बॉक्स ऑफिस पर धमाका करने से चूकी फिल्म थैंक गॉड,लगा ग्रहण !

फिल्म थैंक गॉड की अवधि बस दो घंटे है और दर्शकों की बदलती पसंद के हिसाब से ये अवधि उचित भी लगती है लेकिन इस कम अवधि में भी इसकी पकड़ पूरे समय दर्शकों पर बरकरार नहीं रह पाती है। दिवाली के अगले दिन रिलीज हुई फिल्म थैंक गॉड की कहानी में एक बात तो अच्छी है और वह ये कि ये इस बात के लिए दर्शकों को प्रेरित करती है कि जो मिला है उसके लिए ईश्वर का शुक्रगुजार होना बहुत जरूरी है। आम जिंदगी जीते हुए हम अक्सर किसी न किसी बात को लेकर कुढ़ते ही रहते हैं और ये भूल जाते हैं कि जो मिला है वह किसी भी वरदान से कम नहीं है।

अजय देवगन फिल्म के केंद्र बिंदु हैं और उनके संवादों व अभिनय के चारों तरफ फिल्म के बाकी किरदार परिक्रमा सी लगाते रहते हैं। फिल्म के ट्रेलर के बाद इसमें दैवीय चरित्रों के नामों को लेकर मची हाय तौबा के बाद उनके किरदार का नाम चित्रगुप्त से बदलकर सीजी हो गया है। फिल्म में एक कमर्शियल हिंदी सिनेमा के सारे मसाले डालने की निर्देशक इंद्र कुमार ने काफी कोशिश की है लेकिन अपने विचार में ये फिल्म कभी फिल्म ब्रूस आलमाइटी की तो कभी सॉर्टे कुगलरसे प्रेरित दिखती है। फिल्म का ये उधार का विचार कुछ देर तक तो दर्शकों को लुभाता है लेकिन फिल्म जैसे जैसे आगे बढ़ती है फिल्म में किसी तरह की मौलिकता का अभाव दर्शकों को बांधकर रख नहीं पाता।
नए जमाने के दर्शकों से तारतम्य नहीं – फिल्म थैंक गॉड की अवधि बस दो घंटे है और दर्शकों की बदलती पसंद के हिसाब से ये अवधि उचित भी लगती है लेकिन इस कम अवधि में भी इसकी पकड़ पूरे समय दर्शकों पर बरकरार नहीं रह पाती है। फिल्म में चुटकुले हैं, व्हाट्सएप पर दिन रात आते रहने वाले संदेशों से लिए गए किस्से हैं। इस सबके चलते फिल्म के दोनों लेखक आकाश व मधुर फिल्म में कुछ भी मौलिक अपनी तरफ से जोड़ नहीं पाते हैं। एक अच्छे विचार को एक संपूर्ण मनोरंजक फिल्म में न तब्दील कर पाना ही फिल्म थैंक गॉड की सबसे बड़ी कमजोरी है। हिंदी सिनेमा के संक्रमण काल में रिलीज हुई इस फिल्म के बाद इसके निर्देशक इंद्र कुमार को भी अपने सिनेमा की सोच और स्वभाव बदलने की जरूरत है। उनकी तय फॉर्मूले वाली फिल्मों का दर्शक वर्ग अब सिनेमाघरों से दूर हो चुका है। सिनेमाघरों तक दर्शकों को लाने के लिए इंद्र कुमार ने स्पेशल इफेक्ट्स के जरिये इसके सेट्स वगैरह में भव्यता लाने की कोशिश तो की है लेकिन फिल्म की पटकथा उतनी भव्य नहीं है।
कमजोर कहानी में गतिशीलता की कमी – फिल्म थैंक गॉड की कहानी इस लोक से लेकर उस लोक तक विचरण करती है। चिड़चिड़े स्वभाव का रीयल इस्टेट कारोबारी एक सड़क दुर्घटना का शिकार होता है। आत्मा उसकी वहां पहुंचती है जहां इंसान के धरती लोक पर किए पाप और पुण्य का हिसाब होता है। चित्रगुप्त उर्फ सीजी उसके साथ एक खेल खेलने को कहते हैं। खेल में जीतने पर आत्मा का उसके शरीर से फिर से मिलन होगा। बशर्ते तब तक शरीर आत्मा से पुनर्मिलन लायक बचा रह जाए। सीजी इसे बाद गेम शो के होस्ट बन जाते हैं और उनके सामने अपने हिसाब किताब का लेखा जोखा जानने पहुंची आत्मा इस गेम शो की प्रतिभागी। फिल्म में इसके बाद ड्रामा है, कॉमेडी हैं, एक्शन और इमोशन भी है, बस कहानी यहीं अटकी रह जाती है।
