मनुष्य की ही गलतियों का परिणाम है महामारी कोरोना

स. सम्पादक शिवाकान्त
भौतिक सुखों की चाह व स्वार्थान्धता के चलते अमीर बनने की असीम इच्छाओं ने हमको अंधा कर दिया है हम ये भी भूल बैंठे कि यह जीवन विधाता की अमूल्य धरोहर है व हमको परोपकारिता के लिए प्राप्त हुआ है हमारी अनगिनत सांसे वृक्षो पर आधारित हैं ईश्वर ने जमीन ,आसमान , जल, वायु व विभिन्न जानवरों को भी शरीर प्रदान किया है प्रत्येक जीवधारी के दुनियां में आने का विषेश कारण है आप ऐसा कोई काम ना करें जिससे उसकी बनाई हुई प्रकृति दूषित हो हवाओं जहरीला पन हो लेकिन कहाँ मानता है आज का इंसान 5 या साढ़े पांच फिट का मानव बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूमना चाहता है आवस्यकतायें इतनी असीमित हैं कि हजारों कलकारखाने केवल मनुष्यों की आवस्यकता की वस्तुयें बना रहे हैं जिनसे निकलने वाली दूषित गैसें व जल प्रकृति को जहरीला बना रही हैं!
मनुष्य कभी भी सर्वशक्तिमान व पूर्ण स्वतंत्र नहीं हो सकता। वह सदैव अपने जीवन-यापन के लिए प्रकृति के बनाए अनुशासन को मानने के लिए बाध्य है। जब भी वह इस अनुशासन का उल्लंघन करता है, उसे इस प्रकार के परिणाम भोगने ही पड़ते हैं। इसे आप परमात्मा की ओर से दिया गया दंड कह लें या फिर प्राकृतिक आपदा, वास्तव में यह हमारे अनुशासनहीन व स्वच्छंद जीवनशैली का परिणाम है।
आज ‘कोरोना’ नामक इस महामारी ने हमें अवसर दिया है कि हम अपने अंतस में झांकें और इस अकाट्य सत्य का साक्षात्कार करें कि हमें जो कुछ भी अपने जीवन-यापन के लिए प्राप्त हुआ है, चाहे वे हमारी सांसें ही क्यों न हों, परमात्मा की ओर से दिया गया प्रसाद है। हम उसके अधिकारी नहीं हैं, वह केवल हमें ईश्वर की कृपा से मिला है अत: हम उसका आदर करें। हमें अपनी भौतिकतावादी जीवनशैली को परिवर्तित करना होगा, क्योंकि भौतिकतावादी जगत का सत्य इन कुछ दिनों में हम सभी के सामने आ चुका है।
आज बड़ी-बड़ी महाशक्तियां इस अदने-से विषाणु के आगे घुटने टेकने पर विवश हो चुकी हैं। वर्तमान समय की आवश्यकता प्रकृति के साथ लयबद्ध होने की है, न कि अपने तथाकथित विकास के लिए उसका शोषण करने की। हमें अपने विकास के मानदंड बदलने होंगे। हम विकास के नाम पर प्रकृति के विनाश के सहभागी नहीं बन सकते।
हमें अपने लोभ, लालच व वर्चस्व की लड़ाई को स्थगित करना होगा। हम सर्वशक्तिमान हैं इसलिए स्वच्छंद आचरण करेंगे, ऐसी आत्मवंचनाओं से हमें बचना होगा। आज हमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना के आधार पर अपना आचरण करना सीखना होगा।
सर्वशक्तिमान केवल ईश्वर है, जगत में जो भी गति हो रही है, वह उसी नियंता की इच्छा का परिणाम मात्र है। यदि उसकी मर्जी न हो तो समस्त अस्तित्व चाहकर भी गति नहीं कर सकता। कोरोना संकट इसका जीवंत उदाहरण है। समस्त अस्तित्व को उसी सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान के अनुशासन में चलना होता है।