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14 अगस्त को ‘अधिकार दिवस मनाएंगे प्रदेश भर के लाखों सरकारी कर्मचारी

लखनऊ। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर 14 अगस्त को उत्तर प्रदेश सहित देश भर के लाखों राज्य कर्मचारी ‘अधिकार दिवस मनाएंगे। इस दिन सभी कर्मचारी अपने-अपने कार्यालय पर शांतिपूर्ण ढंग से निजीकरण का विरोध करते हुए संविधान में मिले अधिकारों की मांग करेंगे। सरकारी क्षेत्र को मजबूत करने और एक सामान्य नागरिक की तरह सरकारी कर्मचारियों को भी राजनीतिक अधिकार प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री को ईमेल के माध्यम से ज्ञापन भेजा जाएगा। कर्मचारी अधिकार दिवस की तैयारियों को लेकर रविवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उप्र बैठक की। वीडियो कांफ्रेंसिंग में संगठन प्रमुख डॉ केके सचान, वरिष्ठ उपाध्यक्ष गिरीश चन्द्र मिश्र, उपाध्यक्ष सुनील यादव, धनन्जय तिवारी, प्रवक्ता अशोक कुमार, सचिव डॉ पीके सिंह, संयुक्त मंत्री आशीष पाण्डेय, वित्त मंत्री राजीव तिवारी, मीडिया प्रभारी सुनील कुमार आदि पदाधिकारी उपस्थित रहे। परिषद के महामंत्री अतुल मिश्रा ने बताया कि आज की बैठक में इंडियन पब्लिक सर्विस इंप्लाइज फेडरेशन (आईपीएसईएफ) के आह्वाहन पर 14 अगस्त को प्रस्तावित अधिकार दिवस मनाने की समीक्षा हुई। श्री मिश्रा ने कहा कि कर्मचारी पब्लिक हेल्थ, पब्लिक एजुकेशन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, पब्लिक कम्युनिकेशन सिस्टम, पब्लिक वाटर सप्लाई, इलेक्ट्रिक सप्लाई, पब्लिक फूड डिसटीब्यूशन सिस्टम जैसे बुनियादी मुद्दों को अधिकार मानते हैं। महंगाई पर लगाम लगाने की जगह कर्मचारियों के महंगाई भत्ते सहित अन्य सुविधाओं को रोकना हमारे अधिकारों के खिलाफ है। सरकार को महंगाई कम करनी चाहिए थी। जिसमें सरकार असफल रही है। श्री मिश्रा ने कहा कि आजादी के 73 साल बाद भी आज तक सरकारी कर्मचारी दूसरे दर्जे के नागरिक बने हुए हैं। सरकारी कर्मचारियों को ट्रेड यूनियन एवं राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया है। अंग्रेजों के समय की बनाई हुई नीतियां आज भी लागू है। आज के परिवेश में उसमे संशोधन की आवश्यकता है। सरकारी कर्मचारियों के काम न करने का बहाना बनाकर सरकार तमाम विभागों और सेवाओं का निजीकरण करने प्रयास कर रही है। जबकि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौर में भी देश भर में सरकारी कर्मचारियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने दायित्वों का निर्वहन किया है। इसके चलते कई कर्मचारियों को अपनी जान भी देनी पड़ी है। जबकि प्राइवेट सेक्टर को संकट की घड़ी में भी मुनाफे के सिवाय कुछ नजर नहीं आ रहा है। चिकित्सा सेवा, पुलिस विभाग, सचिवालय, रोडवेज, नगर निगम आदि सरकारी विभागों के कर्मचारी पूरे मनोयोग से जनता की सेवा में लगे हुए हैं। परिषद के अध्यक्ष सुरेश रावत ने कहा, वर्तमान परिवेश में कर्मचारी सरकार से काफी उम्मीद लगाए हुए है। लेकिन उन्हें सम्मानित करने की जगह सरकार उनका शोषण कर रही है। बिना किसी आंदोलन की घोषणा के एस्मा लगाकर यह साबित कर दिया कि उसके द्वारा किए जा रहे अन्याय से नाराज होकर कर्मचारी आंदोलित न हो जाएं।

परिषद के संगठन प्रमुख डॉ केके सचान ने कहा, आज इस वैश्विक महामारी में देश की सरकारी चिकित्सा व्यवस्था व इससे जुड़े सभी कर्मचारियों अपनी जान की परवाह किए बिना जनता की सेवा की है। इसी का परिणाम है कि भारत ने कोरोना महामारी पर अब तक प्रभावी नियंत्रण रखा हुआ है। अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भी तारीफ की है। इसलिए सरकार की जिम्मेदारी है कि कर्मचारियों की भावनाओं व उनकी समस्याओं को नजरअंदाज न करे। ताकि उनका मनोबल न गिरे।परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गिरीश ने कहा कि सरकार रोडवेज का भी निजीकरण करने का प्रयास कर रही है। जिसका गलत असर 60,000 अधिकारी कर्मचारी व उनके परिवार पर पड़ेगा। इससे जनता को भी कठिनाई होगी। सरकार यदि रोडवेज का निजीकरण करेगी तो परिषद किसी भी दशा में यह बर्दाश्त नहीं करेगा। बैठक में संगठन के प्रमुख उपाध्यक्ष सुनील यादव ने कहा, कर्मचारियों को पूर्व में प्राप्त सुविधाएं भी वर्तमान में गायब होती जा रही हैं। सरकार ने औषधियों के स्थानीय क्रय पर रोक लगाते हुए कहा कि जिनको चिकित्सा प्रतिपूर्ति मिलती है उनके लिए औषधियों की लोकल परचेज नहीं की जाएंगी। जिससे अब सरकारी कर्मियों की लोकल परचेज बन्द हो गई है। वहीं दूसरी तरफ प्रतिपूर्ति के नियमों में बदलाव कर दिया गया है। अनुदान ग्रुपिंग में बदलाव करने के कारण बजट के अभाव में कर्मचारियों व उनके परिवारों के चिकित्सा व्यय का भुगतान नहीं हो पा रहा है।

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