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रूस का ‘टी-90’ टैंक, जाने इस के बारे में…

नई दिल्ली। रूस का ‘टी-90’ टैंक, जाने इस के बारे में… रूस-यूक्रेन जंग में भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति का पालन किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में जब रूस के विरोध में प्रस्ताव लाया गया, तो भारत ने उसमें हिस्सा नहीं लिया। खुद को इस प्रस्ताव से अलग रखने वालों में भारत के अलावा चीन और यूएई भी शामिल रहे। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और रूस के बीच दशकों से दोस्तीनुमा संबंध रहे हैं। भारत के पास मौजूद ‘टी-90’ टैंक, जिसे ‘भीष्म’ का नाम दिया गया है, अन्य बातों के अलावा वह भी दोनों देशों के बीच श्दोस्तीश् का एक अहम केंद्र बिंदु है।

ये वही टैंक है, जिसे भारत ने चीन से लगते देपसांग इलाके में तैनात किया है।

भले ही आज ये टैंक तमिलनाडु के अवाडी स्थित हैवी व्हीकल फैक्ट्री में बन रहे हैं, लेकिन इसके निचले हिस्से हल समेत करीब 70 पार्ट ऐसे हैं, जो रूस से आयात किए जाते हैं। हालांकि बुधवार को रूस के राजनयिक ने कहा, यूक्रेन के मामले में भारत ने जो निष्पक्ष स्थिति अपनाई है, उसके लिए इस बात को आधार न बनाया जाए कि भारत कुछ हथियारों को लेकर रूस पर निर्भर है। आज ये टैंक भारत में बन रहा है, लेकिन इसके कई अहम तकनीकी उपकरण रूस से ही मंगाए जाते हैं।

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अगर रूस से वे उपकरण न मिलें, तो ये टैंक अपनी जिस मारक क्षमता के लिए जाना जाता है, उससे बहुत पीछे छूट जाएगा। एक टैंक की कीमत लगभग 25 करोड़ रुपये है। टैंक के अधिकांश पार्ट, जिसमें हल (निचला हिस्सा) भी शामिल है, उसे रूस से आयात किया जाता है। इसके साथ ही टी-90 अन्य 70 पार्ट भी रूस से आते हैं। ये अलग बात है कि भारतीय सेना ने अपने हिसाब से इस टैंक की बनावट में छोटे मोटे बदलाव किए हैं, लेकिन मूल ढांचा रूस वाला है। टैंक की हथियार प्रणाली को लेकर फ्रांस की मदद ली गई है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों देशों के बीच मधुर संबंधों के लिए अन्य हथियारों, उपकरणों में भीष्म का बड़ा रोल है।

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अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ के महासचिव सी. श्रीकुमार कहते हैं, इस टैंक की दुनिया में चर्चा होती है। भीष्म को ज्-72 टैंक का अपग्रेड वर्जन कहा जा सकता है। इसकी मारक क्षमता अचूक है। अगर भारत, यूक्रेन की लड़ाई में रूस के खिलाफ मैदान में उतरता तो कई सुरक्षा समझौतों पर असर पड़ सकता था। जंग के तीन चार दिन बाद ही यह चर्चा जोर पकड़ने लगी कि क्या भारत इसलिए यूक्रेन का साथ नहीं दे रहा है, क्योंकि रूस के साथ उसके सामरिक हित जुड़े हैं। रक्षा तकनीक से जुड़े कई अहम उपकरणों के मामले में भारत, रूस पर निर्भर है।

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सी. श्रीकुमार कहते हैं, अगर भारत सरकार रक्षा उद्योग को सार्वजनिक उपक्रमों के दायरे से बाहर नहीं निकालती है, तो आने वाले समय में टैंक सहित अन्य उपकरणों को स्वदेश में ही निर्मित किया जा सकता है। हालांकि केंद्र सरकार ने भारतीय आयुध निर्माणियों को कंपनियों में तब्दील कर दिया है। बतौर श्रीकुमार, यह एक गलत कदम है। इससे रक्षा उद्योग पर विपरित असर पड़ेगा। भारत और रूस के बीच गत वर्ष ।ज्ञ-203 राइफलों के लिए 5,100 करोड़ रुपये की डिफेंस डील हुई है। इन राइफलों का निर्माण उत्तर प्रदेश के अमेठी में होगा। यहां पर पांच लाख से अधिक राइफलें तैयार की जाएंगी। रूस और भारत के बीच सैन्य तकनीक के सहयोग को लेकर 2021 से 2031 तक समझौता हुआ है।

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