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इंदिरा गांधी 10 बड़े फैसले

इंदिरा गांधी : आज देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्मदिन है. उनका जन्म इलाहाबाद में 19 नवंबर 1917 को हुआ था. उन्हें देश की लौह महिला कहा जाता है. , उन्होंने पद पर रहते हुए कई ऐसे फैसले लिए, जो कतई आसान नहीं थे और समय के हिसाब से साहसपूर्ण भी.

भारत की लौहमहिला कही जाने वाली इंदिरा गांधी का आज जन्मदिन है. वो 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में नेहरू परिवार में पैदा हुईं थीं. भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने जीवन में पद रहते हुए कई ऐसे बड़े फैसले लिए, जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. हालांकि इनमें कई फैसलों पर विवाद भी हुआ. सवाल उठे. लेकिन समय के साथ इंदिरा अपने इन फैसलों के साथ आमतौर पर सही नजर आईं.

इंदिरा तब भारत की प्रधानमंत्री बनी थीं, जब कांग्रेस में एक मजबूत सिंडिकेट था. उन्हें लगता था कि लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद अगर उन्होंने किसी दमदार कांग्रेस नेता को प्रधानमंत्री बनाया तो उसे अपनी कठपुतली बनाकर नहीं रख सकेंगे. इसी के चलते तब प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार मोरारजीभाई देसाई का पत्ता सिंडिकेट ने काट दिया.

कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष कामराज ने इंदिरा को इसलिए प्रधानमंत्री बनाया क्योंकि वो देश के सबसे लोकप्रिय नेता रहे जवाहर लाल नेहरू की बेटी थीं और उन्हें मूक गुड़िया लगती थीं. प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा ने लगातार अपनी स्थिति मजबूत की. समय आने पर उन्होंने इस दमदार कांग्रेस सिंडिकेट को छिन्न भिन्न करके अपने दम पर समानांतर कांग्रेस खड़ी की, जिसने बाद में असली कांग्रेस की जगह ली.

