मैं मोबाईल बोल रहा हूं

मैं मोबाइल बोल रहा हूं आज मैं बहुत परेशान हूं और आपलोगों को कुछ आप बीती बताना चाहता हूं। आज देश वैश्विक संकट कोरोना से जूझ रहा है। वहीं अपना देश लोकडाउन कर रखा गया है। सारे हिंदुस्तानी घर पर बैठे हए हैं मुझे पकड़कर। मुझे एक मिनट के लिए भी आराम नहीं दे रहें मैं भी वैसे ही सेवा कर रहा हूं जैसे किसी हॉस्पिटल में डॉक्टर भगवान का अवतार लेकर कर रहें हैं। मुझे भी थकावट महसूस होती है किंतु चैन नहीं। इंसान के कोरोना वायरस कहीं मेरे अंदर न आ जाये, यही डर सता रहा है।
आदमी को तो आशोलेट किया जा रहा है किन्तु मेरे आइसोलेशन का चीरहरण हो रहा है, खैर !अब कर ही क्या सकता हूं। मैं कोई आदमी तो हूं नहीं लेकिन फिर भी इस संकट की घड़ी में पूरी मानवता के साथ खड़ा हूं कंधा से कंधा मिलाकर, पल-पल की अपडेट दे रहा हूं।
ये सज्जन जो मोबाइल पर लिख रहें हैं अभी थोड़ी देर पहले बैठे हुए थे जब इन्हें थकान महसूस हुई तो लेटकर लिखने लगे किन्तु मोबाइल छोड़ने का नाम नहीं ले रहे हैं।
जब मैं नहीं था तो ये रोज कलम लेकर डायरी में लिखा करते थे। अब ये भी आलसी हो गए हैं डायरेक्ट मेरे ऊपर ही लिख रहे हैं कई फाइल बना रखीं हैं कहीं गूगल पर, कहीं नोटपैडकहीं वर्डपैड पर आदि -आदि, कितनी गिनाऊँ!
अब तक तो इन पर गुस्सा आ रहा था किन्तु आज इन पर प्रेम उमड़ रहा है कम से कम इन्होंने मेरी पीड़ा को समझा और लिख रहे हैं। आज कितने लोग हैं जो दूसरों की पीड़ा को समझते हैं और उनके लिये कुछ करते हैं।
अरे! मूल समस्याओं को बताना भूल ही गया हूं। मैं इंसान के इतने काम आ रहा हूं आजकल मेरे बिना इसका जीवन इनकम्प्लीट है ये वो भलीभांति जानता है। कोई भी फंक्शन मेरे बिना अधूरा है, माताओं के पास समय नहीं है उनके बच्चों को संगीत से रात की लोरी तक का कॉन्ट्रैक्ट मेरे सिर मढ़ा हुआ है।
इंसान एक बार अपनी वाइफ को भूल सकता लेकिन मेरे बिना नहीं रह सकता। मुझे अपनी लाइफ लाइन बोलता है। काश! इंसान इतनी मोहब्बत अपनी वाइफ से करते तो न जाने कितने परिवार उजड़ने से बच जाते।
खैर ये उनका पर्सनल मामला है मुझे फ़टे में टाँग अड़ाने से क्या फायदा? आज यही समस्या है- आदमी अपने दुख से दुखी नहीं है दूसरे के सुख से दुखी हैं।
लगता है मेरे अंदर भी इंसानों के लक्षण आ गए हैं। मैं किसी से भी ईर्ष्या नहीं करता हूं। जिसके हाथ में पहुँच जाता हूं उसी के आदेश का पालन करता हूं। जैसे भी चलाता है उसी प्रकार चलने को अपनी नियति मान लेता हूं, तभी खुश रह पाता हूं अन्यथा जीवन बोझ बन जायेगा। चलिए एक कष्ट और बताता हूं आपको आजकल लोग मुझे अपने टॉयलेट में भी साथ ले जाते हैं वहाँ भी नहीं छोड़ते हैं।
खुद तो हाथ साफ लेगा सेनेटाइज कर लेगा लेकिन मैं अकिंचन वैसा ही रह जाता हूं। हद तो तब हो जाती है खुद नहा धोकर पवित्र होकर पूजा घर में आता हैं किन्तु मुझे वैसे ही घसीट ले जाता है मेरी अपवित्रता को नजरंदाज कर देता है कि मैं भी अभी अभी उसी टॉयलेट से निकला हूं और आरती मुझसे ही करवाता है, यहीं सर्वाधिक दुखी होता हूं।
आखिर मेरा भी धर्म ईमान है सब भृष्ट कर दिया इस इंसान ने। भगवान से फिर भी इसके लिये दुआ करता हूं यह सुखी रहें हमें तो हर हाल में इसकी गुलामी करनी है रोकर करूँ या हँसकर। बिडम्बना देखिए लोग खुलेआम बातें करते हैं, प्रेमी जन छुपकर बातें करते हैं। प्रेमिकाओं की तो बात ही छोड़िए कोई देख न ले इसलिए वे ऐसी-ऐसी जगह छिपा लेती हैं मैं बता भी नहीं सकता, शर्म का काम करें वे और शर्मिंदा मुझे होना पड़ता है। हमारी रेपुटेशन खाक में मिल जाती है जिसकी कोई चिन्ता नहीं करता।
कभी कभी तो बैटरी डाउन हो जाये फिर भी नहीं छोड़ता चार्जिंग लगाकर लगा रहेगा मुझे आराम बिल्कुल नहीं मिलता मैं बहुत दुखी हूं इसलिए ये पीड़ा सुना रहा हूं।
कहते दीवालों के भी कान होते हैं लेकिन आज तो मीडिया, सोशल मीडिया का जमाना है हो सकता आपके पास भी मेरी पीडा पहुँच जाये तो आप भी पड़कर खुश हो लेना कुछ कर सको तो कर लेना। मुझे छुटकारा दिलाओ कैसे भी इस इंसान से। यह इंसान सोशल मीडिया पर तो दिनभर लगा रहेगा लेकिन आज मानवता कराह रही है उसके लिये सोशल नहीं है। पूरा देश वायरस की चपेट में है तब वह मेरे साथ रंगरेलियां मना रहा है घर में बैठकर। सरकार को कोस रहा है कि सरकार कुछ भी नहीं कर रही लेकिन खुद हाथ पर मोबाइल रखकर बैठा हुआ है। आज राष्ट्र जब गम्भीर संकट में तब इस इंसान से मेरी इतनी ही विनती है-
‘हे आर्यपुत्र उठो मेरा मोह त्यागो और राष्ट्र के निर्माण में कुछ योगदान सुनिश्चित करो’
मेरी तो यही अभिलाषा है कि मैं रहूं या न रहूं ये राष्ट्र रहना चाहिए।