पति-पत्नी गया के बीहड़ जंगल में चला रहे ‘गुरुकुल’!
गया. बाराचट्टी प्रखंड के बीहड़ जंगलों में एक दंपती गांव के बच्चों को गुरुकुल की तर्ज पर शिक्षा दे रहे हैं. प्रखंड मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर दोनों दंपती गरीब बच्चों को आवासीय शिक्षा देने के एवज में शुल्क के तौर पर महज 1 से 2 किलो किलो चावल लेते हैं. सभी बच्चों को यहां शिक्षा के साथ ही खाना बनाने से लेकर खेती करने तक का प्रशिक्षण दिया जाता है.
बिहार-झारखंड से सटे गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड मुख्यालय से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित काहूदाग पंचायत के कोहवरी गांव में सहोदय आश्रम चल रहा है. इस आश्रम को एक दंपती संचालित करते हैं. इस आश्रम में 30 बच्चों को आवसीय शिक्षा दी जाती है. यहां बच्चों के चहुंमुखी विकास के लिए पुराने जमाने की विधि, यानी ऋषि मुनियों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा की तर्ज पर आज के बच्चों को शिक्षित किया जाता है.
सहोदय आश्रम जहां स्थापित है वहां हर तरफ जंगल ही जंगल है. बाराचट्टी प्रखण्ड मुख्यालय से 6 किलोमीटर का रास्ता जंगल के बीच से पगडंडियों के सहारे पार करना पड़ता है. सड़क और जंगल की समस्या के बाद यहां सबसे बड़ी समस्या है नक्सलियों की. यहां हमेशा नक्सली घटनाएं होती रहती है.
सहोदय आश्रम के संचालक अनिल कुमार हैं कि इसके संचालन में उनकी पत्नी उनका साथ देती हैं. अनिल कुमार मुख्य रूप से पटना के बिहटा प्रखण्ड के पहाड़पुर गांव के रहने वाले हैं. अनिल और रेखा शादी के बाद दिल्ली गए, उन्होंने दिल्ली में उच्च शिक्षा हासिल की और वहीं से एमफिल किया. उनकी पत्नी रेखा ने भी पीजी तक की पढ़ाई की है.
दोनों पति पत्नी को गांव से प्यार था. दिल्ली की भागदौड़ वाली जिंदगी उनको पसंद नहीं आई, इसके बाद दोनों पति-पत्नी बीहड़ जंगलों में आकर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. अनिल बताते हैं कि नौकरी करके और शहर में रहकर में मैं खुश नहीं था. मेरी पत्नी की भी चाहत थी हम गांव में रहें, यहीं खेती करें या बच्चों को शिक्षित करे. खेती करने के लिए जमीन चाहिए थी जो मेरे पास नहीं थी.
अनिल ने कहा कि भूदान कमेटी ने इस जगह के बारे में जानकारी दी. यहां आकर देखा इस सुदूर इलाके में शिक्षा की जरूरत है. हम दिल्ली से 2017 में आकर इस गांव में एक झोपड़ी में रहने लगे. पहले लोगों को समझ नहीं आया. आज लोग चाहते हैं कि मेरा बच्चा सहोदय आश्रम में पढ़े.
अनिल बताते हैं कि यहां बच्चों को पढ़ाई का बोझ नहीं देना चाहते हैं. बच्चे को हम माहौल देते हैं, खुद से पढ़ें और दूसरे को पढ़ाएं. यहां बच्चों को खाना बनाना, पशुपालन, खेती करना भी सिखाते हैं. यहां 30 बच्चो को 3 ग्रुप के बांटा गया है. जिसमें गाय घर, खेती घर और रसोई घर, जहां सभी बच्चे पढ़ते हैं. गाय घर मे पढ़ने के साथ साथ गाय की भी देखरेख करते हैं.
सहोदय आश्रम में पढ़ने वाले बच्चे बताते हैं कि यहां हम लोगों के पढ़ाई के अलावा खेती-बाड़ी करने का भी गुर सिखाया जाता है. साथ ही हमारे यहां प्लास्टिक का सामान का उपयोग नहीं किया जाता है. हमलोगों से यहां कोई फीस नहीं ली जाती है. उसके बदले में हमारे घर वाले चावल देते हैं. उसी से हम लोग सब खाते हैं. हमलोग गाय घर में भी पढ़ते हैं पढ़ने के साथ-साथ गाय का खाना भी खिलाते हैं. इसी तरह दो और ग्रुप भी बंटा हुआ है, हमलोग यहां पेड़ पौधे लगाते हैं और उसकी देखभाल भी करते हैं.
बच्चों के अभिभावकों ने बताया कि हमारे गांव से 2 से 3 किलोमीटर दूर सरकारी विद्यालय है. जहां बच्चे पढ़ने नहीं जाना चाहते हैं. जानकारी हुई कि यहां बच्चों को पढ़ाया जाता है तब हमने अपने बच्चों को भेजा है. यहां बच्चे रहते हैं खाते हैं और खेती बारी की भी ट्रेनिंग दी जाती है. अगर सहोदय आश्रम नहीं रहता तो हमारे बच्चे पढ़ नहीं पाते.
कहूदाग के जंगलों में चल रहे गुरुकुल परंपरा के अनुसार बच्चों को शिक्षा दी जा रही है, इस मामले में बाराचट्टी विधायिका ज्योति मांझी ने कहा कि न्यूज 18 के माध्यम से इस गुरुकुल के बारे में जानकारी हुई है, जहां गरीब बच्चों को शिक्षा दी जा रही है. यह एक अच्छी पहल है अगर किसी प्रकार की कोई जरूरत पड़ती है और वह हमारे पास आते हैं, तो मदद की जाएगी.