Anek Review : तमाम मुद्दों में भटकी कहानी है अनेक

Anek Review : बीते दिनों रिलीज फिल्म द कश्मीर फाइल्स में पिछली सदी के नौवें दशक में कश्मीरी पंडितों के पलायन की दुर्दांत घटना को दर्शाया गया था। देश के पूर्वोत्तर राज्यों की खबरें अक्सर सुर्खियों में छायी रहती हैं। भारतीय संविधान के तहत देश के पूर्वोत्तर राज्यों को अनुच्छेद 371 के तहत विशेष अधिकार दिए गए हैं। इन राज्यों में नगालैंड, असम, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश को विशेष दर्जा उनकी जनजातीय संस्कृति को संरक्षण प्रदान करता है। अनुभव सिन्हा ने पूर्वोत्तर में व्याप्त उग्रवाद, हिंसा, अनुच्छेद 371, देश के बाकी राज्यों की उनके प्रति सोच को लेकर अनेक की कहानी गढ़ी है। हालांकि तमाम मुद्दे को उठाने के फेर में वह उसके साथ न्याय नहीं कर पाए हैं।
पिछले दस वर्षों में कई गोपनीय मिशन पर काम कर चुके सीक्रेट एजेंट अमन (आयुष्मान खुराना) को देश के पूर्वोत्तर यानी वेस्ट बंगाल के पूर्वी साइड वाले इंडिया में बागी नेता टाइगर सांगा (लाइटोंगबम डोरेंद्रा सिंह) और भारत सरकार के बीच शांति समझौता कराने में मदद कराने के मकसद से भेजा गया है। (हालांकि जगह का नाम स्पष्ट नहीं है )। वह नई पहचान जोशुआ के साथ रह रहा है। इस मिशन पर उसे कठोर नौकरशाह और कश्मीरी मुसलमान अबरार (मनोज पाहवा) ने भेजा है। टाइगर सांगा पिछले करीब छह दशक से भारत के खिलाफ लड़ रहा है। उसे नार्थ ईस्ट के बड़े हिस्से को देश से अलग करके अपना एक नया देश बनाना है।
टाइगर सांगा की अपनी सेना है। उसका साम्राज्य पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में फैला हुआ है। टाइगर सांगा की आर्मी पिछले साठ सालों में भारतीय सेना से नहीं हारी हैं। केंद्र और राज्य में सरकार होने के बावजूद टाइगर सांगा के साथ शांति वार्ता करना सरकारी की मजबूरी है। वहीं इस मिशन में मदद के लिए अमन देश के लिए बॉक्सिंग का प्रतिनिधित्व करने को प्रयासरत आइडो (एंड्रिया केवीचुसा) के साथ प्रेम होने का ढोंग करता है। चयन के लिए आइडो को नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। उसके पिता भारत विरोधी हैं। क्या यह शांति समझौता हो पाएगा? कहानी के केंद्र में यही मुद्दा है।
फिल्म देखते हुए लगता है कि आप डाक्यू ड्रामा देख रहे हैं लेकिन यह आपको शिक्षित नहीं करता है जितना वृत्तचित्र करता है। हिंसाग्रस्त राज्य की पृष्ठभूमि में यह काल्पनिक कहानी तमाम वास्तविक मुद्दों को पिरोने के बावजूद प्रभावित नहीं कर पाती है। फिल्म बुनियादी बातों से परे इस क्षेत्र के बारे में कुछ और नहीं बताती है। मसलन यह राजनीतिक रूप से अस्थिर राज्य है, शेष भारत ने इसे दरकिनार कर रखा है और देश के बाकी हिस्से के लोगों का उनके प्रति अलग नजरिया है। फिल्म में वहां की जातीय विविधता और आंतरिक लड़ाइयों के अन्य जटिल कारणों पर चर्चा नहीं की गई है।
फिल्म को प्रमाणिक बनाने के लिए पूर्वोत्तर के कलाकारों की कास्टिंग से लेकर स्थानीय जगहों पर शूटिंग और संघर्ष की गंभीरता को चित्रित करने में अनुभव खरे उतरते हैं लेकिन वह उसे एक सम्मोहक कहानी में बुन पाने में विफल रहे हैं। कई मुद्दों को संवादों से बताने का प्रयास हुआ है। अनुच्छेद 371 का जिक्र है पर उसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। फिल्म का क्लाइमेक्स भी बचकाना है। हालांकि पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों साथ होने वाले नस्लीय दुर्व्यवहार को संजीदगी से दर्शाया गया है। यह सवाल उठाया गया है कि वे भी हमारे ही देश का हिस्सा हैं फिर उनके साथ ऐसा बर्ताव क्यों ?
फिल्म का दारोमदार आयुष्मान खुराना के कंधों पर है। उन्होंने स्क्रिप्ट के दायरे में अपने किरदार साथ न्याय किया है। फिल्म से एंड्रिया ने बॉलीवुड में कदम रखा है। देश के प्रति उनका जज्बा स्क्रीन पर देखना सुखद लगता है। हालांकि उनके और पिता के किरदार पर अधिक काम करने की जरूरत थी। अमन के साथ आइडो की प्रेम कहानी में प्रेम कभी भी नजर नहीं आता है। संवाद से पता चलता है कि उनके बीच प्रेम है। सरकारी तंत्र को भी जिस प्रकार से दिखाया गया है वह भी अपच है। अबरार को कश्मीर से जोड़ने का मकसद स्पष्ट नहीं हो पाया है।
पर अबरार की भूमिका में मनोज पाहवा का अभिनय सराहनीय है। अध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता और विद्रोही की भूमिका में मिपहम ओटसल (Mipham Otsal) प्रभावित करते हैं। सुशील पांडेय का किरदार भी अधूरा है। पूर्वोत्तर की नैसर्गिक खूबसूरती को इवान मुलिगन ने बहुत खूबसूरती से कैमरे में कैद किया है। बैकग्राउंड संगीत में स्थानीय लोकसंगीत है वह कर्णप्रिय है। ‘अनेक’ को बनाने के पीछे नीयत अच्छी है, लेकिन पर्दे पर वह पूरी तरह साकार नहीं हो पाई है।
फिल्म रिव्यू : अनेक
प्रमुख कलाकार : आयुष्मान खुराना, एंड्रिया केवीचुसा, सुशील पांडेय, मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा
निर्देशक : अनुभव सिन्हा
अवधि : 147 मिनट