रोमेनिया बॉर्डर पर इकट्ठा हुए फंसे छात्र !!

सबसे खराब स्थिति में यूक्रेन में फंसे वो छात्र हैं जो रोमेनिया बॉर्डर पर इकट्ठा हुए हैं। घर कब जा पाएंगे यह पता नहीं है और बॉर्डर पर न रात गुजारने की कोई व्यवस्था है, न खाने-पीने का कोई इंतजाम है। सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि बॉर्डर के आसपास के जो रेस्टोरेंट हैं, उन्होंने अपने यहां ‘नो इंडियंस अलाउड’ का बोर्ड लगा रखा है।
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झांसी के रहने वाले डॉ. एसएस सिंह, जो कि इस समय महोबा के एक राजकीय महाविद्यालय में प्राचार्य हैं, उनका बेटा अखिल यूक्रेन में मेडिकल का छात्र है। हजारों अन्य बच्चों की तरह वह भी रोमेनिया बॉर्डर पर फंसा हुआ है। अखिल ने बातचीत में बताया कि उनका लगभग डेढ़ सौ छात्रों का एक ग्रुप बस से रात भर का सफर तय करके रोमेनिया पहुंचा। बॉर्डर तक का लगभग 10 किमी का सफर इन लोगों ने पैदल तय किया। यहां सुबह सात बजे बॉर्डर खुला तो केवल 60-70 बच्चे अंदर किए गए और फिर से बॉर्डर बंद हो गया।
माइनस तापमान में कैसे हो गुजारा
रोमेनिया में दिन तापमान 2-3 डिग्री है और रात में यह माइनस में पहुंच जा रहा है। ऐसे में बॉर्डर के आसपास न तो टेंट आदि की कोई व्यवस्था है न कोई शेल्टर होम जहां बच्चे रात गुजार सकें। ठिठुरती रात में खुले आसमान के नीचे रहने के अलावा इनके पास कोई विकल्प नहीं है। इसके अलावा अखिल ने बताया कि खाने के लिए बिस्किट या थोड़े-बहुत पैक्ड फूड का इंतजाम तो इन लोगों के पास है लेकिन खाने की कोई व्यवस्था नहीं है। सबसे खराब बात तो यह है कि अगर कोई भारतीय वहां रेस्टोरेंट में जाकर खाना चाहे तो उसका स्वागत ‘नो इंडियंस अलाउड’ के साइनबोर्ड से हो रहा है।
बताया गया कि शाम को चार-पांच बजे दोबारा खुलेगा। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि कोई रोस्टर या शेड्यूल तय नहीं है कि कब कितने बच्चे बॉर्डर से पार किए जाएंगे। अब भी लगभग छह हजार बच्चे फंसे हुए हैं। अखिल ने बताया कि खाने के लिए बिस्किट या थोड़े-बहुत पैक्ड फूड का इंतजाम तो इन लोगों के पास है लेकिन खाने की कोई व्यवस्था नहीं है। सबसे खराब बात तो यह है कि अगर कोई भारतीय वहां रेस्टोरेंट में जाकर खाना चाहे तो उसका स्वागत ‘नो इंडियंस अलाउड’ के साइनबोर्ड से हो रहा है।