करोड़ रुपये दर्ज किया गया था. वहीं भारतीय व्यापारियों का कहना है कि तालिबानियों के आने के बाद उनके व्यापार पर जबरदस्त असर पड़ा. वहीं अफगान-भारत एयर फ्रेट कॉरिडोर का उद्घाटन साल 2017 में हुआ था. यह काबुल, कंधार और हेरात को दिल्ली, मुंबई और चेन्नई से जोड़ता है, लेकिन पिछले साल अगस्त से यह निलंबित है. लेकिन भारतीय निर्यातकों ने समुद्री मार्ग से कराची बंदरगाह और वहां से सड़क मार्ग से अपना माल अफगानिस्तान भेजना जारी रखा.

नवी मुंबई स्थित कृषि जिंस थोक कंपनी एमआईआर कोमोडिटीज के प्रबंध निदेशक राहिल शेख का कहना है कि तालिबान के आने के एक महीने बाद व्यापार फिर से चालू हो गया और अब हर महीने भारत से 60,000 टन चीनी निर्यात हो रहा है. उनका कहना है कि चीनी को बड़े कंटेनरों में मुंबई से जवारलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट या गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह से कराची भेजा जाता है. वहां से सड़क के रास्ते माल अफगानिस्तान पहुंचता है.

दुबई के बैंकों से हो रहा भुगतान
शेख और अन्य व्यापारी पहले अफगान बैंकों के माध्यम से भुगतान करते थे, लेकिन अब सभी लेनदेन दुबई के माध्यम से किए जा रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, व्यापारियों को भुगतान करने में किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हो रही है, क्योंकि तालिबान शासन भी आवश्यक वस्तुओं की सामान्य आपूर्ति बनाए रखना चाहता है. अफगानिस्तान में जो चीनी पहुंचता है, उसका 90 फीसदी उत्पादन महाराष्ट्र की चीनी मिलों में होता है.

इसी तरह अफगानिस्तान से खुबानी, सूखे अंजीर, हींग और छोटे पिस्तों का आयात भी होता है. मुंबई स्पाइस मार्केट के निदेशक और ड्राई फ्रूट ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय भूटा का कहना है कि तालिबान के कब्जे के एक पखवाड़े के भीतर आयात फिर से शुरु हो गया. उन्होंने भी बताया कि पहले अफगानिस्तान के बैंकों से भुगतान होता था, लेकिन अब अधिकांश व्यापार दुबई स्थित बैंकों से हो रहा है. तालिबान शासन और भारत सरकार इस बात से अवगत हैं कि व्यापार में तेजी आई है और दुबई एक भुगतान केंद्र के रूप में उभरा है.

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