प्लास्टिक कचरे के ‘कैंसर’ को गले लगाएगा ये उद्योग
प्लास्टिक कचरा पूरी दुनिया के पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या बन चुका है। लेकिन इससे निपटने के तरीके भी तेजी से सामने आ रहे हैं। प्लास्टिक कचरे से डीजल बनाने, इसका सड़क बनाने में इस्तेमाल करने से लेकर गलनीय पदार्थों के द्वारा पानी की बोतलें बनाने तक के विकल्प सामने आ चुके हैं। इसी कड़ी में, प्लास्टिक कचरे को सीमेंट कंपनियों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने का विकल्प भी सामने आया है। दावा है कि इस विधि से प्लास्टिक कचरे से निपटने में बड़ी मदद मिलेगी। सीमेंट इंडस्ट्री में ईंधन की भारी जरूरत को देखते हुए यह इसका स्थाई समाधान भी हो सकता है।
प्लास्टिक दहन में गैसों का उत्सर्जन भी नहीं
प्लास्टिक कचरे के समाधान में सबसे बड़ी समस्या इसके दहन के दौरान पैदा होने वाली जहरीली गैसें होती हैं। प्लास्टिक कचरे के दहन के दौरान कार्बन मोनो ऑक्साइड, अमोनिया और ओजोन परत के लिए नुकसानदेह क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैसें प्रमुखता से पैदा होती हैं। लेकिन सीमेंट इंडस्ट्री में प्लास्टिक के दहन में इन गैसों का उत्सर्जन भी नहीं होता है।
इसका प्रमुख कारण है कि सीमेंट बनाने के दौरान भट्टी का तापमान 1450 डिग्री से ऊपर रखा जाता है। इस उच्च तापमान में इन गैसों का भी दहन हो जाता है और वे अतिरिक्त तापमान पैदा करने लगती हैं। इस प्रकार एक तरफ हानिकारक गैसों का उत्पादन नहीं होता है, दूसरी तरफ प्लास्टिक कचरे से मुक्ति भी मिल जाती है।
कहां है समस्या
सीमेंट उत्पादक कंपनियों के संगठन सीएमए के शीर्ष अधिकारी महेंद्र सिंह ने अमर उजाला को बताया कि अगर सरकार प्लास्टिक कचरे को कंपनियों तक पहुंचाने का रास्ता तैयार कर देती है तो प्लास्टिक से निपटना बड़ी चुनौती नहीं रह जाएगी। अभी प्लास्टिक कचरे के साथ समस्या इसके एकत्रीकरण, अन्य कचरों के बीच प्लास्टिक कचरे की छंटनी और इंडस्ट्री तक इसे पहुंचाने को लेकर है।
बता दें कि दिल्ली के गाजीपुर में पड़े कचरे के पहाड़ के निस्तारण की योजना बन चुकी थी। राष्ट्रीय राजमार्ग 24 को बनाने के दौरान इसे सड़क बनाने में इस्तेमाल किए जाने की योजना बनाई जा चुकी थी।
सड़क राजमार्ग एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में बताया था कि कुल ठोस कचरे के बीच प्लास्टिक कचरे की छंटनी पर बात नहीं बन पाई और इस योजना पर अमल नहीं हो सका। यही वजह है कि प्लास्टिक कचरे से निबटने के तरीके में इसकी छंटनी एक बड़ा विषय है जिससे सरकार को निबटना होगा।
बड़ा है भारत का सीमेंट उद्योग
भारत पूरी दुनिया में सीमेंट उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। साल 2018 तक यह प्रति वर्ष 50.2 करोड़ टन सीमेंट का उत्पादन करता था। साल 2020 तक इसके 55 करोड़ टन तक पहुंचने का अनुमान है। यहां बीस बड़ी निजी कंपनियों के साथ लगभग सौ कंपनियां सीमेंट उत्पादन करती हैं जो कुल मिलाकर लगभग 98 फीसदी उत्पादन करती हैं। शेष दो फीसदी पब्लिक सेक्टर से आता है।
भारत में सीमेंट की मांग ज्यादा होने के कारण इसका आयात भी होता है। सीमेंट के इस विशाल सेक्टर में ईंधन का भारी मात्रा में उपयोग होता है। अभी तक यह जरूरत प्रमुख रूप से कोयले, डीजल और बिजली के द्वारा पूरी की जाती है। अगर इन विकल्पों की जगह प्लास्टिक का इस्तेमाल करना हो तो इसकी छंटनी और उद्योगों तक इसे पहुंचाने का रास्ता तैयार करना होगा।
कितना है प्लास्टिक कचरे का उत्पादन
भारत में प्रति वर्ष 13 लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। हर साल लगभग नौ लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। 15,342 टन प्लास्टिक कचरा रोज पैदा होता है। अकेले दिल्ली में रोज 690 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है।
इसका केवल 10 फीसदी ही रिसाइकिल हो पाता है। पूरे भारत में नौ हजार टन प्लास्टिक कचरा ही रीसाइकिल होता है। यह लगभग 11 हजार करोड़ का कारोबार बन चुका है और इस क्षेत्र में हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है।