अमेरिका के साथ खाद्यान्न समझौता और मुद्रा अवमूल्यन – प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में भयंकर अनाज संकट की स्थिति थी. इससे निपटने के लिए इंदिरा ने अपने अमेरिका दौरे में एक बड़ा समझौता किया, जिसके तहत भारत को अमेरिका से खाद्यान्न भेजा गया. अमेरिकी राष्ट्रपति जानसन ने तुरंत 6.7 मिलियन टन खाद्यान्न की खेप भारत भेजी. लेकिन अमेरिका ने उसके लिए दो कड़ी शर्तें भी रखीं. पहली भारत को वियतनाम के खिलाफ अमेरिका की मदद और दूसरा अपनी मुद्रा का अवमूल्यन. भारत में इस समझौते की कड़ी आलोचना हुई. कांग्रेस के नेताओं ने तो उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया. अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा लेकिन इससे भारत में खाद्यान्न संकट से उबरने में मदद मिली. इसके बाद इंदिरा ने देश को खुद खाद्यान्न के मामले में पैरों पर खड़ा करने के लिए काम किया.
बैंकों का राष्ट्रीयकरण – इंदिरा ने ये फैसला बहुत नाटकीय तरीके से लिया. 1966 में देश में बैंकों की केवल 500 के आसपास शाखाएं थीं. जिसका फायदा आमतौर पर धनी लोगों को ही मिलता था. लेकिन बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों का फायदा आम आदमी को भी मिलना शुरू हुआ. उन्होंने बैंक में पैसे जमा करने शुरू किए. हालांकि उस समय इंदिरा के इस फैसले को सत्ता के केंद्रीकरण और मनमानी के तौर पर देखा गया.
प्रिंसले स्टेट्स का भत्ता रोकना- आजादी के दौरान जब भारत में 550 के ज्यादा स्वतंत्र रियासतों और राज्यों का भारत में विलय किया गया तो तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राजाओं को आकर्षक भत्तों को मंजूरी दी थी. जिसे नेहरू ने भी स्वीकार कर लिया था. हालांकि ये रकम उस समय के गरीब भारत के लिहाज से बहुत ज्यादा थी. राजाओं के पास धन की किसी लिहाज से कोई कमी नहीं थी. 1969 में इंदिरा गांधी ने समान अधिकार का तर्क रखते हुए इस भत्ते को बंद रखने का प्रस्ताव संसद में रखा. जो उस समय तो राज्य सभा में गिर गया लेकिन जब इंदिरा 1971 में जीतकर सत्ता में आईं तो उन्होंने सफलतापूर्वक पारित कराया. इससे राजकोष को यकीनन फायदा मिला लेकिन सियासी भूचाल की स्थिति आ गई.
कांग्रेस का विभाजन करना-1969 में कांग्रेस सिंडिकेट इंदिरा गांधी को पद से उतारने की तैयारी में लगा था. फिर स्थिति ऐसी आ गई कि इंदिरा ने आर-पार की लड़ाई लड़ने का तय कर लिया. उन्होंने वाम पार्टियों के उम्मीदवार वीवी गिरी को समर्थन देते हुए कांग्रेस के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को हरा दिया. इस पर जब सिंडिकेट ने इंदिरा के खिलाफ कार्रवाई करते हुए पार्टी से निष्कासित किया तो उन्होंने पार्टी के भीतर ही नई पार्टी बना ली. उनके इस कदम को जिद, हिटलरशाही, बांटो और राज करो औऱ बढ़ती महत्वाकांक्षा के तौर पर देखा गया. लेकिन आने वाले समय में कांग्रेस के पुराने ताकतवर नेताओं की कांग्रेस डूब गई और जनता ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस को भारी मतों से जिताया.
हरित और श्वेत क्रांति – चूंकि प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी लगातार देश में खाद्यान्न और दूध की कमी की स्थिति को झेल रही थीं. तब उन्होंने देश को कृषि के क्षेत्र में पैरों पर खड़ा करने के लिए युद्ध स्तर पर बड़ा काम किया. उन्होंने कृषि में तकनीक सुधार, घाम-फूस निवारक प्रयोग और नए तरह के बीजों का प्रयोग शुरू करने के साथ कृषि और पैदावार क्षेत्र में कई संस्थाओं को खड़ा करने में बढ़ावा दिया. विदेश से कृषि एक्सपर्ट बुलाए. इससे देश को बहुत फायदा मिला. ना केवल देश खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना बल्कि इतना अनाज पैदा करने लगा कि विदेश में निर्यात करने में भी सक्षम हो गया. इसी समय दुग्ध उत्पादन को भी बढ़ावा दिया गया. अमूल दुग्ध डेयरी की अगुवाई में देश में श्वेत क्रांति हुई. देश ने जरूरत से ज्यादा दूध पैदा करना शुरू कर दिया.
