एक पेड़ा( tree freed ) ने कालापानी की सजा से कराया था मुक्त
गया. गया के मशहूर केसरिया पेड़ा ( tree freed ) अपने आप में इतिहास है. आज जिस केसरिया पेड़े के स्वाद का कायल पूरा देश है वो कभी आजादी के दीवानों ने इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को खिलाकर मुक्ति पाई थी. विष्णुपद के पंचमहला मोहल्ले में मौजूद केसरिया पेड़ा दुकान करीब 300 साल पुराना है. सात पीढ़ी से यहां केसरिया पेड़े का निर्माण किया जा रहा है.
गया का केसरिया पेड़ा पूरे देश में मशहूर है. गया के विश्व प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर में रोजाना दो केसरिया पेड़ा चढ़ाया जाता है. दूसरे राज्य से आने वाले श्रद्धालु भी इस पेड़े को पसंद करते हैं. इसे अपने साथ ले जाते हैं. ज्यादातर पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के श्रद्धालु इस पेड़े को पसंद करते हैं. खोवा, दालमिस्री, जाफरान, केशर, गुलाब और बडी इलायची मिलाकर इस पेडे का निर्माण होता है. जिससे इसका स्वाद बढ़ जाता है. अभी गया में 400 रुपये किलो इस पेड़े को बेचा जाता है जबकि स्पेशल पेड़ा 1200 रुपए किलो बिकता है.
गया संग्रहालय में भी एक बोर्ड लगाकर किया है जिक्र
केशरिया पेड़ा का जिक्र स्वतंत्रता सेनानियों के कई किताबों में भी किया गया है. बिहार सरकार ने भी गया संग्रहालय में एक बोर्ड लगाकर इसके उत्पादनकर्ता बाढो साव का जिक्र किया गया है. आज उन्हीं के वंशज 300 साल से इस पेड़ा का निर्माण कर रहे है. स्वतंत्रता के लड़ई में इस पेड़े का जिक्र है और इसके पीछे रोचक कहानी है.
सुनिए इसका 300 साल पुराना इतिहास
पेड़ा के निर्माण में जुटे बाढो साव के वंशज ललित कुमार गुप्ता बताते हैं की ब्रिटिश हुकूमत के दौरान काम कर रहे भारतीय सिपाही इसी गली से गुजर रहे थे. उस सिपाहियों ने यहां से पेड़ा खरीदा. उसी टुकड़ी में शामिल एक सिपाही ने दुकान में रखा एक पेड़ा उठा लिया. आधा टुकड़ा खाकर आधा वहीं रख दिया. बाढो साव इस पर बिफर पड़े कि सारा पेड़ा अपवित्र कर दिया. उसे सारे पड़े खरीदने होंगे. इसी बात पर सिपाही से भिड़ंत हो गई. यह सब देख बाढो साव के मित्र और पहलवान नाहर सिंह निकले. वह हमेशा तलवार रखे थे, उन्होंने सिपाहियों पर तलवार से वार कर दिया. इसके बाद माहौल बिगड़ गया और सभी पकड़े गए. इनमें इन दोनों के साथ-साथ गया कि तीर्थ पुरोहित गया पाल पंडा भी शामिल थे. सभी को काला पानी की सजा दी गई.
कालापानी की सज़ा
कालापानी का सजा काट रहे इन लोगों को कुछ वक्त गुजरने के बाद अंग्रेज अधिकारियों को थोड़ी रहम आई. इसके पीछे गया पाल अंडों का योगदान माना जाता है. जो बंदीगृह में भी रहकर शास्त्रीय संगीत आदि का राग वहां छेड़ते थे. इन लोगों से कहा गया कि यदि वे महारानी को प्रसन्न कर दे तो अपने जन्मदिन पर रिहाई दे देंगी. बाढो साव यहीं पर पूर्वजों का हुनर का इस्तेमाल कर केसरिया पेड़ा बनाया. जिसे महारानी को भेजा गया. यह लोग मकसद में कामयाब हो रहे थे महारानी विक्टोरिया को यह पीड़ा काफी भाया और करीब 10 लोगों को रिहा करने का आदेश दिया गया.
केशरिया पेड़ा के निर्माण में जुटे बाढो साव का सातवीं पीढी के आदित्य कुमार गुप्ता बताते है की पहले की तुलना में डिमांड थोड़ कम हुआ है, लेकिन हमलोग कोशिश कर रहे है कि केशरिया पेड़ा फिर से अपना अस्तित्व बनाये, जो मुकाम हासिल किया था. उसी मुकाम को पाना चाहते है. केशरिया पेड़ा को अपनी पहचान दिलाना चाहते हैं. इस पेडे का इस्तेमाल पुजा पाठ में तो होता ही है. इसे फलहारी के रुप में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसमे अन्न का मात्रा कही भी नही है.