दिल्ली

आज पीएम मोदी से मिलेंगे नीतीश, चुनावों में मुद्दा बन सकती है जातीय जनगणना

नई दिल्ली:अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में जातीय जनगणना एक बड़ा मुद्दा बन सकती है। इस मुद्दे पर भाजपा का सहयोगी दल जदयू तो मोर्चा खोले हुए ही है। साथ ही विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय दल भी आवाज उठा रहे हैं। जातीय जनगणना का मुद्दा ओबीसी से जुड़ जाने के कारण इसका खासा असर हो सकता है। खासकर उत्तर प्रदेश में जहां ओबीसी की राजनीति चुनावों में बड़ी भूमिका निभाती रही है।

जाति जनगणना के मुद्दे पर सबसे ज्यादा मुखर इस समय जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। वह बिहार के विभिन्न दलों के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने भी आ रहे हैं। हाल में संसद में ओबीसी से जुड़े एक संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान भी विभिन्न दलों ने जातीय जनगणना की मांग की थी। इनमें समाजवादी पार्टी ने खुल कर इस मुद्दे को उठाया था।

इस मुद्दे की राजनीतिक तपिश को भाजपा भी महसूस कर रही है और वह इसे न तो नकार पा रही है और न ही स्वीकार कर पा रही है। हालांकि पार्टी ने बिहार से नीतीश कुमार के नेतृत्व में आ रहे प्रतिनिधिमंडल में खुद को भी शामिल किया है, ताकि यह संदेश न जाए कि भाजपा इसके खिलाफ है।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अभी तक इस पर कोई सीधा बयान नहीं दिया है। सूत्रों के अनुसार भाजपा नेतृत्व इस मुद्दे पर सभी दलों की राय आने का इंतजार कर रहा है। उसके बाद वह अपने पत्ते खोलेगा। भाजपा अपने भीतर से भी इस बारे में राय जुटा रही है। पार्टी के अधिकांश ओबीसी वर्ग से जुड़े नेताओं का मानना है कि जातीय जनगणना के मुद्दे को टाला नहीं जा सकता है। कोरोना के कारण 2021 में होने वाली जनगणना का काम रुका हुआ है। लेकिन सरकार जनगणना का काम शुरू होने पर इस बारे में फैसला ले सकती है।

चूंकि अब यह मुद्दा तूल पकड़ रहा है इसलिए विभिन्न राजनीतिक दल इस मुद्दे को लगातार उठाते रहेंगे। अगर यह चुनाव में तूल पकड़ता है तो भाजपा को भी अपनी भूमिका साफ करनी होगी। ऐसे में वह कम से कम विरोध करने की स्थिति में तो नहीं दिख रही है, लेकिन उसे इसका राजनीतिक लाभ लेने के लिए अपना रुख भी साफ करना होगा।

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