परमाणु कार्यक्रम – पड़ोसी देश चीन परमाणु संपन्न हो चुका था. चीन से आसन्न खतरे से बचने के लिए श्रीमती गांधी ने परमाणु कार्यक्रम को अपनी प्राथमिकता सूची में रखा. वैज्ञानिकों को लगातार उत्साहित करके वैज्ञानिक संस्थाओं को बढ़ावा दिया. इसके चलते मई 1974 में भारत ने पहली बार पोखरण में स्माइलिंग बुद्धा आपरेशन के नाम से सफलतापूर्वक भूमिगत परीक्षण किया. भारत ने साफ कर दिया था कि वो इसका प्रयोग केवल शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए किया है. इससे दुनियाभर में भारत की धाक जम गई.
पाकिस्तान युद्ध का ऐलान और नया बांग्लादेश बनाया- पाकिस्तान बनने के बाद से उसके पूर्वी हिस्से में लगातार बंगालियों के खिलाफ दमनचक्र ही नहीं चल रहा था बल्कि पाकिस्तान के हुक्मरान पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं को भी उभरने में रुकावट पैदा कर रहे थे. इसके चलते भारत में बड़े पैमाने पर शरणार्थी आने लगे. भारत ने इसे लेकर पाकिस्तान को चेतावनी दी. जिस पर अमेरिका ने भारत को घुड़का कि अगर उसने पाकिस्तान के खिलाफ कोई भी कार्रवाई की तो अंजाम अच्छे नहीं होंगे. इसके बाद भी भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में सेनाएं भेजकर इस इलाके को आजाद करा दिया. जो बांग्लादेश के तौर पर सामने आया. अमेरिका लाख चाहकर भी इस मामले में कुछ नहीं कर सका. इसने दुनियाभर में इंदिरा गांधी की छवि एक लौहमहिला नेता की बना दी.
गरीबी हटाओ – 1971 में इंदिरा गांधी ने विपक्षियों की अपील “इंदिरा हटाओ” के जवाब में “गरीबी हटाओ” का नारा दिया. इसके तहत वित्त पोषण, ग्राम विकास, पर्यवेक्षण और कर्मिकरण आदि कार्यक्रम प्रस्तावित थे. यद्यपि ये कार्यक्रम गरीबी हटाने में असफल रहा लेकिन इंदिरा गांधी के इस नारे ने काम किया और उन्होंने चुनाव जीत लिया.
आपातकाल- ये प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी का सबसे विवादास्पद फैसला था. जिसके लिए आज भी उनकी आलोचना की जाती है. दरअसल 1971 में रायबरेली में उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार राजनारायण ने इंदिरा पर चुनावों में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का मामला उठाया. जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को उनका लोकसभा चुनाव ही रद्द नहीं किया बल्कि 06 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी. इसके बाद विपक्ष को उन्हें घेरने का मौका मिल गया. उनसे इस्तीफा मांगा जाने लगा. जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में विपक्ष ने देशभर में प्रदर्शन करने शुरू किए. हड़ताल होने लगी. इसने इंदिरा गांधी को इतना डरा दिया कि उन्होंने आपातकाल की घोषणा कर दी. इसमें नागरिक स्वतंत्रता का हनन हुआ. बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं. प्रेस की आजादी खत्म कर दी गई. कानूनों में गैरकानूनी फेरबदल हुए. तुगलकी फरमानों के कारण आपातकाल भारतीय राजनीति का सबसे विवादास्पद काल बन गया. हालांकि जनवरी 1977 में इसे हटाकर इंदिरा ने नए चुनावों की घोषणा की, तब नाराज जनता ने उन्हें बुरी तरह से हरा दिया.
आपरेशन ब्लू स्टार – पंजाब में खालिस्तान की मांग जोर पकड़ती जा रही थी. पूरा देश इसके चलते आतंकवाद की चपेट में था. जनरैल सिंह भिंडरावाला खालिस्तान का नेता बन गया था. उसने स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बनाया. वहां बडे़ पैमाने पर सिख आतंकी शरण पाने लगे थे और भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक जमा किए जा रहे थे. ऐसे में भिंडरावाला को अमृतसर मंदिर से निकालने के लिए इंदिरा गांधी के आदेश पर सेना ने 04 जून 1984 से एक आपरेशन शुरू किया. इसमें भिंडरावाला और उसके साथी मार गिराए गए. ये आपरेशन सफल रहा लेकिन इससे स्वर्ण मंदिर को नुकसान हुआ और सैकड़ों जानें गईं. सिखों की भावनाएं भी बड़े पैमाने पर इससे आहत हुईं. इस कदम को लेकर इंदिरा के खिलाफ आमतौर पर सिखों में खासा गुस्सा दिखा. बाद में इंदिरा के सिख गार्डों ने इसी का प्रतिशोध लेते हुए दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास में 31 अक्टूबर 1984 में उनकी हत्या कर दी.

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