नहीं काम आया अजय और सिद्धार्थ का करिश्मा
अजय देवगन का हिंदी सिनेमा के दर्शकों में एक अलग आधार रहा है। उनके इसी दर्शक वर्ग की भावनाओं को भुनाने की कोशिश फिल्म ह्यथैंक गॉड अलग अलग तरीकों से करती है लेकिन जिन इंद्र कुमार ने कभी अपनी फिल्म इश्क से अजय देवगन को कॉमेडी फिल्म में पेश करने का नुस्खा ईजाद किया था, वही इंद्र कुमार अजय देवगन को उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देते हैं, जहां उनकी अगली कॉमेडी फिल्म को देखने से पहले दर्शकों को सौ बार सोचना होगा। अजय देवगन बढ़ती उम्र में भी अपना जादू बरकरार रखने की पूरी कोशिश भी करते हैं लेकिन सही पटकथा के अभाव में उनकी ये कोशिशें बेकार जाती हैं। उनसे कंधे से कंधा मिलाकर फिल्म का भार उठाने की कोशिश में सिद्धार्थ मल्होत्रा भी दिखते हैं। सिद्धार्थ मल्होत्रा की पिछली फिल्म शेरशाह सीधे ओटीटी पर रिलीज हुई थी। इस फिल्म के सहारे ही सिद्धार्थ अपनी ब्रांडिंग लगातार चमकाते रहे हैं लेकिन हिंदी सिनेमा के कलाकारों की अगली कतार में आ पाने का अभी उन्हें और इंतजार करना होगा।
सहायक कलाकार भी दिखे बेरंग – अजय देवगन और सिद्धार्थ मल्होत्रा के अलावा बाकी किसी दूसरे कलाकार की अदाकारी फिल्म थैंक गॉड में दर्शकों को प्रभावित करने में विफल है। रकुल प्रीत सिंह फिर एक बार एक कमजोर किरदार के चलते अपना असर छोड़ने में विफल रही हैं। इस किरदार को कहानी का उत्प्रेरक बनाया जा सकता था लेकिन लेखकों का पूरा ध्यान चूंकि अजय देवगन और सिद्धार्थ मल्होत्रा के किरदारों पर रहा लिहाजा रकुल प्रीत का किरदार भी बस रिक्त स्थानों की पूर्ति से आगे नहीं बढ़ पाता। कीकू शारदा और सुमित गुलाटी का फिल्म में बेहतर उपयोग फिल्म को नई ऊर्जा दे सकता था लेकिन दोनों के हाथ फिल्म में ऐसा कोई क्षण नहीं आता जिसमें वह अपनी कलाकारी का कोई नया रंग दर्शकों के सामने प्रस्तुत कर सकें। सीमा पाहवा का किरदार भी कमजोर पटकथा के चलते कोई असर नहीं छोड़ पाया।
दिवाली पर नहीं कर पाई धमाका
इंद्र कुमार की फिल्मों का संगीत कभी उनके सिनेमा का सबसे मजबूत पक्ष होता रहा है। लेकिन, फिल्म थैंक गॉड में ये विभाग भी उनकी मदद नहीं कर पाया है। अमर मोहिले ने एक भी गाना फिल्म का ऐसा बनाने में कामयाबी नहीं पाई जो दर्शकों को फिल्म खत्म होने के बाद भी याद रह सके। तकनीकी टीम में सबसे अच्छा काम असीम बजाज ने किया है। स्पेशल इफेक्ट्स के जरिये बने फिल्म के सेट्स पर उनकी सिनेमैटोग्राफी प्रभावित करती है। फिल्म की रफ्तार भी इसके संपादक धर्मेंद्र शर्मा ने ठीक रखी है लेकिन चूंकि फिल्म की कहानी औऱ पटकथा में ही ज्यादा कुछ नहीं है लिहाजा ये तकनीकी दक्षता फिल्म की मदद नहीं कर पाती है। दिवाली के अगले दिन रिलीज हुई दोनों फिल्मों ह्यथैंक गॉड और राम सेतु का नतीजा एक जैसा है। दोनों फिल्में दर्शकों को लुभाती तो बहुत हैं, लेकिन उनका मनोरंजन करने में दोनों विफल हैं।