ढाई साल से बेकार खड़ी है ट्रेन

तेजस एक्सप्रेस के उतरते ही डबलडेकर की बदहाली की कहानी शुरू हो गई। डबलडेकर न तो लखनऊ से जयपुर के लिए चल पाई, न ही सीतापुर रूट के रास्ते दौड़ाने की फाइलों में तेजी आई। डबलडेकर का रैक पहले ऐशबाग कोचिंग डिपो में खड़ा था, जिसे वहां से शिफ्ट कर डालीगंज स्टेशन पर खड़ा करवा दिया गया है। ढाई साल बाद भी डबलडेकर पटरी पर नहीं लौट सकी है। हालांकि, रेलवे अधिकारी बोर्ड की अनुमति के इंतजार में हैं। गाड़ी संख्या 12583/84 लखनऊ जंक्शन आनंदविहार डबलडेकर एक्सप्रेस पूर्वोत्तर रेलवे की वीआईपी ट्रेनों में शुमार थी। यह हफ्ते में दो दिन शुक्रवार व रविवार को सुबह पांच बजे के आसपास रवाना होती थी। शुरुआती दौर में इस एसी चेयरकार ट्रेन को यात्रियों को खासा रिस्पॉन्स मिला। लेकिन करीब ढाई साल से ट्रेन खड़ी है और यात्री तेजस व शताब्दी के महंगे टिकट पर सफर करने को मजबूर हैं। डबलडेकर का कद बढ़ाने के लिए रेलवे अधिकारियों ने एक योजना बनाई। इसके तहत लखनऊ से आनंदविहार व सरायरोहिला से जयपुर के बीच चलने वाली डबलडेकरों को मिलाकर एक ट्रेन किया जाना था। लखनऊ से जयपुर के बीच चलने वाली इस डबलडेकर का ट्रायल भी हुआ। समयसारिणी भी तैयार हो गई, लेकिन अप्रत्याशित कारणों से इसमें अड़ंगा लग गया और ट्रेन नहीं चल सकी। इसके बाद रेलवे अधिकारियों ने डबलडेकर को सीतापुर के रास्ते दिल्ली के लिए चलाने का खाका तैयार किया। मंथन भी हुआ। लेकिन बात फाइलों से आगे नहीं निकल सकी। दैनिक यात्री एसोसिएशन के अध्यक्ष एसएस उप्पल ने बताया कि लखनऊ से दिल्ली के बीच गोमती एक्सप्रेस, तेजस एक्सप्रेस व शताब्दी एक्सप्रेस चेयरकार ट्रेनें हैं। डबलडेकर भी एसी चेयरकार है। ऐसे में तेजस एक्सप्रेस की सफलता ही अन्य चेयरकार ट्रेनों की विफलता पर निर्भर है। कैटरिंग बेतहाशा महंगी कर शताब्दी को फ्लॉप करने पर अधिकारी तुले हैं। फिर तेजस के फेल होने से निजी ट्रेनों के चलाने में भी अड़ंगे लगेंगे। चूंकि डबलडेकर की टाइमिंग सुबह पांच बजे की है, जबकि तेजस छह बजे चलती है। ऐसे में अगर डबलडेकर चला दी गई तो तेजस को यात्री नहीं मिलेंगे।