अंतराष्ट्रीय

ड्रैगन की वैक्सीन खरीदने से करता रहे कई देश

बीजिंग. दुनियाभर में अपनी कोरोना वैक्सीन भेजकर अपनी सॉफ्ट पावर बढ़ाने में लगे चीन को बढ़ा झटका लगा है. अब कई देश उसकी वैक्सीन खरीदने की बजाए पश्चिमी देशों की वैक्सीन की तरफ रुख कर रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक अब दुनिया के कई देश फाइज़र और मॉडर्ना जैसी वैक्सीन को प्राथमिकता दे रहे हैं. दरअसल इन देशों को डर है डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ ड्रैगन की वैक्सीन कारगर नहीं होंगी. यही कारण है कि पहले चीनी वैक्सीन ऑर्डर कर चुके देश भी अब अमेरिकी वैक्सीन का रुख कर रहे हैं.

चीन ने एशिया, लैटिन अमेरिका और मध्य-पूर्व के देशों में अपनी साइनोफॉर्म वैक्सीन के जरिए वैक्सीनेशन की शुरुआत की थी. लेकिन अब वैक्सीन निर्यात में बुरी तरह कमी आई है. आंकड़ों के मुताबिक अगस्त महीने में वैक्सीन निर्यात में 21 फीसदी की कमी आई है. दिसंबर 2020 के बाद से ही ये आंकड़ा लगातार बढ़ रहा था.
हांगकांग युनिवर्सिटी के एक एक्सपर्ट का कहना है-शुरुआत में लोगों को जो हासिल हो सका, उन्होंने वही चुन लिया. लेकिन अब समय बीत रहा है. वैक्सीन की वास्तविक एफिकेसी के बारे में सामान्य लोगों भी जागरुक हो रहे हैं. अब लोगों को समझ आने लगा है कि सभी वैक्सीन एफिकेसी के मामले में एकसमान नहीं हैं.

जानकारी के मुताबिक चीन की वैक्सीन का एफिकेसी रेट 50 से 80 प्रतिशत तक है. लेकिन ये फाइज़र की एमआरएनए वैक्सीन के सामने नहीं टिकती. कुछ ही दिनों पहले खबर आई थी कि ब्राजील भी अब चीन की वैक्सीन का आयात नहीं करेगा.
दरअसल चीन अब तक वैक्सीन डिप्लोमेसी को अपनी ताकत के रूप में इस्तेमाल करता रहा है. अमेरिकी वैक्सीन फाइज़र और मॉडर्ना महंगी हैं. महंगी होने के कारण अमीर देशों के लिए इन्हें खरीदना आसान था. ऐसे में चीन ने उन देशों को चुना जो मध्यम आय वाले या गरीब हैं. लेकिन अब इन देशों में चीनी वैक्सीन को नकारा जा रहा है.
एक अन्य वजह ये भी है कि चीनी वैक्सीन के ट्रायल और उसके डेटा को लेकर हमेशा से सवाल खड़े होते रहे हैं. कहा जाता रहा है चीन ने अपनी वैक्सीन के डेटा को सही तरीके से दुनिया के सामने नहीं रखा. डेल्टा वैरिएंट के वैश्विक रूप से प्रभावी होने के बाद अब दुनिया के देशों में वैक्सीन के डेटा और उसकी एफिकेसी का महत्व बढ़ता जा रहा है. इस मामले में चीनी वैक्सीन कमजोर साबित हो रही हैं.

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