main slideदिल्लीप्रमुख ख़बरेंबडी खबरेंराज्यराष्ट्रीय

Sedition Law : राजद्रोह कानून को लेकर अब 10 मई को होगी सुनवाई?

नई दिल्ली। Sedition Law : राजद्रोह कानून को लेकर अब 10 मई को होगी सुनवाई? भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 124ए के तहत राजद्रोह पर दंड के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि राजद्रोह कानून खत्म करने की नहीं इस पर दिशा-निर्देशों की जरूरत है। अटार्नी जनरल ने कहा, कानून के तहत क्या अनुमति है, क्या अस्वीकार्य है और क्या राजद्रोह के तहत आ सकता है, यह देखने की जरूरत है।

Sedition Law : केंद्र सरकार ने कहा- गाइडलाइन जरूरी

वहीं, सालिसिटर जनरल ने कहा कि देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहिए। उन्होंने कहा कि राजद्रोह कानून पर मसौदा प्रतिक्रिया वकीलों द्वारा तैयार की गई है। उन्होंने सरकार को अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति देने के लिए अदालत से सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया। केंद्र सरकार की अर्जी पर अब 10 मई को इस मामले में फिर सुनवाई होगी।

Accident : एक ही गांव के चार लोगों की मौत, जाने पूरी खबर

बता दें कि देश की शीर्ष अदालत ने 27 अप्रैल को हुई अंतिम सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए आज यानी 5 मई की तारीख तय की थी। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने तब कहा था कि इस मामले में और स्थगन नहीं दिया जाएगा। अदालत ने कहा था कि स्थगन के किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं करेगी। इस मामले में केंद्र ने अदालत में हलफनामा दायर किया है।

Sedition Law : केंद्र सरकार की अर्जी पर अब 10 मई को इस मामले में फिर सुनवाई होगी

केंद्र सरकार ने कहा कि इसका मसौदा तैयार है और वह सक्षम प्राधिकारी से पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा है। राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रविधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही जिसे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया गया। अदालत ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता कानून का दुरुपयोग है जिसके कारण मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

Negligence : प्रसव के तीन घंटे बाद जच्चा की मौत, जाने पूरा मामला

बीते साल जुलाई में एक सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा था, यह एक औपनिवेशिक कानून है। यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था। इसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक को चुप कराने के लिए किया था। क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है? बता दें कि याचिकाकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, मणिपुर से पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ से कन्हैया लाल शुक्ला शामिल हैं।

Show More

यह भी जरुर पढ़ें !

Back to top button