अग्निपथ योजना का भर्ती योजना का नेपाल में भी विरोध

भारतीय सेना (protest in nepal) में जवानों की भर्ती को लेकर शुरू की गई नई भर्ती योजना का नेपाल में भी विरोध (protest in nepal) शुरू हो गया है। त्रिपक्षीय संधि में इस बात पर सहमति जरूर थी कि जो सुविधा और सेवा शर्तें भारतीय नागरिकों को सेना में मिलेंगी, वही नेपालियों को भी मिलनी चाहिए। अग्निपथ योजना में भी नेपालियों से कोई भेदभाव नहीं है।
ऐसे में यह कहना कि त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन है, यह बात बिल्कुल सही नहीं है। बहादुर गोरखा जवानों को तो आप जानते ही होंगे। खुखरी और तिरछी टोपी वाले। इस युद्ध में गोरखा सैनिकों की बहादुरी देखकर ब्रिटिश कमांडर सर डेविड ऑक्टरलोनी काफी प्रभावित हुए थे।
बाद में जब 1816 में अंग्रेजों और नेपाली राजशाही के बीच सुगौली की संधि हुआ तो ईस्ट इंडिया कंपनी में गोरखा रेजिमेंट बनाने का निर्णय हुआ। नेपाली नौजवान करीब 200 सालों से भारतीय सेना में हैं। लेकिन अग्निपथ योजना से नेपाल सरकार नाराज है। इसलिए भर्ती टल गई है।
नेपाल में सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर 4 साल के बाद इनका क्या होगा? भर्ती रैली के लिए लिए गोरखा रिक्रूटमेंट डिपो गोरखपुर और दार्जिलिंग ने नेपाल के बुटवल और धरान में भर्ती रैली की तारीख की घोषणा की थी। पर नेपाल सरकार की ओर से कोई जवाब ना मिलने के कारण रैली टालनी पड़ी है।
उसी वक्त से यह रेजिमेंट इंडियन आर्मी का हिस्सा है। अंग्रेजों से युद्ध के बाद 24 अप्रैल 1815 को गोरखा रेजिमेंट की नींव पड़ी। भारतीय सेना के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ जनरल सैम मानेकशॉ ने कहा था कि अगर कोई कहता है कि मुझे मौत से डर नहीं लगता, वह या तो झूठ बोल रहा है या गोरखा है।