अंतराष्ट्रीय

मिलिए उस भारतीय ‘राइस मैन’ (Rice Man)से जिसने दुनिया को खिलाया चावल

नई दिल्ली. आपने आयरन मैन, स्पाइडर मैन यहां तक की पैड मैन तक का नाम सुना होगा. लेकिन क्या आपने ‘राइस मैन’ का नाम सुना है. हां.. ‘राइस मैन’, तो चलिए आज आपको बताते हैं उस ‘राइस मैन’ (Rice Man) के बारे में, जिनके द्वारा खोजे गए चावल को दुनिया भर के लोग खाते हैं. पंजाब के जालंधर में पैदा हुए गुरदेव सिंह खुश को दुनिया भर के लोग ‘राइस मैन’ के नाम से जानते हैं. खुश चावल के लिए वही हैं, जो ‘हरित क्रांति के जनक’ नॉर्मन बोरलॉग, गेहूं के लिए थे. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार इतिहास में कोई भी खाने वाली फसल दुनिया भर में उतने क्षेत्र में नहीं लगाई गई है, जितनी कि उनकी ब्लॉकबस्टर IR36 और IR64 चावल की किस्में. शुरुआत में तो गुरदेव सिंह को लगता था कि चावल खाने वाले ज्यादा नहीं हैं. वह ज्यादातर रोटी खाना पसंद करते हैं. यह उन्हें काफी हद तक ‘मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ जैसा बनाता है. वर्गीज कुरियन जो दूध को नापसंद करते थे और इसे कभी नहीं पी सकते थे.

हालांकि गुरदेव ने वास्तव में धान के खेतों को तब तक नहीं देखा था, जब तक कि वह 1967 के जुलाई में लॉस बानोस, फिलीपींस में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) में नहीं आए थे. एक किसान करतार सिंह के सबसे बड़े बेटे के रूप में वे पंजाब के जालंधर जिले के फिल्लौर तहसील के रुरकी गांव में 22 अगस्त, 1935 को पैदा हुए थे. खुश केवल मक्का, गेहूं, मूंग और काला चना को, उनकी 15 एकड़ भूमि पर उगाए जाने को याद करते हैं.

ऐसे शुरू हुई कहानी
खुश ने जून 1955 में एग्रीकल्चर कॉलेज लुधियाना से ग्रेजुएशन किया. उनके अच्छे मार्क्स ने उन्हें कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस (यूसीडी) में विज्ञान में मास्टर करने के लिए एडमिशन दिलाया. खुश का पीएचडी शोध राई पर था, एक अनाज जो गेहूं और जौ से निकटता से संबंधित है. अगस्त 1966 में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के निदेशक रॉबर्ट एफ. चांडलर ने खुश को छह साल पुराने संस्थान को ज्वॉइन करने के लिए आमंत्रित किया. एक साल के भीतर खुश आईआरआरआई में शामिल हो गए.

IR36 और IR64 चावल की किस्मों को खोजा
आगे चलकर खुश राइस ब्रीडर बन गए क्योंकि, आईआरआरआई में हर कोई चावल पर काम करता था. यहीं पर खुश द्वारा पैदा की गई धान (चावल) की किस्में विशेष रूप से IR36 और IR64 ने सभी को प्रभावित किया. IR36 मई 1976 में जारी किया गया था और 1980 के दशक के दौरान सालाना 11 मिलियन हेक्टेयर में लगाया गया था. किसी भी प्रकार की खाने वाली फसल यहां तक की धान को भी इससे पहले कभी इतने बड़े स्तर पर नहीं बोया गया था.
इन आंकड़ों ने बनाया ‘राइस मैन’
खुश एक ब्रीडर के रूप में IRRI में शामिल हुए थे, प्रशासनिक पदों में बहुत कम रुचि दिखाते हुए वह फरवरी 2002 में रिटायर हुए. उनके नेतृत्व में 75 देशों में कुल 328 चावल ब्रीडिंग लाइनों को 643 किस्मों के रूप में जारी किया गया था. इनमें से कई जिनमें IR42 और IR72 शामिल हैं, व्यापक रूप से बोए गए थे. इसका असर ये हुआ कि 1966 और 2000 के बीच वैश्विक चावल उत्पादन 133.5 प्रतिशत (257 मिलियन से 600 मिलियन टन तक) बढ़ गया. अगर धान बोने के लिए उपयोग करने वाले खेतों की बात करें तो इसमें 20.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई.

Show More

यह भी जरुर पढ़ें !

Back to top button