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ईरान में हिजाब ( hijab )से मुक्ति का संघर्ष निदा रहमान

उन्होंने अपने दुपट्टों को बग़ावत का परचम बना लिया है. वो खुलकर एक देश के सर्व शक्तिशाली सरकार की आंख से आंख मिलाकर बात कर रही हैं और यही बगावत चुभ रही है पुरुषवादी, कट्टरपंथी इस्लामिक सरकार को. हम बात कर रहे हैं ईरान की बहादुर महिलाओं की जिन्होंने अपने हिजाब( hijab ) , स्कॉर्फ़ को सिरों से हटाकर उसका परचम बना लिया है. वो इसे अपनी आज़ादी का झंडा बना रही हैं. खुले बालों में वो हिजाब को हवा में लहरा रही हैं और यही आज़ादी खटक रही है ईरानी की कट्टरपंथी सरकार को.

ईरान में सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए हिजाब अनिवार्य है. जिसके खिलाफ़ ईरानी महिलाओं ने मोर्चा खोल लिया है. सोशल मीडिया में महिलाएं बिना हिजाब के वीडियो वायरल हो रहे हैं. वो अपनी आजादी के लिए सरकार को चुनौती दे रही हैं.

ईरानी में 1979 से महिलाओं के लिए हिजाब अनिवार्य है. वे बिना हिजाब के सार्वजनिक स्थानों पर नहीं निकल सकती हैं. ईरान के अधिकारियों ने 12 जुलाई मंगलवार को हिजाब एवं शुद्धता दिवस के रूप में घोषित किया गया था जिसका महिलाओं ने विरोध किया. वो हाथों में हिजाब लिए सड़कों पर, बाज़ारों में घूमती नज़र आईं. उन्हें इसका बहुत विरोध भी झेलना पड़ा है. लेकिन ये महिलाएं पीछे जाने को तैयार नहीं हैं.

इस आंदोलन का सबसे खास पहलू यह है कि हिजाब के विरोध में महिलाओं का साथ युवा पुरुष भी दे रहे हैं. ईरानी सरकार हिजाब के पालन के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. सेना को हिजाब से जुड़े नियमों का पालन कराने के लिए सख्त निर्देश दिए गए हैं. महिलाओं के विरोध प्रदर्शन को देख ईरानी सरकार ने टी.वी. पर एक वीडियो प्रसारित किया जिसमें हरे रंग का हिजाब और लंबे सफेद कपड़े पहने महिलाएं काफी खुश दिख रही थीं और कुरान की आयतें पढ़कर डांस कर रही थीं. लेकिन सोशल मीडिया पर इस वीडियो का खूब मजाक बनाया गया.

दरअसल, ईरानी महिलाओं को दिक्कत मर्दवादी सोच से है. वो कह रहीं हैं कि हमारे साथ जोर जबरदस्ती ना की जाए. हिजाब पहनना ना पहनना उनकी अपनी मर्ज़ी हो. महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाली एक्टिविस्ट मसीह अलीनेजाद लगातार हिजाब विरोध करने वाली लड़कियों के वीडियो ट्वीटर पर पोस्ट कर रही हैं. ट्वीट कर उन्होंने कहा, ‘हम अपने हिजाब हटा रहे हैं और मुझे उम्मीद है कि हर कोई हमसे जुड़ेगा. महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए मजबूर करना ईरानी संस्कृति का हिस्सा नहीं है. यह तालिबान, आईएसआईएस और इस्लामी स्टेट की संस्कृति है. अब बहुत हो गया है.’

यह पहला मौका नहीं है जब ईरान में महिलाओं ने अपने कपड़ों को लेकर इस तरह का विरोध प्रदर्शन किया हो, यहां की महिलाएं लगातार अपनी आवाज उठाती रही हैं. हिजाब और पर्दे को लेकर विवाद कोई नया नहीं है. भारत में भी इसी साल कर्नाटक में स्कूल कॉलेज में हिजाब को लेकर विवाद हुआ. लेकिन यहां लड़कियां हिजाब पहनने की बात कर रही थीं. हिंदूवादी संगठनों के विरोध के बाद कुछ स्कूल कॉलेजों में हिजाब बैन किया गया. मामला कोर्ट तक पहुंचा. यहां लड़कियां चाहती थीं कि उन्हें हिजाब पहनकर स्कूल कॉलेज में जाने दिया जाए. लेकिन उनके हिजाब पहनने पर पाबंदी लगा दी गई.

