‘यूक्रेन युद्ध ने बदले हालात, भारत-(India-) चीन का साथ जरूरी’

नई दिल्लीः दिल्ली दौरे पर आए चीन के विदेश मंत्री वांग यी से भारत (India-) ने साफ शब्दों में कह दिया है कि अगर वह आपसी रिश्तों को सामान्य बनाना चाहता है तो उसे पहले लद्दाख सीमा से अपनी फौजों को वापस बुलाना होगा. ये बात भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीनी समकक्ष के साथ तीन घंटे तक चली बातचीत के बाद कही. जयशंकर से पहले चीनी विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाकात की. इस दौरान भी सीमा के हालात और रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा ही प्रमुख रहा. भारत भले ही चीन से बिगड़े रिश्तों को पटरी पर लाने के लिए सीमा पर पहले जैसी स्थिति बहाल करने पर जोर दे रहा है, लेकिन चीन के एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं. यूक्रेन युद्ध के बाद जिस तरह के हालात बने हैं, उनसे निपटने के लिए भारत और चीन को मिलकर काम करना होगा और सकारात्मक रूप से आगे बढ़ने के लिए भारत को अपने रुख में बदलाव लाना होगा.
‘दूसरे पहलुओं पर भी ध्यान दे भारत’
2020 में लद्दाख में सैन्य टकराव के बाद से भारत और चीन के रिश्ते निचले स्तर पर हैं. दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों की कई दौर की बातचीत में लद्दाख में तीन जगहों से सेना हटाने पर सहमति बनी है, लेकिन अभी भी कई इलाकों मे चीनी सेना कब्जा किए बैठी है. भारत ने साफ कह दिया है कि रिश्तों को पटरी पर लाने के लिए सेना का हटना जरूरी है. सीमा पर तनाव घटाने के लिए भारत कुछ चीजों पर ज्यादा ही जोर दे रहा है. इस दौरान वह द्विपक्षीय संबंधों के दूसरे पहलुओं को नजरअंदाज कर रहा है. शंघाई इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनैशनल स्टडीज में दक्षिण एशिया और चीन मामलों के विशेषज्ञ लियू ज़ोंग्यी कहते हैं कि आपसी रिश्तों में सीमा सिर्फ एक पहलू है, द्विपक्षीय संबंधों को आगे ले जाने के लिए इसे पूर्वशर्त बनाकर मोलभाव नहीं किया जाना चाहिए.
‘चीन को अपना दुश्मन न माने भारत’
लियू ने आगे कहा कि चीन भारत को विकास में एक पार्टनर की तरह देखता है. भारत को भी उसे अपना सबसे बड़ा दुश्मन और प्रतिद्वंदी मानना बंद कर देना चाहिए. अगर भारत ऐसा नहीं करेगा तो दोनों देशों के रिश्ते नहीं सुधरेंगे. शंघाई की फूदान यूनिवर्सिटी में इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनैशनल स्टडीज के लिन मिनवांग का भी ऐसा ही मानना है. वह कहते हैं कि गलवान में खूनी झड़प के बाद चीन ने पुरानी बातों को भूलकर नई शुरुआत करने की इच्छा दिखाई थी, लेकिन भारत ने ऐसा नहीं होने दिया. भारत को स्वीकार करना होगा कि चीन उसका पड़ोसी है और इसमें कोई बदलाव नहीं होने वाला है. कुछ समस्याएं तो रहेंगी ही, लेकिन उसे दोनों के बीच अन्य क्षेत्रों में होने वाले सहयोग को भी देखना चाहिए. खासकर ऐसे मौके पर, जब दुनिया बदलाव के बड़े मोड़ पर खड़ी है.
‘यूक्रेन युद्ध ने बदले हालात, भारत-चीन का साथ जरूरी’
पेइचिंग स्थित सेंटर फॉर चाइना एंड ग्लोबलाइजेशन के प्रमुख वांग हुइयाओ एचटी से बातचीत में कहते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के समय चीनी विदेश मंत्री की भारत यात्रा की अहमियत और भी बढ़ जाती है. यूक्रेन संकट ने विश्व और वैश्विक संस्थाओं की स्थिति बदल दी है. भारत और चीन का इस संकट पर एकजैसा नजरिया है. ऐसे में दोनों पर ही पश्चिमी देशों से बेतहाशा दवाब है. इस स्थिति से कैसे निपटा जाए, वांग यी की यात्रा का एक मकसद ये भी रहा है.
वांग ने कहा कि बदले हालात में BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साउथ अफ्रीका के संगठन) पर भी दवाब काफी है. इसका संस्थापक सदस्य होने के नाते भारत और चीन की ये जिम्मेदारी है कि वो इस मंच को एकजुट रखें, साथ ही उभरती अर्थव्यवस्थाओं के फायदे के लिए काम करें. शंघाई म्यूनिसपल सेंटर फॉर इंटरनैशनल स्टडीज में साउथ एशिया मामलों के एक्सपर्ट वांग देहुआ उम्मीद जताते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी इस साल चीन में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होकर रिश्तों में सकारात्मक बदलाव की तरफ कदम बढ़ा सकते हैं.