अपने लिए जिये तो क्या जिये

स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक
मानव शरीर पाकर भी रात दिन अपार दौलत हाँसिल करने वाला इंसान आदमियत से दूर हो गया है वह अपने लिए जीता है नम्बर की आमदनी के लिए वह जीवन भर भागता भागता अंत में बड़ी भयानक बीमारियों की चपेट में आने पर दम तोड़ देते है वह सहारा देने लायक होकर भी किसी का सहारा नहीं बनता बस अपने व परिवार के लिए धन के पीछे भागता है अंत में उसी के अपने लोग बोलते हैं राम नाम सत्य है!
‘राम नाम सत्य है’ ऐसा क्यों बोलते हैं शवयात्री, वजह जानकर खड़े हो जाएंगे रोंगटे और सोचने पर हो जाएंगे मजबूर !
क्या आपको पता है कि, हिंदुओं में जब शव को ले जाया जाता है तो लोग रास्ते भर राम नाम सत्य है क्यों बोलते हैं।दुनिया में आए हर जीव को कभी न कभी मौत का सामना जरुर करना पड़ता है। इससे ना तो आज तक कोई बच पाया है और ना ही आगे ऐसा होगा। जिंदगी भर इंसान पैसे, शानों-शौकत के चक्कर में इधर से उधर भागता रहता है, छल-कपट का सहारा लेता है, लेकिन मृत्यु के बाद उसे सबकुछ संसार में ही छोड़कर ऊपर जाना पड़ता है। साथ केवल अच्छे कर्म ही जाता है जिसके आधार पर उसे नया जन्म मिलता है।
एक और चीज इस राह में इंसान का साथ देता है और वह है ‘राम नाम।’ आप सभी ने ऐसा देखा होगा कि, हिंदुओं में जब शव को ले जाया जाता है तो लोग रास्ते भर राम नाम सत्य है बोलते जाते हैं। क्या आपको पता है कि, ऐसा क्यों किया जाता है? इसके पीछे कारण क्या है? आज हम आपको इसी बारे में जानकारी देने जा रहे हैं
सबसे पहले बता दें, इस बात का उल्लेख महाभारत काल में पांडवों के सबसे बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर ने एक श्लोक के जरिए किया था।
‘अहन्यहनि भूतानि गच्छंति यमममन्दिरम्।
शेषा विभूतिमिच्छंति किमाश्चर्य मत: परम्।।’
यानि कि,मृतक को श्मशान ले जाते समय सभी ‘राम नाम सत्य है’ कहते हैं परंतु शवदाह करने के बाद घर लौटते ही सभी इस राम नाम को भूलकर फिर से माया मोह में लिप्त हो जाते हैं। लोग मृतक के पैसे, घर इत्यादि के बंटवारे को लेकर चिन्तित हो जाते हैं। इसी सम्पत्ति को लेकर वे आपस में लड़ने-भिड़ने लगते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर आगे कहते हैं कि, “नित्य ही प्राणी मरते हैं, लेकिन अन्त में परिजन सम्पत्ति को ही चाहते हैं इससे बढ़कर और क्या आश्चर्य होगा?”