उप्र विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की सामाजिक समीकरण मजबूत करने के कोशिश
नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने एक बार फिर मजबूत सामाजिक समीकरण तय करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। विभिन्न जातिगत आधार वाले छोटे दलों के साथ भगवा दल की हाथ मिलाने की कोशिश उसकी उसी रणनीति का हिस्सा है जिसने उसे 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत दिलाई थी। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के नेताओं के साथ मुलाकात तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने से सत्तारूढ़ दल अपने अंकगणित को मजबूत करने की कोशिश करता प्रतीत होता है। अपना दल (एस) और निषाद पार्टी भाजपा की सहयोगी रही हैं लेकिन सरकार में प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर वे नाराज चल रही थीं। प्रसाद उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और वह तीन पीढ़ियों से कांग्रेस के साथ थे। भाजपा को लगता है कि युवा नेता के उसके खेमे में आने से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार से नाराज बताए जा रहे राजनीतिक रूप से प्रभावी ब्राह्मण समुदाय को साधने में मदद मिलेगी। अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने शाह से अपनी मुलाकात को लेकर कुछ नहीं कहा है, वहीं निषाद पार्टी के संजय निषाद ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी वंचित तबकों की आकांक्षाओं को ‘‘पूरा’’ करने के लिए राज्य सरकार में प्रतिनिधित्व चाहती है। उन्होंने विभिन्न समुदायों से संबंधित मुद्दों के समाधान की आवश्यकता पर जोर देते हुए पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘राजनीतिक शक्ति भगवान की शक्ति से ज्यादा मजबूत होती है।’’ उन्होंने निषाद समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग की जगह अनुसूचित जाति के तहत लाभ दिए जाने की मांग भी दोहराई। उत्तर प्रदेश सरकार वर्तमान में निषाद समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत लाभ प्रदान कर रही है। संजय निषाद ने भाजपा को अपने संदेश में कहा कि उनके समुदाय ने विगत में बसपा, सपा और कांग्रेस जैसे दलों का समर्थन किया, लेकिन अपनी समस्याओं का समाधान न होने पर समुदाय ने इन दलों को वोट देना बंद कर दिया। उन्होंने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाए जाने का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हमें लगता है कि मोदी सरकार महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर व्यस्त रही। अब हमें लगता है कि हमारी चिंताओं का समाधान होगा।’’ समाजवादी पार्टी के टिकट पर उनके पुत्र प्रवीण कुमार निषाद की योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर से जीत ने भाजपा को चौंका दिया था जिसने 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश की थी। पटेल पहली मोदी सरकार में मंत्री थीं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी पार्टी की कांग्रेस के साथ कथित बातचीत के चलते कुर्मी नेता को दूसरी मोदी सरकार में जगह नहीं मिल पाई। हालांकि बाद में उनकी पार्टी ने भाजपा की सहयोगी के रूप में ही चुनाव लड़ा था। ऐसी भी खबरें हैं कि भाजपा अपनी पूर्व सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को भी फिर से अपने खेमे में ला सकती है लेकिन इसके नेता ओमप्रकाश राजभर ने इस तरह की संभावना को खारिज किया है। भाजपा सूत्रों ने कहा कि उनकी पार्टी ने विभिन्न समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए काम किया है और वह छोटे दलों के साथ गठबंधन करने के विरोध में कभी नहीं रही है। भगवा दल के एक नेता ने कहा, ‘‘हमने यह विभिन्न राज्यों में किया है, चाहे यह बिहार, असम हो या उत्तर प्रदेश।’’ प्रदेश भाजपा के कुछ नेता योगी सरकार के कोविड-19 संकट से निपटने को लेकर सवाल उठाते रहे हैं और उनमें से कई अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए पत्र लिखते रहे हैं। पार्टी नेतृत्व संगठनात्मक और शासनात्मक चुनौतियों के समाधान के लिए कदम उठाता रहा है। इस तरह की अटकलें तेज हैं कि योगी आदित्यनाथ राज्य मंत्रिमंडल का विस्तार कर सकते हैं और सहयोगी दलों के नेताओं के साथ शाह की बैठकों को इसी कवायद का हिस्सा माना जा रहा है। अगले साल के शुरू में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा का बहुत कुछ दांव पर लगा है क्योंकि इनमें से चार-उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में इसकी सरकारें हैं।