शिक्षा - रोज़गार

कट ऑफ की गलाकाट प्रतिस्पर्धा!

नई दिल्‍ली. दिल्‍ली यूनिवर्सिटी जैसे बड़े विश्‍वविद्यालय में दाखिला लेना कितना कठिन है, यह सब जानते हैं. इसके कॉलेजों में हाई कट ऑफ निकलती हैं. सिर्फ डीयू ही नहीं कई बड़ी यूनिवर्सिटी में अधिकांश छात्र इसी कट ऑफ के कारण इनमें पढ़ने से वंचित रह जाते हैं. कुछ ऐसी ही चुनौती भरी कहानी है, असम की छात्रा और नोएडा के छात्र की. जब 18 साल की हिमलक्षी सैकिया ने देखा था कि उनका बोर्ड एक्‍जाम का रिजल्‍ट 90.75 फीसदी था, तो उन्हें लगा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में पढ़ाई का उनका सपना अब पूरा नहीं हो पाएगा.

उन्‍होंने असम राज्य बोर्ड के तहत उत्तरी लखीमपुर कॉलेज से अपनी हायर सेकेंडरी एजूकेशन पूरी की थी और जुलाई के अंत में इसका रिजल्ट आ गया था. सीबीएसई के परिणाम एक दिन पहले घोषित किए गए थे और उन्हें याद है कि जब उन्होंने देश भर के छात्रों के रिकॉर्ड उच्च परिणामों के बारे में सुना तो उन्हें कितनी निराशा हुई थी. इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार वह कहती हैं, ‘मैं अपने रिजल्‍ट से बिल्कुल भी खुश नहीं थी. मैंने अपनी दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में 95 फीसदी अंक प्राप्त किए थे और मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे बारहवीं कक्षा के अंक इससे कम होंगे. मेरी उम्मीद थी कि कम से कम मेरे 95% आ जाएंगे. लेकिन हमारी बोर्ड परीक्षाएं नहीं हुई थीं. रिजल्‍ट प्री टेस्‍ट के आधार पर आया था, जिसे मैंने गंभीरता से नहीं दिया था. मुझे नहीं पता था कि यह मेरी निर्णायक परीक्षा होगी. मैं अपने स्कूल में दूसरे नंबर पर आई थी, लेकिन मुझे पता था कि नॉर्थ कैंपस के किसी कॉलेज में दाखिला लेने के लिए यह बहुत कम हैं.’

उन्‍होंने कहा कि कई साल पहले फैसला किया था कि वह दिल्ली में इतिहास की पढ़ाई करेंगी. जब दिल्ली विश्वविद्यालय ने अक्टूबर में अपनी पहली कट-ऑफ सूची जारी की, तो उन्‍होंने उस पर गौर किया और पाया कि उन्‍हें दयाल सिंह कॉलेज में ओबीसी श्रेणी के तहत इसमें प्रवेश मिल सकता है. उन्‍होंने कहा, ‘कॉलेजों द्वारा जारी किए गए कट-ऑफ को देखने के बाद मुझे दयाल सिंह कॉलेज में आने के लिए राहत मिली और खुशी हुई, हालांकि मुझे इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. डीयू के विभिन्न कॉलेजों के बारे में अपनी रिसर्च करते समय मुझे इसका पता चला था.’

