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तांगा चलने वाले की बेटी बनी हॉकी की ‘रानी’ को मिला पद्मश्री

पद्मश्री अवॉर्ड: टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोमवार को दिल्ली में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया. रानी की अगुवाई में भारतीय टीम टोक्यो गेम्स में चौथे स्थान पर रही थी. जो इन खेलों में महिला टीम का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. रानी महज 15 साल की उम्र में भारतीय हॉकी में शामिल हो गईं थीं.
टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम ब्रॉन्ज मेडल तो जीतने से चूक गई. लेकिन आखिरी के कुछ मुकाबलों में जिस तरह की जिद और जुनून टीम ने दिखाई. उसने सारे देश का दिल जीत लिया. टीम की इस कायापलट के पीछे जितना अहम योगदान कोच और खिलाड़ियों का था. उतना ही महत्वपूर्ण रोल कप्तान रानी रामपाल का था. रानी ने लगातार हार के बाद भी खिलाड़ियों को टूटने और बिखरने ने नहीं दिया. इसी का नतीजा रहा कि भारतीय टीम चौथे स्थान पर रही. ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम का यह अब तक का सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन है.
रानी को कुछ दिन पहले ही मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड भी मिला था. हालांकि, ‘हॉकी की रानी’ के लिए यहां तक का सफर आसान नहीं रहा. उनकी कहानी देश के हर उस शख्स के लिए प्रेरणा है, जो मुफलिसी और तंगहाली से हारकर अपने सपनों को अधूरा छोड़ देता है.
बेहद गरीब परिवार में जन्मी रानी के लिए हॉकी खेलना एक ऐसा ख्वाब था, जिसका देखना भी गुनाह था. पिता तांगा चलाते थे. दिन के बमुश्किल 100 रुपए कमा पाते थे. मां लोगों के घरों में काम करती थी. कच्चा मकान था. बारिश के वक्त घर और बाहर का अंतर मिट सा जाता था. क्योंकि बाहर की तरह घर में भी पानी भर जाता था. तब परिवार वाले प्रार्थना करते थे कि बारिश ही ना हो, क्योंकि उनके लिए तब रात काटना मुश्किल हो जाती थी.
रानी रामपाल को हॉकी का शौक तब लगा, जब वो महज 6 साल की थी. रानी के घर के सामने ही हॉकी एकेडमी थी. स्कूल आते-जाते वो बच्चों को हॉकी खेलती देखती तो उनका भी हॉकी खेलने का मन करता. फिर क्या था, घरवालों को मनाने का सिलसिला शुरू हुआ और बेटी की जिद के आगे घर वाले भी हार गए और रानी का हॉकी स्टिक के साथ सफर शुरू हुआ.
शाहबाद हॉकी एकेडमी में रानी एडमिशन के लिए पहुंची, तो उनकी कद-काठी को देखकर कोच बलदेव सिंह ने कहा कि अभी तुम्हें सेहत बनाने की जरूरत है. लेकिन वो जिद पर अड़ी थी. कोच भी नहीं माने, लेकिन रानी ने भी हार नहीं मानी. वो रोज एकेडमी के चक्कर लगाती. एक साल के संघर्ष और तपस्या के बाद कोच का दिल भी पिघल गया और उन्हें एकेडमी में दाखिला मिल गया.कोच भी रानी के खेल को देखकर दंग रह गए. लेकिन मुश्किलों भरे सफर की तो यह शुरुआत थी. क्योंकि रानी की घर की माली हालत किसी से छुपी नहीं थी. हॉकी किट, डाइट सबका इंतजाम करना था.
कोच ने रानी से ट्रेनिंग पर आने के लिए रोज आधा लीटर दूध लाने के लिए कहा था. लेकिन उनका परिवार 200 मिलीलीटर से ज्यादा दूध का इंतजाम ही कर पाता था. रानी को भी हॉकी खेलने की जिद थी. तो वो दूध में पानी मिलाकर ले जाती थीं. ताकि उनकी ट्रेनिंग का सिलसिला नहीं थमे. इसी जिद के दम पर वो एक-एक कर सफलता के मुकाम हासिल करती गईं. इसके बाद रानी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
15 साल की उम्र में रानी भारतीय हॉकी टीम में शामिल हुईं. 2009 में रानी को ‘द यंगेस्ट प्लेयर’ घोषित किया गया. 2019 में रानी को वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर का भी खिताब मिला. यह पहला मौका था, जब किसी हॉकी खिलाड़ी को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला था.

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