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अरुणाचल प्रदेश(Arunachal Pradesh) में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने को प्राथमिकता

गुवाहाटी. सेना ने उत्तर पूर्व में आतंकवाद विरोधी (सीआई) काम को छोड़ने और चीन के साथ लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर ध्यान केंद्रित करने के लिए खुद को फिर से तैयार किया है. जिसके तहत अब पूर्वी अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में बुनियादी ढांचे के निर्माण और सुदृढ़ीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. सेना के शीर्ष अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि इन सीमावर्ती जिलों में सीमा से सटी जगहों पर आवास और हेलीपैड के निर्माण के साथ बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं. सैनिक रसद को मजबूत करना जैसे कि बेहतर गोला बारूद भंडारण सुविधाओं का निर्माण, सड़कों का निर्माण और अंतिम मील तक कनेक्टिविटी कायम करने के लिए खच्चरों के और पैदल चलने लायक रास्तों को बनाने का काम जारी है. सुरक्षा के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने का लक्ष्य सीमाओं पर सैनिकों को तेजी से जुटाने और उनको एलएसी की गश्त बढ़ाने में मदद करना है.

 

सेना की 2 माउंटेन डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) मेजर जनरल एम.एस बैंस ने दिनजान मुख्यालय में पत्रकारों के एक समूह को बताया कि इस क्षेत्र में सेना का ध्यान पूरी तरह से उत्तरी सीमाओं (एलएसी) पर स्थानांतरित हो गया है और असम राइफल्स ने बड़े पैमाने पर आतंकवार रोधी कामों को संभाल लिया है. उन्होंने कहा कि दिबांग, दाओदेलाई और लोहित घाटियों में इस समय अच्छी तरह से संपर्क सुविधा है. जबकि सेना के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि जहां भी सड़कें बन रही हैं, वहां उड्डयन सुविधाएं बनाई गई हैं, जिससे नागरिक आबादी को भी मदद मिलती है. क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास में दूरसंचार कंपनियों ने 135 4जी मोबाइल टावर लगाए हैं. जिसमें वालोंग और किबिथू के सीमावर्ती क्षेत्रों में शामिल हैं. 2 माउंटेन डिवीजन पूर्वी अरुणाचल प्रदेश के पांच जिलों- अपर दिबांग, लोअर दिबांग, लोहित, नामसाई और अंजॉ जिलों की देखरेख करती है. राज्य में 26 जिले हैं.
तवांग को प्राथमिकता क्यों
उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश सेना के दो अलग-अलग कोर के अंतर्गत आता है. जबकि 4 कोर पर संवेदनशील तवांग क्षेत्र और कामेंग इलाके की देखभाल का भार है, 3 कोर अरुणाचल प्रदेश के बाकी हिस्सों की सुरक्षा संभालती है. बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, नवीनतम सैन्य उपकरणों को आगे बढ़ाने और आक्रामक क्षमताओं का निर्माण करने के लिए सेना की एक बड़ी ताकत सुनिश्चित करने के मामले में भारत ने हमेशा तवांग को प्राथमिकता दी है. क्योंकि राजनीतिक और सांस्कृतिक कारणों से इस इलाके में चीन की लंबे समय से रुचि है. जिसे देखते हुए भारत ने ऐसा किया था. जबकि सैन्य अधिकारियों का कहना है कि अरुणाचल प्रदेश के बाकी हिस्सों के लिए इस मामले में एक उद्देश्य की कमी थी.

2 माउंटेन डिवीजन के तहत आने वाले इलाकों में फिशटेल 1 और 2 और एलएसी के साथ लगे दीचू को संवेदनशील माना जाता है. सेना के बुनियादी ढांचे के विकास से नागरिक आबादी को भी लाभ होगा. जोखिम भरे इलाकों और अब तक बुनियादी ढांचे की कमी के कारण सैनिक महीने में एक या दो बार एलएसी पर गश्त करते हैं. एलएसी तक पहुंचने में सैनिकों को एक हफ्ते तक का समय लगता है. राज्य के दिबांग और लोहित जिलों से एलएसी तक पहुंचने के लिए सिर्फ दो सड़कें हैं. सेना का ज्यादातर फोकस ऊपरी दिबांग घाटी क्षेत्र के विकास पर है.

अरुणाचल की सीमा के पास लगातार बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा चीन, बना रहा सड़क और रेल मार्ग: सेना

भारत का यह रवैया चीन के विपरीत है, जिसने अपने सड़क नेटवर्क और एलएसी के साथ हेलीपैड जैसे अन्य सैन्य बुनियादी ढांचे को बढ़ाने पर काम किया है. एक अधिकारी ने कहा कि चीन के 1959 से तिब्बत में 1,20,000 किलोमीटर सड़क नेटवर्क का निर्माण करने का अनुमान है. बहरहाल सेना के अधिकारियों ने कहा कि इन पूर्वी जिलों के साथ लगी सीमा पर काफी हद तक शांति रही है. एक हॉटलाइन है और किसी भी उकसावे के अभाव में भारतीय और चीनी स्थानीय सैन्य कमांडरों के बीच केवल औपचारिक बैठकें हुई हैं.

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