क्या वास्तव में प्रकृति का सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य है

स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक
यह विचार रह रह कर मष्तिक में कौंध रहा था चाँद पर प्लाट खरीदनें की कवायद शुरू करने वाला ,मौसम की भविष्यवाणी करने वाला, व धार्मिकता को रूढ़िवादी बताने वाला अपनी नन्ही सी जान पर अभिमान करने वाला मानव ईश्वर की सत्ता को भूलकर खुद ईश्वर बनने का सपना संजो बैठा था आकाश, पानी व जमीन पर आधुनिक यंत्रों को दौड़ाने वाले मनुष्य ने ईश्वर की सत्ता को सिरे से नकारने में कोई कसर नहीं छोड़ी नई नई सोध कर हर बीमारियों का इलाज बखूबी करने में महारत हांसिल करने वाले मनुष्य ने गरीब असहाय लोगों की मौत के बाद उनका शव भी तब दिया जब ईलाज के पैसे पेमेंट कर दिये गये जानवरों की तरह अपने व अपने परिवार के ऐसो आराम के लिए करोड़ो रूपये कमाने के लालच में मानवता को भूल गया मनुष्यता को ललकार दिया खाद्द सामग्रियों में मिलावट दवाओं में मिलावटी जहर दूध में आटे में मिलावट पर भी जब पेट नहीं भर पाया तो सब्जी मे केमिकल मिलाना शुरू कर दिया व सत्ता के लालच में बेगुनाह लोगों का खून इंसाफ का कत्ल करने वालें दरिंदो ने राष्ट्र के विकास के नाम पर खुद का विकास करने की मुहिम चला दी धीमें धीमें सरकारी मशीनरी भी भृष्टाचार से अछूती नहीं रह सकी परिणाम स्वरूप धनवान लोगों की ऱखैल बनकर रहने वाले कानून का दम घुटने लगा क्यों काले कारनामों को उजागर करने वाले सच के पहरेदारों पर शिकंजा कसने की कवायद शुरू कर दी गई शायद विधाता को नागवार गुजरा मानव की वास्तविकता से रूबरू कराने हेतु प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने केे लिए ऐक महामारी का विराट स्वरूप कोहराम मचाने लगा अपने को सर्व श्रेष्ठ मानने वाले मानव की सारी बुध्दिमानी पर तुषारापात हो गया सारा विश्व हाहाकार करने लगा सम्पूर्ण दुनियां पर शासन करने की सोच रखने वाले देश मदद की भीख मांगने लगे यह वे आवाज लाठी का चमत्कार है साहब ऐक चींटी का भी उतना ही महत्व है उस परमात्मा के सामने जितनी हांथी का चंद पैसों व औदों पर अभिमान करने वालों को ऐक नई सीख बनकर प्रकृति ने यह खेल प्रारम्भ किया ! पशु केवल स्वयम के लिए जीवित रहता है परन्तु इंसान भी सिर्फ स्वयम के लिए जीने लगा इतना ही नहीं वल्कि दूसरों का नुकसान करना हत्या करना आदि वह भी अपने स्वार्थ के लिए यह सब मनुष्य ने करने का स्वभाव बना लिया तो फिर ईश्वर तो ऐक बार अवस्य अपने सिध्दांतो के अनुरूप सिखायेगा कि कैसे जीवन जीने की वास्तविकता क्या है! (यह मेरा विचार है वह भी इस तरह कि, उर प्रेरक रघुवंश विभूषण, अर्थात विचारों की अभिव्यक्ति या प्रेरणा ईश्वर देता है मैं भी विचार प्रकट कर रहा हूँ प्रभु की प्रेरणा से)