हिमलक्षी अपने परिवार में उच्च शिक्षा के लिए राज्य छोड़ने वाली पहली सदस्‍य हैं. उनके माता-पिता और दो बड़ी बहनें सभी असम में पढ़े हैं. एक जानने वाले हैं, वह आर्यभट्ट कॉलेज में पढ़ते हैं. वह उसे दादा कहती हैं. उस परिचित के कारण उन्‍हें भी उम्‍मीद थी कि उनका नाम उस कॉलेज में दूसरी सूची में आएगा.
दूसरी ओर नोएडा के सोमरविले स्कूल के छात्र युवराज मधोक के पास चुने हुए पाठ्यक्रम बीकॉम प्रोग्राम में प्रवेश लेने के लिए कोई उपयुक्त कॉलेज नहीं था. 93% के साथ उन्‍हें एकमात्र कॉलेज स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज मिला था, जो उत्तर पश्चिमी दिल्ली के अलीपुर में स्थित डीयू के रूरल कॉलेजों में से एक था. वह कहते हैं, ‘मैंने बीकॉम (ऑनर्स) के बारे में सोचा भी नहीं था, क्योंकि मैं गणित में सहज नहीं हूं और विषय में मेरा स्कोर अच्छा नहीं था. मैं अपने स्कोर से संतुष्ट था और सोचा था कि इससे मुझे बीकॉम प्रोग्राम के लिए सीट मिल जाएगी. मुझे पता था कि इस साल कट-ऑफ ज्यादा होगा लेकिन इतना ज्यादा नहीं. मैंने स्वामी श्रद्धानन्द कॉलेज के लिए क्वालीफाई किया, लेकिन वहां प्रवेश नहीं लेने का फैसला किया. मैं स्थान से खुश नहीं था और मेरे लिए यात्रा करना बहुत लंबा था.’

जब कट ऑफ की दूसरी सूची सामने आई, तब भी उन्‍हें और विकल्‍प नहीं मिले. वह बाद की सूचियों के आने का इंतजार करने लगे. इस बीच उनके पास कुछ और विकल्प थे. उन्होंने मुंबई के नरसी मोंजी कॉलेज और दिल्‍ली की गुरु गोबिंद सिंह आईपी विश्वविद्यालय से संबद्ध कुछ कॉलेजों में क्‍वालिफाई किया था. लेकिन वह वहां नहीं जाना चाहते थे. मुंबई में खर्चे बहुत थे. उन्होंने सोचा था कि कम लोकप्रिय डीयू कॉलेज आईपी विश्वविद्यालय के विकल्पों की तुलना में बेहतर विकल्प होगा.

तीसरी लिस्ट में भी बीकॉम प्रोग्राम के विकल्प नहीं खुले. अब वह चिंतित थे. उन्‍होंने कहा, ‘मैंने फैसला किया कि मुझे कहीं सीट सुरक्षित करने की जरूरत है या मैं कॉलेज के बिना रह जाऊंगा. मैंने अरबिंदो कॉलेज में इकोनॉमिक्‍स और कॉमर्स के साथ बीए कार्यक्रम में प्रवेश लिया. यह वह नहीं था जो मैं वास्तव में चाहता था, लेकिन ये विषय बाद में फाइनेंस में एमबीए करने की मेरी योजना के लिए ठीक थे. अगर मैं बाद में सिविल सेवा परीक्षा देने का फैसला करता हूं तो भी यह बेहतर विकल्‍प था.’
दूसरी ओर असम की हिमलक्षी को आर्यभट्ट कॉलेज की दूसरी सूची में एडमिशन का मौका मिला. लेकिन उन्‍होंने दयाल सिंह कॉलेज जाने का ही फैसला लिया. उन्‍होंने कहा, ‘प्रवेश लेने के बाद मैंने और अधिक शोध किया और पाया कि दयाल सिंह की रैंकिंग आमतौर पर बेहतर थी और मैंने संकाय के बारे में अधिक सीखा. मुझे कॉलेज में अन्य असमी छात्रों के कुछ वाट्सएप ग्रुप में भी जोड़ा गया और राज्य के अन्य फ्रेशर्स से मेरा परिचय हुआ, इसलिए वहां ऐसे लोग थे जिन्हें मैं जानती थी.’

उनका यह भी कहना है, ‘मैंने शुरुआत में ही नॉर्थ कैंपस में आने की उम्मीद खो दी थी और मैं कुछ अन्य पसंदीदा कॉलेजों में भी नहीं जा सकी. लेकिन मैं यहां अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगी. पाठ्यक्रम वही है, विश्वविद्यालय वही है, और मुझे इसका अधिक से अधिक लाभ उठाना है और अच्छी तरह से अध्ययन करना है.’

 

 

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