लखनऊ
कोरोना और महंगाई का रोना रोते दिखें पटरी दुकानदार
लखनऊ । नोटबंदी से लेकर कोरोना लाॅकडाउन,बढ़ती महंगाई और अब ओमिक्राॅन के आने के बाद छोटे और पटरी दुकानदारों की बिक्री पर क्या फर्क पड़ा है ? इन्हीं सब बातों को जानने के लिए आज राजधानी में तरूणमित्र संवाददाता ने कुछ पटरी दुकानदारों से बात करके जाना कि कितना असर पड़ा है उनके व्यापार और जीवनयापन पर। कैसरबाग स्थित सफेद बरादरी के पास सड़क किनारे परचून दुकान लगाने वाले निसार अहमद ने बताया कि वह 24 सालों यहां दुकान लगा रहे है। पहले तो नोटबंदी ने हम जैसे छोटे दुकानदारों को बर्बाद कर दिया और उसके बाद कोरोना में लगे लाॅकडाउन ने तो खाने-पीने तक का मोहताज कर दिया।
आज हालात ऐसे है कि बच्चों की स्कूल फीस भरने का पैसा तो छोड़ दो रोजी-रोटी के भी लाले पड़े है। यहियागंज और फूलबाग से समान लाते है कोरोना के बाद से 50 प्रतिशत से ज्यादा का फर्क बिक्री पर पड़ा है। रोज का कमाना खाना है बिजली का बिल,हाउस टैक्स देने के साथ ही तमाम घरेलू खर्चे हैं। निसार ने कहा कि मेरे 3 बच्चे हैं दिनों प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं।कोरोना लाॅकडाउन के बाद हमने बच्चों की स्कूल फीस किस तरह जमा की ये हम ही जानते है।महंगाई दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और अब तो बिना कोरोना वैक्सीन के फ्री राशन भी नहीं मिल रहा है। वही बेगम हज़रत महल पार्क के सामने सड़क किनारे ही चाय का ठेला लगायें आरिफ अली कहते है कि कोरोना लाॅकडाउन के बाद से हालात बहुत खराब हो गये खासकर छोटे व पटरी दुकानदारों की बिक्री पर बहुत बड़ा फर्क पड़ने से 70 प्रतिशत बिक्री खत्म हो गयी है। आरिफ ने कहा कि यहां पर राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह दो साल से बंद है जिससे बहुत फर्क पड़ा हमारी दुकानदारी पर यहां संगीत सीखने आने वाले लड़के-लड़कियां और बली हाल में प्रोग्राम देखने आने वाले लोग चाय पीते थे हर वक्त मेरे ठेले पर भीड़ रहती थी अब वो भी बंद हो गई अब लोग यहां आते ही नहीं हैं। वही इसी के पास पकौड़ी का ठेला लगायें जागेश्वर लाल कश्यप ने बताया कि अब लोग जैसे बाहर का खाना-पीना छोड़ते दिख रहे हैं पहले काफी अच्छी बिक्री होती थी। बढ़ती महंगाई से लोग काफी परेशान हैं जिसका असर हम पटरी दुकानदारों पर काफी पड़ा है,अब बस नाममात्र की बिक्री बची है।जबकि ठंड के मौसम में लोग चाय पकौड़ी बड़े शौक से खाते पीते थे पर अब कहीं न कहीं लोग महंगाई की वजह से बाहर खाने पीने में गुरेज़ कर रहे हैं।