हैरानी की बात यह है कि महिलाओं के ड्रेस कोड के बारे में सारे फैसले मर्द करते हैं. ईरान में जबरन हिजाब पहनाना हो या कर्नाटक में जबरन हिजाब उतरवाना. दोनों ही मामलों में महिलाओं की मर्ज़ी का कोई ख़्याल नहीं किया जा रहा है. दोनों की जगह फ़ैसला मर्द कर रहे हैं. ईरान की महिलाएं कह रही हैं कि हमारे ड्रेस कोड का फैसला मर्द ना करें, उन्हें क्या पहनना है यह उन्हें तय करने दें. दरअसल, बगावत की शुरुआत ही दमन और ज़ुल्म से होती है. महिलाएं अपने ऊपर थोपे गए कानून के खिलाफ़ सड़कों पर उतरीं हैं. और इस बार उनकी तादाद कम नहीं है. हालांकि, ईरानी सरकार ने 11 जुलाई को ही कुछ लोगों की गिरफ़्तारी की लेकिन फिर ईरानी की सड़कों पर बिना हिजाब के महिलाएं निकलीं.

यहां मामला सिर्फ़ हिजाब का या ईरान का नहीं है बल्कि महिलाओं से जुड़े मुद्दे का है. सवाल यह खड़ा होता है कि क्या किसी भी धर्म की नींव इतनी कमज़ोर होती है कि वो महिलाओं के कपड़ों हिल जाए? धर्म का सारा दारोमदार महिलाओं के कंधे पर क्यों डाल दिया जाए? महिलाओं के सारे फ़ैसले मर्द क्यों करें. किस महिला को क्या पहनना है यह फ़ैसला उसका होना चाहिए ना कि सरकार का. सरकार का काम क्या सिर्फ़ महिलाओं के कपड़ें तय करना है?

हम जब पर्दे या हिजाब के खिलाफ़ लिखते हैं तो हमें ट्रोल किया जाता है, धमकी दी जाती हैं. कहा जाता है कि पर्दा नहीं करना है तो नंगी घूमो या बिकनी पहनकर घूमो. तो क्या महिलाओं के लिए सिर्फ़ दो ही रास्ते हैं कि या तो बिकनी पहने या पर्दा हिजाब या नकाब में रहें? नहीं बात यहां च्वाइस की हो रही है कि हमारे कपड़े पहनने का अधिकार हमारे पास होना चाहिए. ईरान हो या दुनिया कोई भी मुल्क महिलाओं को लेकर नज़रिए ज़्यादातर तंग ही नज़र आते हैं. हैरानी की बात तो यह है कि जब हम आगे बढ़ने की बात करते हैं ऐसे में महिलाओं को अपने कपड़ों के लिए एक तरह की जंग लड़नी पड़ रही है.

भारत में भी महिलाओं के ज़्यादातर फैसले मर्द लेते हैं. उन्हें क्या पहनना है क्या नहीं पहनना है, उन्हें क्या पढ़ना है क्या नहीं पढ़ना है, सब कुछ मर्द तय करते हैं. जबकि हमारा जोर महिलाओं की पढ़ाई लिखाई, उनके बेहतर भविष्य के लिए होना चाहिए् लेकिन पुरुषवादी सोच का नज़रिया इतना तंग है कि वो महिलाओं को उनकी मर्ज़ी के कपड़े तक नहीं पहनने देना चाहता है.

ईरानी की बहादुर महिलाएं जो आज बगावती नजर आ रही हैं वो अपनी विरासत में लड़की के लिए बेहतर कल छोड़कर जाएंगी. ये हौसलों से भरी हुई औरतें हैं, जो सरकार की आंख से आंख मिलाकर खड़ी हैं और कह रही है कि हम इंकार करते हैं तुम्हारे पुरुषवादी फैसले का. तुम चाहे कितना भी जोर लगा लो हमारी ज़िंदगी का फैसला हम खुद करेंगे. ये औरतें दुनिया की तमाम औरतों में हौसला और हिम्मत भर रही हैं. भले इन औरतों को आज विरोध का सामना करना पड़ रहा है लेकिन यही औरतें कल मिसाल बनेगीं. सलाम है हर उस हिम्मती औरत को जो अपने हक़ के लिए डटी हुई है. सलाम है हर उस लड़की को अपनी मर्ज़ी से कपड़े पहनने और और अपनी मर्ज़ी से जीने के लिए संघर्ष कर रही है.

निदा रहमान

 

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