श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आजही के दिन दिया था धर्म और कर्म का उपदेश
गीता : श्रीमद्भगवद्गीता के प्रत्येक श्लोक में ज्ञान का अनूठा प्रकाश है। मानव जीवन की इस उत्कृष्टतम आचार संहिता की विशिष्टता यह है कि शांति का यह संदेश युद्ध की भूमि से दिया गया है। किंकर्तव्यविमूढ़ मनुष्य को आत्मकल्याण का पथ सुझाकर भटकाव से बचाने वाले इस शास्त्र में किसी पंथ विशेष की नहीं, बल्कि विश्व मानव के हित के लिए ज्ञान, भक्ति और कर्म की तथ्यपूर्ण चर्चा मिलती है। इसमें परस्पर विरोधी दिखाई देने वाले अनेक विश्वासों को मनोवैज्ञानिक ढंग से एक साथ गूंथकर मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया गया है। यही कारण है कि इस कृति को मानवीय प्रबंधन के अद्भुत ग्रंथ की वैश्विक मान्यता हासिल है। गीता साधारण कर्मवाद को कर्मयोग में परिवर्तित करने के लिए तीन साधनों पर बल देती है-
इन सूत्रों में वेदों एवं उपनिषदों का सार झलकता है। तत्त्वदर्शी मनीषियों का कहना है कि ज्ञान, भक्ति और कर्म की इस अनूठी त्रिवेणी को जितनी बार पढ़ा जाता है, इसके ज्ञान के नित नए रहस्य खुलते जाते हैं। 18 अध्यायों के 700 श्लोकों में प्रवाहित इस अद्भुत ज्ञान गंगा का कोई सानी नहीं है। श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत के छठे खंड का ‘भीष्म पर्व’ हिस्सा है। श्रीकृष्ण और मोहग्रस्त अर्जुन के बीच यह संवाद मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में हुआ था। इसीलिए इस दिन को मोक्षदा एकादशी व गीता जयंती के रूप में भी जाना जाता है।
इस अनुपम ग्रंथ की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात है लगाया जा सकता है कि 78 भाषाओं में इसके 250 से ज्यादा अनुवाद तथा दर्जनों टीकाएं व भाष्य हो चुके हैं। इनमें प्रमुख टीका और भाष्य हैं- अष्टावक्रगीता, अवधूत गीता (दत्तात्रेय महाराज), गीता भाष्य (आदि शंकराचार्य), गीता भाष्य (रामानुज), ज्ञानेश्वरी (संत ज्ञानेश्वर), ईश्वरार्जुन संवाद (परमहंस योगानंद), गीता यथारूप (प्रभुपाद स्वामी), भगवद्गीता का सार (स्वामी क्रियानन्द), गीता साधक संजीवनी (रामसुख दास जी), गीता चिंतन (हनुमान प्रसाद पोद्दार), गूढ़ार्थ दीपिका टीका (मधुसूदन सरस्वती), सुबोधिनी टीका (श्रीधर स्वामी), अनासक्ति योग (महात्मा गांधी), गीता पर निबंध (अरविन्द घोष), गीता रहस्य (बाल गंगाधर तिलक), गीता प्रवचन (विनोबा भावे), यथार्थ गीता (स्वामी अड़गड़ानंद जी), गीता तत्त्व विवेचनी (जयदयाल गोयन्दका)।
सनातन धर्म के आध्यात्मिक ग्रंथों में ‘अष्टावक्रगीता’ एक अमूल्य ग्रंथ माना जाता है। अद्वैत वेदांत के इस ग्रंथ में ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के संवाद का संकलन है। ग्रंथ में राजा जनक के तीन प्रश्नों की व्याख्या है- ज्ञान कैसे प्राप्त होता है? मुक्ति कैसे होगी और वैराग्य कैसे प्राप्त होगा? ये तीन शाश्वत प्रश्न हैं, जो हर काल में आत्मानुसंधानियों द्वारा पूछे जाते रहे हैं। इस ग्रंथ में ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति और बुद्धत्व प्राप्त योगी की दशा का सविस्तार वर्णन है।
किंवदंती है कि रामकृष्ण परमहंस ने भी यही पुस्तक नरेंद्र को पढ़ने को कही थी, जिसके पश्चात वे उनके शिष्य बने और कालांतर में स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।