उत्तर प्रदेश

2200 तोला सोने के झूले पर सवार होंगे बांके बिहारी

मथुरा । ब्रज (riding) में झूला उत्सव की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। द्वापर में भगवान कृष्ण राधा रानी के साथ सावन के महीने में झूला झूलते थे। हरियाली तीज के अवसर पर मंदिर भक्तों के लिए सुबह 7 बज कर 45 मिनट से 2 बजे तक और शाम को 5 बजे से 11 बजे तक खुलेगा।

इसी परंपरा को आज भी ब्रज के मंदिरों में निभाया जाता है। कहीं भगवान सोने के में,कहीं चांदी के में तो कहीं लता पताओं से बने झूला में विराजमान (riding) हो कर भक्तों को दर्शन देते हैं। यहां के अलग अलग प्राचीन मंदिरों में कभी सावन की शुरुआत से तो कहीं हरियाली तीज से तो कहीं 13 दिन तक झूला उत्सव चलता है।

द्वारिकाधीश और नंदगांव में जहां भगवान पूरे महीने झूला झूलते हैं वहीं बांके बिहारी में हरियाली तीज के दिन झूला में भगवान को विराजमान कराया जाता है। पूरे साल में सिर्फ एक बार बांके बिहारी झूले में विराजमान होकर भक्तों को हरियाली तीज के दिन दर्शन देते हैं।

31 जुलाई के दिन जिस झूले में भगवान बांके बिहारी जी विराजमान होंगे वह 1 लाख तोला चांदी और 2200 तोला सोने से बना हुआ है। बनारस के कारीगर छोटे लाल और ललन भाई ने 20 कारीगरों के साथ 5 वर्ष में इस झूले को बनाकर तैयार किया। उस वक्त इस झूले के निर्माण में करीब 25 लाख रुपए की लागत आई थी।

झूले का निर्माण महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के साथ शुरू हुआ और यह बनकर 1947 में तैयार हुआ। इसमें पहली बार भगवान बांके बिहारी 15 अगस्त 1947 को विराजमान हुए उस दिन हरियाली तीज का पर्व था।

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