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चुनावी वादों के लिए एक समान प्रारूप बना सकता है चुनाव आयोग

राजनीतिक दलों (election Commission) द्वारा किए जाने वाले वादों को लेकर तमाम जानकारियां चुनाव आयोग को देना अनिवार्य (election Commission) किया जा सकता है। इससे वादों की मानक प्रक्रिया तय हो सकेगी। बता दें, विभिन्न दलों द्वारा चुनाव के पूर्व मुफ्त में सुविधाएं देने के वादे किए जाते हैं। इसे मुफ्त की रेवड़ी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई है।

इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि केंद्र मुफ्त उपहारों के पेशेवरों और विपक्षों पर चर्चा करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुला सकता है इसे कैसे रोक सकता है, इस पर निर्णय ले सकता है। जब दल वोटरों को अपने वादों के आर्थिक रूप से व्यावहारिक होने की प्रामाणिक जानकारी देंगे तो मतदाता आकलन कर सकेंगे।

आयोग ने सभी दलों को पत्र लिखकर कहा कि चुनावी वादों पर पूर्ण जानकारी नहीं देने और उसके वित्तीय स्थिरता पर पड़ने वाले अवांछनीय प्रभाव की अनदेखी नहीं की जा सकती। चुनावी वादों का मामला 26 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार के लिए तीन जजों की पीठ को सौंप दिया था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा मुफ्त के इस मसले पर विशेषज्ञ कमिटी का गठन करना सही होगा, लेकिन उससे पहले कई सवालों पर विचार करना जरूरी है। 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी फैसले की समीक्षा भी जरूरी है।

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