सनातन धर्म में भविष्य पुराण (Bhavishya Purana)के अनुसार आठ प्रकार के होते हैं विवाह, जानिए किसे माना गया है सर्वश्रेष्ठ

Bhavishya Purana: सनातन धर्म के 16 संस्कारों में विवाह एक मुख्य और पवित्र संस्कार माना जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार मुख्य 8 प्रकार के विवाह होते हैं। ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पैशाच विवाह। ब्रह्म विवाह को सबसे श्रेष्ठ और पैशाच विवाह को सबसे निम्न कोटि का माना गया है। आइये जानते हैं अ रीति व नीति के अनुसार भविष्य पुराण में बताए गए आठ प्रकार के विवाहों के बारे में पूरी जानकारी।
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ब्रह्म विवाह
ब्रह्म विवाह भविष्य पुराण में बताए गए सभी आठ प्रकार के विवाह में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अच्छे शील स्वभाव व उत्तम कुल के वर से कन्या का विवाह उसकी सहमति व वैदिक रीति से करना ब्रह्म विवाह कहलाता है। इसमें वर व वधु से किसी तरह की जबरदस्ती नहीं होती है। कुल व गोत्र का विशेष ध्यान रखकर ये विवाह शुभ मुहूर्त में किया जाता है। सरल शब्दों में समझें तो इसे अग्नि विवाह या संकल्पित विवाह भी कहा जाता है। मौजूदा समय में यह अरेंज मैरिज के नाम से प्रचलित है। इस विवाह में अग्नि को साक्षी मान कर वर-वधु को 7 वचन दिलाए जाते हैं। दोनों हर प्रकार के समय और परिस्थिति में एक-दूसरे के साथ रहने का संकल्प लेते हैं। इसमें संबंध विच्छेद का कोई प्रावधान नहीं होता है। हालांकि कानून तौर पर ऐसा हो सकता है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार नहीं।
देव विवाह
देव विवाह वर्तमान समय में कहीं भी प्रचलन में नहीं है। इस विवाह में पूर्वकाल में यज्ञ में ऋत्विज को अलंकृत कर कन्या सौंपी जाती है। इसमें कन्या की पूर्ण सहमति होती है। इस विवाह में कन्या को किसी उद्देश्य, सेवा, धार्मिक कार्य या मूल्य के रूप में वर को सौंपा जाता है।
आर्ष विवाह
इस विवाह में धर्म के लिए वर से एक या दो जोड़े गाय व बैल के लेकर कन्या को पूरे विधि विधान से उसे सौंपना आर्ष विवाह कहलाता है। यह ऋषि विवाह से संबंध रखता है। इस प्रकार के विवाह सतयुग में हुआ करते थे।
प्रजापत्य विवाह
प्रजापत्य विवाह एक प्रकार से आज के समय में होने वाली अरेंज मैरिज ही है। इस विवाह में एक विशेष पूजन के बाद पिता ये कहते हुए कन्या दान करे कि तुम दोनों एक साथ गृहस्थ धर्म का पालन करो तो ये विवाह प्रजापत्य विवाह कहलाता है। इसी प्रकार राजा दक्ष ने अपनी बेटी सती का विवाह भगवान शिव से कराया था। याज्ञवल्क्य के अनुसार इस विवाह से उत्पन्न संतान अपनी पीढ़ियों को पवित्र करने वाली होती है।
असुर विवाह
असुर विवाह को सही नहीं माना जाता है। इस विवाह में कन्या पक्ष के परिवार को वर द्वारा धन या अन्य कई प्रकार के संपत्ति देकर कन्या की मर्जी के बिना उससे विवाह किया जाता है। यह आसुरी विवाह कहलाता है।
गंधर्व विवाह
गंधर्व विवाह में वर और वधु आपसी इच्छा से अपने-अपने परिवारों से सहमति लेकर विवाह करते हैं। यह वर्तमान प्रेम विवाह की तरह है। भगवान कृष्ण और अर्जुन ने गंधर्व विवाह ही किया था।
राक्षस विवाह
यह प्रकार से निम्न कोटि का विवाह कहलाता है। इस विवाह में किसी कन्या से मारपीट करते हुए उसका जबरदस्ती अपहरण कर उससे विवाह रचाया जाए जाता है। रावण ने माता सीता के साथ इसी तरह विवाह करने का प्रयास किया था।
पैशाच विवाह
यह आठ प्रकार में सबसे निम्न कोटि का विवाह कहलाता है। इस विवाह में किसी सोई हुई, नशे में मतवाली, मानसिक रूप से कमजोर कन्या को उसकी स्थिति का लाभ उठाकर ले जाना और फिर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाकर विवाह करना पैशाच विवाह कहलाता है।