उत्तराखंड

सिसकता लोकतंत्र, गुर्राते नेता, ढोल पीटती मीडिया

स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक!
चाल-चरित्र -चेहरा-विचारधारा -विकास-सेवा सभी हथकंडों को अपना लोकतंत्र बचाने के नाम पर बेमेल रिश्तों का गढ़बंधन और तलाक समय अनुसार देश बचाने के नाम पर किये जाते रहे है !राज्यसभा चुनाव इसका जीता जागता नया उदाहरण है ! बसपा और भाजपा के पास जीत के नंबर नहीं थे फिर भी दोनों दलों ने ताल ठोकी और उम्मीद के मुताबिक सत्ता जीती और लोकतंत्र धराशाही हुआ !
राज्यसभा में अति विशिष्ट लोगो को भेजा जाता रहा है !
ऐसी पद की लालसा से खरीद-फरोख्त -तोड़-फोड़ -अंतरात्मा-हृदयपरिवर्तन आम बात है नेताओ के हृदय परिवर्तन बिलकुल उस अबोध बालक तरह है जो बाजार में माँ-पिता से अलग-अलग चीजों की माँग करता है !
देश बचाने के नाम पर महबूबा का साथ हो य पानी-पी-पीकर कोसने वाले नीतीश बाबू की पलटी य चाहे पूर्वोत्तर में अलगाव वादियों से दोस्ती नरेश-जगदम्बिका पाल जैसे सैकड़ों नेताओ पाक करने की मुहिम ??
फ़िलहाल संविधान -लोकतंत्र के नाम पर साम-दाम-दंड-भेद राजनीति नेताओ के लिए उपयोगी है !
अगर संविधान-लोकतंत्र की चिंता होती तो किसी समाजसेवी-लेखक -बुद्धिजीवी को आम सहमति बना निर्दलीय राज्यसभा भेज एक अच्छा सन्देश देती !
अरे नहीं तो कोई हीरो-क्रिकेटर ही पकड़ लेते ? ये सब टेंसन बाजी और मजाक तो न बनता

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